-बच्चों का अस्थमा पूरी तरह से ठीक होना संभव, बड़ों में होता है प्रभावी नियंत्रण

सेहत टाइम्स
लखनऊ। शरद ऋतु का आगमन और दीपावली इफेक्ट के चलते प्रत्येक वर्ष आजकल यानी अक्टूबर-नवम्बर माह में श्वास के रोगियों की परेशानी बढ़ जाती है। इस बीमारी के होम्योपैथिक उपचार के बारे में वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च #GCCHR के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता बताते हैं कि बचपन में अस्थमा होने पर होम्योपैथिक इलाज किये जाने पर इसका पूर्ण रूप से ठीक होना संभव है, लेकिन आयु बढ़ने पर चूंकि फेफड़ों में कई तरह के बदलाव आने लगते हैं तो पूर्ण और स्थायी रूप से तो नहीं लेकिन इस पर नियंत्रण रखना जरूर संभव है।
डॉ गिरीश ने बताया कि अस्थमा और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिस्ऑर्डर) दोनों ही बीमारियों में होम्योपैथी के क्लासिकल सिद्धांत यानी शारीरिक और मन:स्थितियों, आदत, स्वभाव, पसंद-नापसंद आदि के बारे में रोगी का इतिहास जानकर उसके अनुसार चुनी गयी दवाओं को दिया जाता है तो लाभ होता है।

क्या है अस्थमा और सीओपीडी
डॉ गिरीश बताते हैं कि सीओपीडी बीमारी में चूंकि फेफड़ों में स्थायी रूप से बदलाव जैसे कठोरता स्टिफनेस आ जाती है, उनका एक्सपेंशन कम होता है, इसलिए इसका पूर्ण उपचार नहीं हो सकता है, हां यह जरूर है कि होम्योपैथिक की दवाओं से इसे नियंत्रित रखते हुए मैनेज जरूर किया जा सकता है। इसी प्रकार अस्थमा की बीमारी में श्वासनलियों में सूजन आ जाती है और व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है। यह समस्या आमतौर पर एलर्जी, प्रदूषण, धूल, धुआं, ठंडे मौसम या तनाव के कारण बढ़ जाती है।
डॉ गिरीश ने बताया कि बच्चों को होने वाले अस्थमा को होम्योपैथिक दवाओं से पूरी तरह ठीक किया जाना संभव है, लेकिन जैसे-जैसे आयु बढ़ती है तो फेफड़ों में बदलाव आने के कारण इसे पूर्ण ठीक करना संभव नहीं हो पाता है, लेकिन इसे कंट्रोल करना मैनेज करना जरूर संभव होता है।
क्यों बेहतर है होम्योपैथिक उपचार
डॉ गिरीश ने बताया कि अगर पूर्ण रूप से रोग ठीक नहीं भी हो पाता है तो भी होम्योपैथिक उपचार बेहतर है क्योंकि इसके चार लाभ हैं पहला बीमारी की फ्रीक्वेंसी कम हो जाती है उदाहरणार्थ यानी बीमारी का अटैक जो महीने में दो बार तीन बार होता है, होम्योपैथिक दवाओं के सेवन के बाद बीमारी का यह अटैक दो-तीन महीने में एक बार आता है। दूसरा लाभ यह है कि अटैक की गंभीरता में कमी आती है, यानी होम्योपैथिक उपचार लेने वाले रोगी को जब बीमारी का अटैक आता है तो वह उतना गंभीर नहीं होता है, जितना होम्योपैथिक दवाएं न लेने वाले रोगी को होता है। तीसरा लाभ है कि यह इकोनॉमिकल है, क्योंकि होम्योपैथिक उपचार में खर्च अपेक्षाकृत काफी कम होता है, यानी यह जेब पर भी कम भार डालता है। चौथा लाभ है कि इलाज क्लीनिकली सेफ है यानी होम्योपैथिक दवाओं के कोई भी दुष्परिणाम नहीं होते हैं।

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