-क्या राइट टू फूड में होटल में खाना, राइट टू एजूकेशन में प्राइवेट स्कूल में फ्री दाखिला मिलता है ?
-राजस्थान की कांग्रेस सरकार के ‘राइट टू हेल्थ’ बिल का विरोध कर रहे डॉक्टरों के समर्थन में आईएमए का देशव्यापी ‘काला रिबन’ दिवस
-आईएमए लखनऊ में भी लगा डॉक्टरों का जमावड़ा, दिल खोलकर निकाली भड़ास
सेहत टाइम्स
लखनऊ। सरकार की पहल पर बनवाये गये शौचालयों का अगर इस्तेमाल करना पड़ जाये तो बिना पैसे दिये इस्तेमाल करने को नहीं मिलता है, और निजी डॉक्टर से यह उम्मीद कि वह फ्री में इलाज करे, आखिर क्यों… ‘…सबके लिए अधिकार है तो क्या डॉक्टर का कोई अधिकार नहीं है, हमें भी तो अपना परिवार पालना है… हम अगर एम्स, एसजीपीजीआई जैसे उच्च संस्थानों में ट्रीटमेंट कराने जाते हैं तो क्या हमें फ्री इलाज मिलता है…’ ‘…आखिर हम क्यों फ्री में देखे, वर्षों तक पैसा और समय लगाकर की गयी डॉक्टरी की पढ़ाई के बाद अगर हमने सरकारी नौकरी का चुनाव न कर निजी प्रैक्टिस का रास्ता चुना है तो क्या हमें अपने रास्ते पर चलने का अधिकार नहीं है, हम क्यों आखिर सरकार द्वारा थोपे गये औचित्यहीन मनमाने नियमों के तहत कार्य करें… ‘…राइट टू एजूकेशन भी तो है, तो क्या कोई भी किसी भी निजी स्कूल/कॉलेज में पढ़ाना चाहे तो क्या उसे एडमिशन मिल जायेगा…राइट टू फूड यानी भोजन का अधिकार है, तो क्या किसी भी होटल में जायें तो फ्री खाना मिल जायेगा…’
आक्रोश से भरे ये वे उद्गार हैं जो आज यहां आईएमए भवन में आईएमए लखनऊ द्वारा बुलायी गयी इमरजेंसी जनरल बॉडी मीटिंग में आये डॉक्टरों ने व्यक्त किये। यह इमरजेंसी मीटिंग राजस्थान के घटनाक्रम को लेकर आईएमए हेडक्वार्टर से भेजे गये विरोध प्रदर्शन करने के निर्देश के अनुपालन में बुलायी गयी थी।
आपको बता दें कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार द्वारा विधानसभा में लाये गये स्वास्थ्य का अधिकार बिल बीती 21 मार्च को पारित होने के बाद इसका जमकर विरोध हो रहा है। विरोध की वजह है कि बिल के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक प्राइवेट चिकित्सक को इमरजेंसी में पहुंचे मरीज का न सिर्फ इलाज करना होगा बल्कि मुफ्त इलाज करना होगा। बिल का विरोध राजस्थान से शुरू हुआ था, जहां प्रदर्शनकारी डॉक्टरों पर लाठियां बरसायी गयीं, पानी की धार छोड़ी गयी, इसके बाद इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन ने विरोध की कमान अपने हाथ में लेकर राज्यव्यापी विरोध को देशव्यापी विरोध बनाने का फैसला लिया है।
इसके प्रथम चरण में आज 27 मार्च को देश भर के चिकित्सकों द्वारा काली पट्टी बांधकर कार्य करते हुए विरोध जताया गया। इसी क्रम में लखनऊ आईएमए के पदाधिकारी व सदस्यों ने अपने-अपने सरकारी और निजी कार्यस्थलों पर काली पट्टी बांधकर कार्य किया, शाम को आईएमए भवन में आयोजित जनरल बॉडी मीटिंग में भाग लेते हुए पूरे जोशो-खरोश से इस लड़ाई में दो-दो हाथ करने का ऐलान किया। मीटिंग में भाग लेने वाले चिकित्सकों ने खुले मंच से अपने-अपने विचार रखे।
काले कानून के वापस होने तक जारी रहेगा विरोध
अध्यक्ष डॉ जेडी रावत ने आये हुए चिकित्सकों का स्वागत करते हुए कहा कि सरकारें अपने दायित्व को प्राइवेट सेक्टर पर बिना किसी खर्च के थोपना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि बिल बनाते समय बनी कमेटियों में डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व न रखना निंदनीय है। बिल में बिना सुनवाई सजा का प्रावधान है, इमरजेंसी की कोई परिभाषा नहीं है। उन्होंने कहा कि यह बिल डॉक्टर को राइट टू लीव अधिकार से वंचित करने का प्रयास है। केंद्र और राज्य सरकारें एक जैसा कदम उठा रही हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार जब तक इस काले कानून को वापस नहीं लेगी तब तक आईएमए लखनऊ इसका हर स्तर पर विरोध जारी रखेगी।
विशेषज्ञ डॉक्टर के न देखने पर कुछ हुआ तो कौन होगा जिम्मेदार ?
