-एंटीबायोटिक के अंधाधुंध इस्तेमाल पर प्रो अशोक रतन ने दिया व्याख्यान
-केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने मनाया स्थापना दिवस
सेहत टाइम्स
लखनऊ। एंटीबायोटिक दवाओं की भूमिका निश्चित रूप से बहुत प्रभावी रही है, हार्ट ट्रांसप्लांट, किडनी ट्रांसप्लांट जैसी बड़ी-बड़ी सर्जरी से लेकर दूसरी बीमारियों में इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन आज स्थिति यह बन गयी है कि फायदे का सौदा न होने के कारण नयी एंटीबायोटिक की खोज नहीं हो रही हैं, ऐसे में जो पुरानी एंटीबायोटिक्स हैं, उनके अत्यधिक प्रयोग से रेजिस्टेंस की स्थिति बनती जा रही है, जो कि चिंताजनक है, ऐसे में हमें एंटीबायोटिक्स का सही और सटीक इस्तेमाल करने की जरूरत है।
ये विचार प्रो अशोक रतन, पूर्व प्रोफेसर, AIIMS, नई दिल्ली, कॉमन वेल्थ फेलो, INSA DFG फेलो, पूर्व SEARO अस्थायी सलाहकार, पूर्व WHO लैब निदेशक (CAREC/PAHO), अध्यक्ष चिकित्सा समिति और गुणवत्ता, रेडक्लिफ लैब्स ने “अजेय महामारी बनने से पहले अदृश्य महामारी से निपटना” “Tackling the invisible pandemic before it becomes the invincible pandemic” विषय पर अपने व्याख्यान में व्यक्त किये। केजीएमयू में ब्राउन हॉल में केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा “अस्तित्व के 35 साल” और “पहला स्थापना दिवस व्याख्यान” का आयोजन किया गया।
अपने व्याख्यान में प्रो अशोक रतन ने कहा कि एंटीबायोटिक्स से होने वाले रेजिस्टेंस को समाप्त करना आसान नहीं है लेकिन इसे रोका जरूर जा सकता है, इसके लिए कई प्रकार के कदम उठाने होंगे। उन्होंने बताया कि जिस मरीज को एंटीबायोटिक्स का रेजिस्टेंस है उससे दूसरे व्यक्तियों में न फैले, इसका बचाव करना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा इसका फैलाव हाथों से होता है, रेजिस्टेंस वाले मरीज को छूने के बाद हाथ नहीं धोये तो बैक्टीरिया का संक्रमण हाथों के सहारे उसे व जिसे वह छू रहा है, उसे संक्रमित कर सकता है। हॉस्पिटल में नर्स और चिकित्सकों को इसका ध्यान रखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल मनुष्यों में तो सिर्फ 30 प्रतिशत होता है, 70 प्रतिशत इस्तेमाल जानवरों में होता है, इसे मीट बेचने वाले लाभ के लिए मुर्गा, सुअर, बकरा जैसे जानवरों को मोटा-ताजा करने के लिए करते हैं। इनसे भी मनुष्यों में फैलने का खतरा रहता है।
एक और बिंदु का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि बुखार आने पर बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर एक-एक करके टेस्ट कराकर मलेरिया, डेंगी, टायफॉयड, चिकनगुनिया, स्क्रब टायफस जैसी बीमारियों का पता लगाते हैं, इस प्रक्रिया में करीब एक सप्ताह लग जाता है, अगर मरीज भर्ती है तो एक तरफ उसका रोज का खर्च हो रहा है दूसरी ओर रोग भी पकड़ में नहीं आ रहा है, ऐसे में होना यह चाहिये कि अगर एक नमूना लेकर इन सभी बीमारियों का टेस्ट कर दिया जाये तो एक बार में ही संक्रमण का पता लग जायेगा, जिससे डायग्नोसिस का समय बच जायेगा और मरीज का खर्च भी।
एक और महत्वपूर्ण सलाह देते हुए डॉ रतन ने बताया कि बहुत से डॉक्टर खांसी, जुकाम, बुखार के मरीजों को एंटीबायटिक दे देते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिये। इसके लिए होना यह चाहिये कि जैसे ही मरीज अस्पताल में आये तो उसी समय उसका प्रोकैल्सिटोनिन टेस्ट कर लिया जाये, प्रोकैल्सिटोनिन टेस्ट एक बूंद खून से हो जाता है तथा इसकी रिपोर्ट करीब 20 मिनट में आ जाती है, इस टेस्ट से पता चल जाता है कि मरीज को बैक्टीरिया से बुखार आ रहा है अथवा वायरस से, करीब 40 प्रतिशत मरीजों में बुखार की वजह वायरस होती है, ऐसे में इन मरीजों को एंटीबायोटिक देने का कोई लाभ नहीं होगा, यानी इन 40 फीसदी मरीजों को एंटीबायोटिक से बचाया जा सकता है।
संक्रामक रोगियों के नैदानिक निर्णय लेने में माइक्रोबायोलॉजिस्ट को शामिल होना चाहिये
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पुरी ने उत्तर प्रदेश राज्य के लिए कोविड-19 के दौरान अथक परिश्रम करने के लिए विभाग को बधाई दी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट को संक्रामक रोगों से पीड़ित रोगियों के नैदानिक निर्णय लेने में शामिल होना चाहिए। उन्होंने सर्वोत्तम रोगी प्रबंधन के लिए क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट और फिजिशियन के बीच नियमित बातचीत स्थापित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भविष्य में रोगी निदान में नैनो टेक्नोलॉजी, प्रोटियोनॉमिक्स, जीनोमिक्स और कम्प्यूटेशनल मॉडल दृष्टिकोण का अत्यधिक महत्व होगा।
कार्यक्रम में प्रो. अमिता जैन, प्रमुख, माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि माइक्रोबायोलॉजी विभाग 100 से अधिक परीक्षण प्रदान कर रहा है और वार्षिक परीक्षण भार 4 लाख से ऊपर है। विभाग के पास NABL मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला सेवाएं हैं और पिछले 2 वर्षों से इसे सर्वश्रेष्ठ पैरा-क्लिनिकल विभाग के रूप में आंका गया है। विभाग ने मेड इन इंडिया कोविड-19 किट के 40 से ज्यादा टेस्ट को मान्य किया है। IT यूपी राज्य के लिए COVID-19 परीक्षण के लिए मेंटर है और यूपी में RT-PCR लैब के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करता है। RTPCR द्वारा 44 लाख से अधिक COVID-19 नमूनों का परीक्षण किया गया।
कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ. शीतल वर्मा और प्रो. आर.के. कल्याण थे। कार्यक्रम में यूपी के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों के 250 से अधिक पूर्व छात्रों, शिक्षकों और छात्रों ने भाग लिया। डीन मेडिकल प्रो. ए.के. त्रिपाठी, सीएमएस प्रो. एस.एन. संखवार, प्रो. गोपा बनर्जी , प्रो. प्रशांत गुप्ता, डॉ. पारुल जैन, डॉ. सुरुचि, डॉ. श्रुति और अन्य प्रतिष्ठित फैकल्टी इस अवसर पर उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख मस्तान सिंह, एसजीपीजीआई की प्रो उज्ज्वला घोषाल, लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की प्रो ज्योत्सना अग्रवाल भी शामिल थे। प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों में प्रो. एकता गुप्ता, आईएलबीएस, नई दिल्ली, डॉ. रीति जैन, डॉ. संजीव सहाय, डॉ. विनीता मित्तल, डॉ. भावना जैन, प्रो शैलेन्द्र सक्सेना आदि शामिल थे।