-रिसर्च में पाया गया है कि गठिया की मुख्य वजह यूरिक ऐसिड बढ़ना नहीं, बल्कि है मानसिक तनाव
-कन्सल्टेंट फिजीशियन डॉ गौरांग गुप्त से ‘सेहत टाइम्स’ की विशेष वार्ता -पार्ट 2
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। राजधानी लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के कन्सल्टेंट फिजीशियन डॉ गौरांग गुप्ता ने सेहत टाइम्स के साथ साक्षात्कार में पिछले अंक में साइकोसोमेटिक यानी हमारी सोच के चलते मस्तिष्क से होने वाले स्राव के कारण अनेक अंगों में होने वाले रोगों के बारे में जानकारी दी थी। (यहां क्लिक करें-पिछले अंक में…एसिडिटी होने का मूल कारण पेट से नहीं, बल्कि आपकी सोच से है) इसी क्रम में आगे की जानकारी देते हुए इस अंक में डॉ गौरांग ने बताया कि किस प्रकार इन रोगों की पहचान की जाती है तथा किस प्रकार इसका इलाज किया जाता है।
डॉ गौरांग ने बताया कि सामान्यत: चिकित्सकों द्वारा साइकोसोमेटिक विकारों से उत्पन्न होने वाले रोगों के मूल कारणों में न जाकर रोग के लक्षणों के हिसाब से इलाज किया जाता है, चूंकि उस रोग के पीछे के उसके साइकोसोमेटिक कारणों को नहीं जाना जाता है, इससे रोग का स्थायी इलाज नहीं हो पाता है। डॉ गौरांग बताते हैं कि होम्योपैथी में रोग के पीछे के साइकोसोमेटिक कारणों की अवधारणा पर उपचार की व्यवस्था है, यही वजह है कि होम्योपैथी में किसी एक रोग की एक दवा नहीं है, बल्कि एक ही रोग की सैकड़ों की संख्या में दवाएं हैं, प्रत्येक रोगी को उसकी प्रकृति, उसके लक्षण, उसकी साइकोसोमेटिक हिस्ट्री को समझ कर उस मरीज विशेष के लायक सटीक दवा का चुनाव किया जाता है।
गठिया के 90 फीसदी मरीजों का यूरिक एसिड होता है नॉर्मल
डॉ गौरांग कहते हैं कि साइकोसोमैटिक विकारों के कारण होने वाले अनेक रोगों में एक रोग है गठिया। उन्होंने कहा कि सामान्यत: यह माना जाता है कि गठिया रोग में यूरिक एसिड बढ़ जाता है जबकि असलियत यह है कि गठिया के मामलों में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में यूरिक एसिड नॉर्मल होता है यूरिक एसिड से सिर्फ एक प्रकार का गठिया होता है जिसे गाउट कहा जाता है लेकिन 90 प्रतिशत लोगों को गठिया में यूरिक एसिड नॉर्मल होता है।
कम उम्र के लोग हो रहे शिकार
उन्होंने बताया कि एक और खास बात यह देखी गयी है गठिया के रोगियों में अब कम उम्र के किशोर व युवा भी पाये जा रहे हैं, इनकी जब हिस्ट्री ली गयी तो तनाव के ऐसे अनेक कारण सामने आये जिनसे इनको कम उम्र में गठिया की शुरुआत हो गयी थी। यहां रिसर्च सेंटर पर इनकी हिस्ट्री ली गयी तो उनके तनाव के बारे में ज्ञात हुआ। गठिया के कुछ केस कम उम्र के और कुछ अधेड़ उम्र के रोगियों के बारे में उन्होंने जानकारी दी।
केस नम्बर 1
46 वर्षीया महिला गठिया के रोग की शिकायत लेकर पहुंचीं। हिस्ट्री ली तो पता चला कि महिला के तनाव का कारण सामने आया कि जब उनकी 13 वर्ष की उम्र थी उस समय बहन का विवाह हुआ था, तो इनके ऊपर सारी जिम्मेदारियां आ गयीं, बीमार मां का बोझ आ गया, इसके बाद शादी हुई तो पति का स्वभाव लापरवाही वाला मिला, महिला का ध्यान नहीं रखता था। केयरिंग नहीं है, यानी खयाल रखने वाले नहीं हैं।
केस 2
22 वर्ष की लड़की को 20 वर्ष की उम्र में अर्थराइटिस हो गया। हिस्ट्री ली तो पता चला कि पिता की शराब पीने की आदत थी जिससे घर का माहौल खराब हो गया था।
केस 3
एक महिला की पति से अनबन थी, दूसरी ओर बेटी का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं चल रहा है, उसे इसी बात का टेंशन था
केस 4
2017 में 17 वर्ष की आयु में एक किशोर आया, बताया कि पांच साल पहले लड़के को 2012 से गठिया है। हिस्ट्री ली गयी तो पता चला कि 2012 में उसकी दादी की मृत्यु हो गयी थी, बच्चे को दादी से बहुत लगाव था, इसके बाद बच्चे को दिखाया गया तो उसे डॉक्टरों द्वारा उसे स्टेरॉयड दवाएं दी गयी थीं, इसके बाद भी बच्चे का रोग सही नहीं हुआ।
केस 5
