-संजय गांधी पीजीआई के डीएम करने वाले डॉ पीवी साई सरन की स्टडी उत्कृष्ट पायी गयी, मिला प्रो एसएस अग्रवाल अवॉर्ड
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम वाले मरीजों का जीवन बचाने के लिए किये जाने वाले इंट्राऑकुलर प्रेशर से इलाज करने में आंख पर अंदरूनी दबाव पड़ने आंख की रोशनी जा सकती है। यह परिणाम शोध में सामने आया है। संजय गांधी पीजीआई में क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन (डीएम) करने वाले डॉ पीवी साई सरन को इस शोध के लिए 9 जनवरी को आयोजित संस्थान के दीक्षांत समारोह में अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए प्रो एसएस अग्रवाल पुरस्कार दिया गया है। यह पुरस्कार डीएम, एमसीएच या पीएचडी करने वाले सर्वश्रेष्ठ शोधकर्ता को दिया जाता है।
डॉ पीवी साई सरन ने बताया कि प्रो मोहन गुर्जर सहित एसजीपीजीआई के क्रिटिकल केयर मेडिसिन, ऑप्थलमोलॉजी व बायोस्टेटिस्टिक्स विभाग के अन्य फैकल्टी के मार्गदर्शन में किये गये अध्ययन में यह सामने आया कि एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) के रोगियों को गंभीर हालत में सुधार के लिए वेंटिलेशन के अधीन किया गया था, इसके बाद इनकी स्थिति खराब होने पर मरीजों को उलटा पेट के बल लेटाकर फेफड़ों में ऑक्सीजन देने की प्रक्रिया की गयी, इस प्रक्रिया को हर मरीज की जरूरत के अनुसार अलग-अलग समय 12 घंटे, 18 घंटे, 24 घंटे, 36 घंटे तक जब तक फेफड़े ठीक से कार्य करना शुरू नहीं कर दें, रखा जाता है। उन्होंने बताया कि इससे इंट्रा-ऑकुलर दबाव इतना बढ़ गया था, जो उनकी दृष्टि को प्रभावित कर सकता है। यह गंभीर रूप से बीमार रोगियों में इस तरह के दबाव का आकलन करने का यह पहला पहला अध्ययन था। जो कि अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ था।