सचिव डॉ संजय सक्सेना ने कहा कि बिल के अनुसार सभी निजी चिकित्सकों को इमरजेंसी वाले मरीज को देखना होगा लेकिन सवाल यह है कि अब अगर कोई कोई आंख वाला डॉक्टर है और उसके यहां हार्ट अटैक वाला मरीज आ जाये तो डॉक्टर क्या करेगा, किसी भी तरह से अगर देख भी लिया और इस दौरान अगर मरीज की तबीयत और खराब हो गयी या फिर उसकी मृत्यु हो गयी तो इसका जिम्मेदार कौन होगा। फिर इसके लिए डॉक्टर को दोषी ठहराया जायेगा कि जब आप हृदय रोग विशेषज्ञ नहीं हैं, और आपके पास हृदय रोग के उपचार के उपकरण भी नहीं है तो आपने हृदय रोगी का इलाज क्यों किया। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य राज्य का विषय, राज्य की जिम्मेदारी है, निजी क्षेत्र के डॉक्टर का नहीं।
डॉक्टरों से सारी उम्मीदें, लेकिन डॉक्टर के लिए कोई सुविधा नहीं
चर्चा में आया कि डॉक्टरों से सारी उम्मीदें लेकिन डॉक्टर के लिए कोई सुविधा नहीं, उन्हें विभिन्न प्रकार के टैक्स देने पड़ते हैं, अब तो नगर निगम भी टैक्स ले रहा है। डॉक्टरों का कहना था कि डॉक्टरों के लिए कहीं छूट है, तो आखिर डॉक्टरों से क्यों आशा रखते हैं, अगर डॉक्टर मुफ्त इलाज करता रहेगा तो आखिर वे अपने स्टाफ को सैलरी कहां से देगा, कर्मचारियों का परिवार किस तरह चलेगा। यही नहीं आखिर कितने लोगों का मुफ्त इलाज करेगा। कहा गया कि राइट टू हेल्थ आये जरूर आये लेकिन सरकार के दम पर आये, निजी अस्पतालों के दम पर नहीं।
सीएम से पूछिये कौन सा आदेश मानें
एक चिकित्सक ने प्रश्न उठाया कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में है कि डॉक्टर आये हुए मरीज को देखने से इनकार नहीं कर सकता है, लेकिन साथ ही एक अन्य आदेश में यह भी है कि सम्बन्धित विधा वाले डॉक्टर को ही इलाज करना चाहिये, जब फैसिलिटीज नहीं थी तो मरीज का इलाज क्यों किया। इस पर एक चिकित्सक का सुझाव था कि कोर्ट के दोनों आदेशों को मुख्यमंत्री को दिखाकर उन्हीं से पूछे कि कौन सा आदेश मानना है।
चुनावी लाभ के लिए बिल लायी है राजस्थान सरकार
डॉक्टरों की चर्चा में एक बात यह भी आयी कि यह बिल राजस्थान में चुनावी लाभ लेने के लिए अशोक गहलोत सरकार लायी है, इसके बल पर जीत गये तो ठीक नहीं जीते जो अगली सरकार जो बनेगी वह भुगतेगी… चर्चा में यह भी आया कि यह बिल उसी राजस्थान की कांग्रेस सरकार ला रही है जिस राजस्थान में लोगों के दबाव के चलते महिला चिकित्सक ने आत्महत्या कर ली थी। डॉक्टरों ने चर्चा करते हुए कहा कि राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री ने डॉक्टरों को कसाई की संज्ञा देते हुए कहा है, कि डॉक्टर कसाई की तरह मरीज को चूसते हैं, डॉक्टरों पर डंडे चल गये तो क्या हुआ। राजस्थान के मंत्री के इस बयान की निंदा की गयी।
चिकित्सकों की कम उपस्थिति पर चिंता जतायी गयी
पदाधिकारियों ने डॉक्टरों की कम उपस्थिति पर अफसोस जताया। कहा गया कि कम से कम 1500 सदस्यों वाली आईएमए शाखा की इमरजेंसी जनरल बॉडी की मीटिंग में कम संख्या में उपस्थिति शोचनीय है। एक नामी और वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा कि हमें अपनी स्ट्रेन्थ बढ़ानी है। अकेले डॉक्टर नहीं हेल्थ केयर प्रोवाइडर को भी साथ रखना चाहिये। डॉक्टरों की यूनिटी बढ़ाने की जरूरत है, सभी जानते हैं कि यह जरूरी है, लेकिन फिर भी नहीं करते हैं, ऐसे में हमें अपनी एकता को दर्शाने की आवश्यकता है। किसी ने सख्ती की बात कही।
इतना ध्यान तो हम लोग स्वयं ही रखते हैं
डॉक्टरों का कहना था कि वैसे देखा जाये तो हम लोग स्वयं ही बिना किसी बिल के रोजाना की प्रैक्टिस में अनेक बार फ्री में इलाज, फ्री में सलाह देते रहते हैं, इमरजेंसी में आये हुए मरीज की यथासंभव मदद भी करते हैं लेकिन इसे मनमाने नियमों की तरह बिल बनाकर थोपना कतई ठीक नहीं है।
डॉ मनोज अस्थाना, डॉ सरस्वती देवी, डॉ राकेश सिंह, डॉ बीपी सिंह, डॉ संजय लखटकिया, डॉ वारिजा सेठ, डॉ अनूप अग्रवाल, डॉ प्रांजल अग्रवाल, डॉ सरिता सिंह, डॉ ऋतु सक्सेना, डॉ रूपाली श्रीवास्तव, डॉ निधि जौहरी, डॉ अजय कुमार, डॉ मुकुलेश गुप्ता, डॉ टहिल्यानी, डॉ अलीम सिद्दीकी, डॉ संजय निरंजन, डॉ राजीव सक्सेना, डॉ अर्चिका गुप्ता, डॉ गुरमीत सिंह, डॉ अभिलाषा डॉ अर्चना मिश्रा, डॉ सौरभ चन्द्रा, डॉ आरबी सिंह सहित अनेक चिकित्सक उपस्थित रहे।