एक और युवा 2017 में आये थे बताया कि 2006 में गठिया शुरू हुआ हिस्ट्री से पता चला कि युवक का आईएएस का इंटरव्यू था लेकिन स्वास्थ्य के कारणों से परीक्षा में नहीं बैठ पाये, चूंकि युवक बहुत महत्वाकांक्षी है, इससे उसे झटका लगा और अर्थराइटिस की बीमारी शुरू हो गयी।
केस 6
एक और महिला गठिया की शिकायत लेकर आयी हिस्ट्री ली गयी तो पता चला कि महिला के भाई का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं है, भाई की शराब पीने की आदत है, इसके साथ ही भाभी का किसी के साथ अफेयर चल रहा है, यही नहीं महिला मरीज का पति भी उनका ध्यान नहीं देता है।
केस 7
एक और महिला ने 2017 में रिसर्च सेंटर में दिखाया, उसने बताया कि दस वर्षों से कमर में दर्द की दिक्कत बनी हुई थी। हिस्ट्री ली गयी तो पता चला कि महिला के पति की 2010 में कैंसर से मृत्यु हुई थी, दो बेटे हैं, दो बेटियां हैं, सबसे बड़ी बेटी 35 साल की है, अभी उसी की शादी नहीं हो पायी है, इसी बात का महिला को तनाव था।
केस 8
एक और महिला 2017 में सारे जोड़ों में दर्द की शिकायत लेकर आयीं बताया कि दर्द 1996 से शुरू हो गया था। जब पूछा तो पता चला कि उनकी शादी 1996 में हुई थी, शादी के बाद पता चला कि उसके पति का दूसरी औरत से अफेयर है।
केस 9
एक महिला के पहले एक हाथ में फ्रोजन शोल्डर हो गया उसके बाद साल भर बाद दूसरे हाथ में फ्रोजन शोल्डर हो गया। हिस्ट्री ली गयी तो पता चला पहली बार उसे अपने 22 साल के बेटे के अफेयर के बारे में पता चला था, दूसरी बार उसे उसकी शादी के फैसले के बारे में पता चला था। महिला को इस बात को लेकर तनाव था, महिला ने बेटे को बहुत समझाया कि अभी थोड़ा नौकरी में स्टेब्लिश हो जाये लेकिन वह मानने को तैयार न था।
डॉ गौरांग बताते हैं कि ये कुछ चंद केस हैं इस तरह के बहुत से केस हैं जिनमें हिस्ट्री जानने पर पता चलता है कि किसी न किसी तनाव के चलते गठिया हो गया था। उन्होंने बताया कि इन सभी रोगियों को उनके तनाव के कारणों, चीजों को लेकर उनकी पसंद-नापसंद, उनकी प्रकृति (ठंडा अच्छा लगता है कि गर्म आदि) जैसी अनेक बातों को देखते हुए इस नेचर के व्यक्ति के लायक होम्योपैथिक दवा का चुनाव कर उनका इलाज किया गया, परिणामस्वरूप सभी का गठिया पूरी तरह क्योर हो गया। उन्होंने बताया कि मरीज को जब गठिया में आराम हो जाता है तो एक बार फिर उसके रह्यूमेट्रॉयड फैक्टर और सीआरपी की जांच करायी जाती है, जब रिपोर्ट में इसका लेवल नॉर्मल आता है, तभी इसे पूरी तरह क्योर मानकर दवा बंद की जाती है।
तनाव तो सभी को, फिर दवा का क्या लाभ
डॉ गौरांग कहते हैं कि मरीज प्रश्न करते हैं कि तनाव तो ऐसी चीज है कि सभी को होता है, क्योंकि अलग-अलग परिस्थितियों की वजह से तनाव होना लाजिमी है, ऐसे में दवा करने से क्या फायदा है। इस बारे में डॉ गौरांग बताते हैं कि इसका लाभ यह है कि तनाव के चलते शरीर में होने वाले बदलाव से शरीर को जो नुकसान होता है, दवा खाने से वह नुकसान नहीं होता है।
बच्चों को इग्नोर न करें
डॉ गौरांग कहते हैं कि बच्चों में कम उम्र में गठिया होने का कारण है कि बच्चों की जो मानसिक स्थिति है उसे परिवार में सुना नहीं जाता है। उनकी बातों को टाल दिया जाता है, अधिकतर घरवाले मानते हैं कि बच्चों को किस बात का टेंशन है, जबकि ऐसा नहीं है। उनकी बातों को सुनना चाहिये, समझना चाहिये और यदि उसकी बात मानने लायक नहीं है कि तो उसे समझाकर संतुष्ट करना चाहिये, जिससे कि वह तनाव में न रहे।
उन्होंने कहा कि बच्चे की चार वर्ष की उम्र से माइंड डेवलेप होना शुरू हो जाता है, उसका एक व्यक्तित्व होता है, बच्चों की समस्याओं को समझना चाहिये, उनसे बात करना चाहिये, उन्हें नजरंदाज नहीं करना चाहिये अगर कोई बच्चा चिड़चिड़ा रहा है, गुस्सा कर रहा है तो हो सकता है कि उसके मन में कोई ऐसी बात हो जिसकी वजह से वह परेशान हो, ऐसे में उसकी बात सुननी चाहिये, समझनी चाहिये। समाज में एक आम धारणा है कि बच्चों की ही गलती होगी, लेकिन यह सच नहीं है, देखा गया है कि लगभग आधे मामलों में बच्चे गलत नहीं होते हैं, जरूरत है उनकी भावनाओं को समझने की।