-होम्योपैथिक में है सफल उपचार, आयुष मंत्रालय की सहायता से जीसीसीएचआर में हुआ है शोध
-राष्ट्रीय बांझपन जागरूकता सप्ताह के मौके पर डॉ गिरीश गुप्ता ने दी महत्वपूर्ण जानकारी
सेहत टाइम्स
लखनऊ। महिलाओं में बांझपन का एक बड़ा कारण पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) है, जबकि पुरुषों में बांझपन का मुख्य कारण शुक्राणुओं की कमी होना होता है, इन दोनों ही समस्या का समाधान होम्योपैथी में है।
यह कहना है गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्स जीसीसीएचआर के संस्थापक व चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता का। राष्ट्रीय बांझपन जागरूकता सप्ताह के मौके पर हुई बातचीत में डॉ गिरीश ने बताया कि उनके द्वारा पीसीओएस पर वर्ष 2015 से वर्ष 2017 तक जीसीसीएचआर में किये गये शोध के लिए आयुष मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता भी दी गयी थी, आयुष मंत्रालय से शोध के लिए पहली बार निजी क्षेत्र में वित्तीय सहायता प्रदान की गयी थी।
उन्होंने बताया कि यह शोध सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी (CCRH) द्वारा जर्नल “इंडियन जर्नल ऑफ रिसर्च इन होम्योपैथी”(IJRH) में जनवरी-मार्च 2021 अंक में प्रकाशित हुआ है।
यह शोध पीसीओएस से पीड़ित 34 महिलाओं (23 अविवाहित तथा 11 विवाहित) पर 2 वर्ष की अवधि में किया गया जिसके परिणाम अत्यंत उत्साहवर्धक रहे। इन 34 महिलाओं में से 16 में आशातीत लाभ प्राप्त हुआ, 12 में यथास्थिति बनी रही तथा 6 में कोई लाभ नहीं हुआ।
क्या है पीसीओएस
मासिक चक्र के दौरान प्रत्येक माह ओवरी से अंडे निकलते हैं, ये अंडे या तो पुरुष के शुक्राणु के सम्पर्क में आकर भ्रूण का निर्माण करते हैं या जब शुक्राणु के सम्पर्क नहीं होता है तो ये अपने आप नष्ट हो जाते हैं। ओवरी को कंट्रोल करने वाले हार्मोन्स, पीयूषग्रंथि (pituitary gland) में बनते हैं। जब इन हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ जाता है तो इसका प्रभाव अंडाशय पर पड़ता है और प्रति माह मासिक चक्र के समय निकलने वाले अंडे परिपक्व (mature) नहीं हो पाते हैं जिससे वे न तो शुक्राणु के सम्पर्क में आ पाते हैं और न ही नष्ट हो पाते हैं, ऐसी स्थिति में ये अंडे ओवरी के चारों ओर चिपकने लगते हैं, यह जमाव एक रिंग के आकार का हो जाता है, जिसे रिंग ऑफ पर्ल भी कहते हैं।
क्यों हो जाती है यह बीमारी
इस बीमारी के ज्यादातर कारण मनोवैज्ञानिक हैं। ओवरी को नियंत्रित करने वाले हार्मोन्स जो पीयूष ग्रंथि में बनते हैं अत्यधिक चिंता, डिप्रेशन, झगड़ा, प्रताड़ना, वित्तीय हानि, प्यार-मोहब्बत में धोखा, अपमान, इच्छाओं की पूर्ति न होना जैसे कारणों से अनियंत्रित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में इस बीमारी की स्थिति पैदा हो जाती है।
पीसीओएस का असर
चूंकि मासिक चक्र के दौरान निकलने वाला अंडा परिपक्व नहीं होता है इसलिए वह शुक्राणु के सम्पर्क में आकर भ्रूण भी नहीं बना पाता है जिससे महिला गर्भवती नहीं हो पाती है। पी०सी०ओ०एस० का एक और दुष्प्रभाव यह है कि इसके चलते मासिक धर्म अनियमित हो जाता है और कभी-कभी तीन माह, छह माह, या साल-साल भर तक नहीं होता हैं।
डॉ गुप्ता बताते हैं कि यह बीमारी आजकल की बड़ी समस्या बनी हुई है, भारत में पांच में से एक महिला इस बीमारी के चलते गर्भ धारण नहीं कर पाती है एवं वैश्विक स्तर पर 2 से 26 प्रतिशत महिलाओं में यह बीमारी पायी जा रही है।
कैसे करें निदान
यदि मासिक धर्म साल भर में आठ से कम बार हों या तीन माह से ज्यारदा तक रुक जाये, या एक साल तक गर्भधारण न हो पाये तो अल्ट्रा साउंड जांच से यह पता लगाना चाहिये कि पी०सी०ओ०एस० है अथवा नहीं।
होम्योपैथिक इलाज
होम्योपैथी में समग्र दृष्टिकोण (holistic approach) से यानी शरीर और मन दोनों को एक मानते हुए लक्षणों के हिसाब से दवाओं का चुनाव किया जाता है जो साइको न्यूरो हार्मोनल एक्सिस पर कार्य करते हुए ओवरी को स्वस्थ कर देता है एवं पी०सी०ओ०एस० ठीक हो जाता है। प्रतिस्पर्धा, मानसिक तनाव, भय, असुरक्षा की भावना, पारिवारिक परिवेश में परिवर्तन, मोटापा, डायबिटीज आदि भी इस मर्ज के कुछ कारण हैं। जो महिलायें योग व व्यायाम द्वारा इन सभी कारकों को नियंत्रित कर लेती हैं तथा अपना वजन घटा लेती हैं उनकी ओवरी में वापस अंडे बनना शुरू हो जाते हैं तथा गर्भधारण का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि महिलाओं को अपनी दिनचर्या को सही रखना चाहिए, खेल में भाग लेना चाहिये और योग व व्यायाम करना चाहिये। कोल्डड्रिंक, फास्ट फूड एवं जंक फूड से बचना चाहिए एवं हरी पत्तेदार सब्जियों तथा फलों का सेवन अधिक करना चाहिये।