-यूट्राइन फायब्रायड पर 26 साल की स्टडी की सफलता को प्रस्तुत किया डॉ गिरीश गुुप्ता ने
-दो दिवसीय राष्ट्रीय होम्योपैथिक सम्मेलन में देशभर से आये होम्योपैथिक चिकित्सकों ने प्रस्तुत किये शोध पत्र
-बच्चों में पैरों का टेढ़ापन, कैंसर, दुर्लभ रोग, मानसिक रोग आदि विषयों पर दिये गये व्याख्यान
सेहत टाइम्स
लखनऊ। यहां साइंटिफिक कन्वेन्शन सेंटर में शनिवार 13 सितम्बर को शुरू हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय होम्योपैथिक सम्मेलन के वैज्ञानिक सत्रों में अनेक चिकित्सकों ने अपने शोध पत्रों और स्टडी को प्रस्तुत किया। अब तक अनेक रोगों पर की गयीं रिसर्च को अंजाम देने वाले लखनऊ के डॉ गिरीश गुप्ता ने हार्मोनल इम्बैलेंस यानी हार्मोन के असंतुलन के चलते गर्भाशय में गांठ यानी यूट्राइन फायब्रायड बीमारी से ग्रस्त 1157 केसेज की स्टडी के बारे में प्रेजेन्टेशन दिया। 1999 से लेकर अगस्त 2025 तक की अवधि वाले इन केसेज का पूरा रिकॉर्ड व साक्ष्य मौजूद हैं।
डॉ गिरीश ने कहा कि साक्ष्य आधारित, तथ्य आधारित तथा सत्य आधारित इस स्टडी के परिणामों की बात करें तो कुल 1157 केसेज में 620 केसेज (54 प्रतिशत) में लाभ हुआ, इनमें 289 केसेज की गांठें समाप्त हो गयीं जबकि 331 की गांठों का आकार कम हुआ। 197 केसेज में उपचार का कोई असर नहीं हुआ जबकि 340 केसेज में गांठों में वृद्धि हो गयी। उन्होंने कहा कि 1157 केसेज में 228 केसेज ऐसे थे जिनकी गांठों का आकार 50 एमएम से ज्यादा था, इन 228 केजेस में सिर्फ 2 केसेज ऐसे थे जिनकी गांठ पूरी तरह से गायब हो गयी जबकि 102 की गांठ का आकार कम हो गया, 27 में कोई बदलाव नहीं आया जबकि 93 केसेज में रोग में वृद्धि हुई। उन्होंने कहा कि यह स्टडी बताती है कि इसके सर्वाधिक 91 प्रतिशत मामले 26-50 वर्ष की आयु वालों में मिले जबकि 25 वर्ष की आयु वाले 59 लोग और 50 वर्ष से ऊपर की आयु वाले 45 लोग इसके शिकार पाये गये। शादीशुदा लोगों में यह बीमारी ज्यादा पायी गयी 90 प्रतिशत 1043 लोग शादीशुदा तथा 114 लोग अविवाहित थे।
डॉ गिरीश ने बताया कि उपचार में ठीक हुए लोगों में सबसे बड़ी गांठ का साइज 89×63 mm था जो कि डेढ़ वर्ष में गल गयी जबकि सबसे कम समय में गलने वाली 34x32x29 mm साइज की गांठ को गलने में 2 माह का समय लगा। उन्होंने बताया कि इन सभी केसेज में होम्योपैथिक के सिद्धांत के अनुसार दवा का चुनाव करते समय मरीज के सिर्फ रोगग्रस्त ऑर्गन को नहीं बल्कि पूरे मरीज का आकलन किया गया उसकी शारीरिक और मन:स्थिति उसकी पसंद-नापसंद, उसकी प्रकृति, उसके साथ घटी विशेष घटनाओं आदि की विस्तार से हिस्ट्री लेकर दवा का चुनाव किया गया। यह हिस्ट्री बताती है कि यूट्राइन फाइब्रायड भले ही शारीरिक बीमारी है लेकिन इसके कारणों में मन की स्थिति की भूमिका अहम है।
उन्होंने स्लाइड के माध्यम से बताया कि मन की स्थिति का असर मस्तिष्क पर, मस्तिष्क से पिट्यूटरी ग्लैंड पर असर होने के बाद वहां से जो हार्मोन निकलते हैं वे शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाते हैं, और उस हिस्से में गांठ बना देते हैं। उन्होंने तीन मॉडल केसेज भी प्रेजेन्ट किये। उन्होंने प्रतिष्ठित होम्योपैथिक जर्नल्स एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी तथा दि होम्योपैथिक हैरिटेज जर्नल में इस पर प्रकाशित अपने शोध पत्र को भी स्लाइड के माध्यम से प्रदर्शित किया।
उन्होंने कहा अपनी स्टडी के आधार पर मैं यह संदेश विशेषकर अपने युवा चिकित्सकों को देना चाहता हूं कि हमें सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ना है। उन्होंने कहा कि यूट्राइन फायब्राइड के प्रत्येक मरीज को ठीक करने की गारंटी जैसी बात कहने से बचना होगा, आप मरीज को विश्वास में लेकर सच्चाई बताते हुए अच्छा करने की उसकी सहमति से कोशिश करिये, इससे मरीज का आपके और होम्योपैथी के प्रति विश्वास बना रहेगा। उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में सफलता के पीछे टीम का बहुत महत्व होता है, मेरे रिसर्च वर्क में भी हमारी टीम का विशेष योगदान है। टीम द्वारा मरीज के पंजीकरण से लेकर गहराई से उसकी हिस्ट्री लेने से लेकर उसको दवा दिये जाने तक के कार्यों को कुशलता, बेहतर तालमेल और सामंजस्य के साथ किया जाता है। उन्होंने एक स्लाइड में अपनी टीम के सदस्यों का भी सबसे परिचय कराया।
इसके अतिरिक्त कई अन्य चिकित्सकों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं, लखनऊ के ही डॉ पंकज श्रीवास्तव ने अपने व्याख्यान में बताया कि 10 से 11 साल तक के बच्चों के पैरों में अगर टेढ़ापन है तो उसको हम दवाओं और फिजिकल मेडिसिन से बहुत अच्छे से ठीक कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि वे अलग-अलग प्रकार के विकृति वाले ऑर्थों केसेज को पिछले लगभग 26 वर्षों से ठीक कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मेटाबोलिक बोन डिस्ऑर्डर के साथ जो विकृतियां आती हैं उनको होम्यो आर्थोहीलिंग से कैसे बेहतर किया जाता है। उन्होंने इलाज से पूर्व, इलाज के दौरान और इलाज के बाद की फोटो के साथ प्रस्तुत किया।
डॉ निशांत श्रीवास्तव ने त्वचा रोगों पर, डॉक्टर रवि सिंह द्वारा होम्योपैथी की सर्जरी की बीमारियों में उपयोगिता को अपने साक्ष्य के साथ प्रस्तुत किया गया डॉ प्रवीण कुमार ने दुर्लभ बीमारियों पर, डॉ एके गुप्ता ने मोटर न्यूरॉन डिजीज पर, डॉ प्रभात श्रीवास्तव ने कैंसर के रोगियों पर होम्योपैथिक उपचार पर अपनी प्रस्तुति दी।


