-सावरकर विचार मंच ने पुण्यतिथि पर आयोजित की श्रद्धांजलि सभा
–लक्ष्मी नारायण अग्रवाल की ‘हिंदुओं की संघर्ष गाथा’ पुस्तक का विमोचन
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। महान वीर सावरकर ने विपरीत परिस्थितियों में किस तरह संघर्ष किया, कैसे आजादी आयी, क्यों आयी, किसकी क्या भूमिका थी, देश की आजादी के लिए किन लोगों को कैसी-कैसी परिस्थितियों से गुजरना पड़ा इसके बारे में आज बच्चों को बताने की जरूरत है। सावरकर को अंडमान जेल की काली कोठरी में सड़ाया गया। सावरकर के बारे में किताबों में नहीं लिखा गया। सावरकर के बारे में विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिये था, शोध किया जाना चाहिये था।
यह बात कश्मीर के प्रमुख मानव अधिकार एक्टिविस्ट सुशील पंडित ने यहां क्रांतिकारी वीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि पर यहां उद्यान भवन के सभागार में बुधवार 26 फरवरी को आयोजित एक श्रद्धांजति सभा में मुख्य वक्ता के रूप में कही। इस कार्यक्रम का आयोजन सावरकर विचार मंच के तत्वावधान में किया गया था। सुशील पंडित ने कहा कि भारत के विभाजन के समय जैसी त्रासदी थी, ऐसी त्रासदी कभी देखी नहीं गयी, निर्दोष लोग मारे गये, लेकिन इन सब बातों को बताने के लिए हमारे पास ढंग की पुस्तक नहीं है। कुछ लोगों ने संस्मरण लिखे जरूर हैं लेकिन वे उन्होंने अपने-अपने हिसाब से अपने दृष्टिकोण के पोषण के लिए लिखे हैं, कुल मिलाकर देखा जाये तो आमतौर पर लीपापोती है। उन्होंने कहा कि किसने क्या कहा, कहां से शुरुआत हुई, यह नयी पीढि़यों को बताने की जरूरत है। इस लीपापोती की परतें उखाड़ कर सच्चाई जानने का समय है, देश को सच्चाई बताने का समय है।
सुशील पंडित ने अंग्रेजी शासनकाल में वीर सावरकर पर किये गये अत्याचार के बारे में बताते हुए कहा कि वीर सावरकर को दो बार कैद में 50 साल की सजा काला पानी दी गयी थी, उन्हें अंडमान के जेल में रखा गया था। उन्होंने बताया कि उनके मनोबल को तोड़ने के लिए उन्हें जेल में ऐसी जगह रखा गया था जहां सामने फांसी दी जाती थी। सुशील पंडित ने बताया कि वीर सावरकर जेल की दीवारों पर कविता लिखते थे और फिर उन्हें पढ़ते थे, ऐसे में जेल के अधिकारियों ने उन्हें परेशान करने के लिए उनकी लिखी कविताओं पर पुताई करा देते थे। लेकिन अधिकारी सावरकर का जज्बा कम नहीं कर सके, उन्होंने कविताओं को कंठस्थ कर लिया।
उन्होंने बताया कि सावरकर ने अपने जज्बातों, इंद्रियों पर वश रख विपरीत परिस्थितियों का किस तरह सामना किया जाता है, इसके बारे में स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जीवन वृत्तांत से प्रेरणा ली। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के एक मंत्री मणिशंकर अय्यर ने 16 साल पूर्व अंडमान जेल जाकर वहां लगी वीर सावरकर के नाम की तख्ती तख्ती हटा दी थी, इसके 11 साल बाद फिर से लगायी गयी है।
सुशील पंडित ने कार्यक्रम में हैदराबाद से आये साहित्यकार, इतिहासकार लक्ष्मी नारायण अग्रवाल की लिखी पुस्तक ‘हिंदुओं की संघर्षगाथा’ का विमोचन भी किया। उन्होंने इस पुस्तक के लेखन के लिए लेखक की तारीफ की। उन्होंने कहा कि लक्ष्मी नारायण अग्रवाल जैसे लोग धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सावरकर के बारे में लिखकर कुछ दीये जलाये हैं।
दिल्ली में हुई हिंसा पर भी सुशील पंडित ने अफसोस जताया। उन्होंने कहा कि आज भी मैंने खबर सुनी कि आईबी में काम करने वाले की लाश नाले में मिली है, इससे पूर्व हेड कॉन्स्टेबल की हत्या हो गयी थी, दिल्ली में हिंसा पर काबू न पाने पर नाखुशी दिखाते हुए सुशील पंडित ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कोटिश: धन्यवाद देते हुए उनकी तारीफ की, उन्होंने कहा कि योगी ने टिप्पणियों की परवाह न करते हुए जो अपना काम किया वह अच्छा है, उन्होंने अपना राजधर्म निभाते हुए कि मैं जनता का मुख्यमंत्री हूं, उनके जान-माल की रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है, अपना काम करते रहे।
कार्यक्रम में एक अन्य वक्ता अभियंता ट्रेड यूनियन लीडर शैलेंद्र दुबे ने वीर सावरकर के आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक पहलू पर अपने विचार प्रकट किये। उन्होंने वीर सावरकर को राष्ट्रीय चेतना आजादी की लड़ाई का नायक बताया। राष्ट्रपति पदक से सम्मानित रिटायर्ड मेजर जनरल एके चतुर्वेदी ने वीर सावरकर के चिंतन को देश की सेनाओं के सम्मान का प्रतिबिंब और देश को हर नागरिक को सैनिक के रूप में देखने की इच्छा के बारे में बताया। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व चांसलर डॉ एस पी सिंह ने वीर सावरकर और लखनऊ के बारे में उनके संबंधों को पर प्रकाश डाला उन्होंने कहा कि मैंने अपने कार्यकाल में शासन को शोध पीठ स्थापित करने का प्रस्ताव भेजा था, जो कि अभी विचाराधीन है। कार्यक्रम में स्वामी श्रेयानंद ने अपने विचार प्रकट करते हुए गीता के बारे में बताया स्वामी श्रेयानंद ने गीता का हिंदी, अंग्रेजी अनुवाद कर उसे हर एक तक पहुंचाने का कार्य किया है। कार्यक्रम में एक अन्य स्वामी योगानंद ने भी अपने विचार प्रकट किए।
इससे पूर्व कार्यक्रम में आए अतिथियों का स्वागत करते हुए सावरकर विचार मंच के अध्यक्ष व संयोजक डॉ अजय दत्त शर्मा ने बताया कि सावरकर विचार मंच वीर सावरकर की जयंती और पुण्यतिथि प्रतिवर्ष मनाता आ रहा है। उन्होंने बताया कि अमीनाबाद स्थित झंडेवाला पार्क का इतिहास वीर सावरकर से ही जुड़ा है, उन्होंने बताया कि सावरकर ने ही वहां पहली बार झंडा फहराया था, इसी कारण उसका नाम झंडेवाला पार्क पड़ा। अंत में धन्यवाद प्रस्ताव कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केजीएमयू के सर्जरी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रमाकांत ने प्रस्तुत किया उन्होंने धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए अपनी बात को दुष्यंत कुमार की कविता की दो लाइनों में बयां करते हुए कहा सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिये।