Friday , November 22 2024

एक लीटर डीजल-पेट्रोल की बचत दे सकती है तीन से ज्‍यादा लोगों को एक दिन की सांसें : डॉ सूर्यकांत

वायु प्रदूषण से निपटने और प्राण वायु पैदा करने के बारे में दी गयी जानकारी

लखनऊ। यह जानकर आप चौंक जायेंगे कि जब आप अपने वाहन को चलाने में एक लीटर पेट्रोल या डीजल खर्च करते हैं तो 1700 लीटर प्राण वायु यानी ऑक्‍सीजन का उपयोग कर लेते हैं, चूंकि एक व्‍यक्ति 24 घंटे में करीब 500 लीटर ऑक्‍सीजन लेता है यानी इन 1700 लीटर में तीन से ज्‍यादा लोग दिन भर सांस ले सकते हैं। चिंता की बात तो यह है कि जहां वाहन के ईंधन से हम ऑक्‍सीजन खत्‍म कर रहे हैं वहीं इस जीवन दायिनी प्राणवायु यानी ऑक्‍सीजन का एकमात्र स्रोत पेड़ की संख्‍या को बढ़ाने के कारगर प्रयास नहीं कर रहे हैं। यही नहीं वायु प्रदूषण इस दिक्‍कत को और बढ़ा रहा है। सीधे अर्थों में समझिये तो इन भयावह स्थितियों से निपटने के लिए सभी नागरिकों को जागरूक होकर ज्‍यादा से ज्‍यादा संख्‍या में पौधरोपण करने की आदत डालते हुए वायु को प्रदूषित होने से बचाने के प्रयासों को अनिवार्य रूप से करना होगा और दूसरों से कराना होगा। वर्ना वह दिन दूर नहीं जब हम लोगों को अपने वाहनों को छोड़कर पुराने जमाने की तरह बैलगाड़ी पर चलना होगा।

 

केजीएमयू के पल्‍मोनरी विभाग के हेड व इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी अस्‍थमा एंड एप्‍लाइड इम्‍यूनोलॉजी के अध्‍यक्ष डॉ सूर्यकांत ने आज गुरुवार को यहां प्रेस क्‍लब में वायु प्रदूषण पर आयोजित एक पत्रकार वार्ता में यह महत्‍वपूर्ण सलाह देते हुए कहा कि हाल ही में जारी विश्‍वस्‍तरीय रिपोर्ट में जिन प्रदूषित शहरों की सूची जारी की थी उनमें उत्‍तर प्रदेश के चार शहर शामिल हैं। पत्रकार वार्ता में चेस्‍ट फि‍जीशियन डॉ रवि भास्‍कर भी शामिल थे। चिकित्‍सकों ने ऑक्‍सीजन की कमी के चलते होने वाले रोगों के उपचार में ऑक्‍सीजन थैरेपी की भूमिका को महत्‍वपूर्ण बताते हुए कहा कि यदि सांस के रोगी के साथ इमरजेंसी हो जाये और उसे सांस लेने में अत्‍यंत कठिनाई हो रही हो तो अब बाजार में ऐसे छोटे पम्‍प भी आ गये हैं जिनमें कम से कम छह लीटर तक का पम्‍प भी उपलब्‍ध है जिससे करीब 150 पफ लिये जा सकते हैं। ये पम्‍प 170 और 300 लीटर में भी उपलब्‍ध हैं। हाथ में लेने लायक पम्‍प होने के नाते इमरजेंसी की स्थिति में डॉक्‍टर तक पहुंचने तक मरीज को ऑक्‍सीजन की सुविधा पहुंचाने का कार्य आसान हो जायेगा।

 

डॉ सूर्यकांत ने कहा कि हम लोग एक मिनट में 15 बार सांस लेते हैं, और हर बार आधा लीटर वायु सांस लेने में उपयोग करते हैं। चूंकि यह ऑक्‍सीजन हमें पेड़ों से मुफ्त में मिलती है इसलिए हम इसका मूल्‍य नहीं समझ पाते हैं लेकिन जब मरीज को अस्‍पताल में ऑक्‍सीजन लगायी जाती है और अस्‍पताल वाले इसका बिल बनाते हैं तब समझ में आती है इस ऑक्‍सीजन की कीमत। उन्‍होंने कहा कि अगर एक व्‍यक्ति की औसत आयु 65 वर्ष मान ली जाये तो वह जीवन भर में करीब 5 करोड़ रुपये की ऑक्‍सीजन का उपयोग कर लेता है।

 

उन्‍होंने कहा कि वायु प्रदूषण को बढ़ाने में सबसे ज्‍यादा सहायक हो रहे हैं वाहन। ऐसी स्थिति में पेट्रोल-डीजल में प्रति लीटर 1700 लीटर ऑक्‍सीजन का उपयोग कर हम तेजी से ऑक्‍सीजन की खपत बढ़ाकर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। उन्‍होंने बताया कि पेड़-पौधे लगाने में तेजी लाने के लिए हमें इसे खुशी के अवसरों से जोड़ना होगा। उन्‍होंने कहा कि जन्‍म दिन हो या शादी की सालगिरह, इसमें मोमबत्‍ती न जला कर पूरे हुए वर्षों की संख्‍या के बराबर पौधरोपण करें। वायु प्रदूषण को रोकने की दिशा में धूम्रपान को रोकें, चूल्‍हे पर खाना बनाना छोड़ें, भवन निर्माण के समय निर्धारित दिशा-निर्देशों, जो कि धूल का असर कम करने के लिए हैं, का पालन करें, निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम करते हुए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अधिक प्रयोग करें। समारोहों में गुलदस्‍ता की जगह पौधा दें, ताकि इसी बहाने उपहार में मिले पौधे को लोग रोपेंगे। डॉ सूर्यकांत ने कहा कि तुलसी, नीम, पीपल, बरगद के पेड़ अत्‍यंत प्राणदायक हैं।

 

डॉ रवि भास्‍कर ने प्रेस वार्ता में कहा कि सांस की बीमारियों में जहां दवा की महत्‍वपूर्ण भूमिका है वहीं मरीज की हालत संभालने और उसे दवा देने लायक बनाने के लिए ऑक्‍सीजन की भी भूमिका अहम है। उन्‍होंने कहा कि वायु इस धरती पर जीवित प्राणियों के लिए एक अनिवार्य आवश्‍यकता है लेकिन आज हमने वायु को हद से ज्‍यादा प्रदूषित कर दिया है इसलिए वायु प्रदूषण हमारे जीवन के लिए खतरा बन गया है। उन्‍होंने कहा कि भारत में हर आठ मौतों में से एक वायु प्रदूषण के कारण होती है। उन्‍होंने इमरजेंसी में इस्‍तेमाल के लिए उपलब्‍ध पोर्टेबल ऑक्‍सीजन पम्‍प के बारे में बताया कि लखनऊ में पहली बार इस तरह के छोटे पम्‍पनुमा पोर्टेबल ऑक्‍सीजन की सुविधा शुरू हुई है। उन्‍होंने बताया कि किस प्रकार से इसे स्‍प्रे करके शरीर को ऑक्‍सीजन पहुंचाकर उपचार मिलने तक मरीज की जान बचायी जा सकती है।