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चिंतनीय : प्रदर्शन का दबाव विद्यार्थियों को बना रहा मानसिक रूप से बीमार

-गुवाहाटी के प्रमुख शैक्षिक संस्थान में नवप्रवेशित विद्यार्थियों पर ए.के.जी.ओविहैम्स की स्टडी के परिणाम चौंकाने वाले

धरित्री दत्ता……………………………………………कार्तिक…………………………………डॉ एके गुप्ता

सेहत टाइम्स

लखनऊ/नयी दिल्ली। भारत एक युवा देश है और यहाँ दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है। 28.4 वर्ष की औसत आयु और 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों की बड़ी संख्या के साथ, हमारे देश में अपार संभावनाएँ हैं। यह स्थिति भारत को आत्मनिर्भर और आत्म-सस्टेनेबल देश बनाने के सपने को पूरा करने का एक बड़ा अवसर देती है। लेकिन अगर गहराई से देखा जाए तो तस्वीर उतनी उजली नहीं है। आज के युवा कई ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो बाहरी माहौल से ही नहीं बल्कि उनके भीतर से भी उत्पन्न होती हैं। अकेलापन, अपने लुक्स को लेकर असुरक्षा, कमजोर रिश्ते, दूसरों से लगातार स्वीकृति और प्रशंसा पाने की चाह, और भावनात्मक असंतुलन जैसी बातें युवाओं को मानसिक रूप से अस्थिर कर रही हैं। इसके साथ ही रोजगार बाजार में अनिश्चितता और बेरोजगारी की दर ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है। आज के युवा संघर्ष कर रहे हैं और उन्हें मदद की ज़रूरत है।

यह कहना है नयी दिल्ली के ए.के.जी.ओविहैम्स के संस्थापक-निदेशक डॉ एके गुप्ता का। उन्होंने बताया कि यह आकलन गुवाहाटी के एक प्रमुख संस्थान के विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य की जांच में सामने आया है। यह आकलन ए.के.जी. ओविहैम्स की मनोविज्ञान इकाई के क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट कार्तिक गुप्ता और धरित्री दत्ता ने अपनी टीम के साथ किया। उन्होंने बताया कि संस्थान के छात्र कल्याण कार्यक्रम के तहत नवप्रवेशित छात्रों के लिए आयोजित किये गये मानसिक स्वास्थ्य जांच कार्यक्रम में कुल 1412 छात्रों (901 स्नातक और 511 स्नातकोत्तर) का उनकी जॉइनिंग के पहले महीने में परीक्षण किया गया। इनमें से 450 छात्र (कुल छात्रों में 31.86%) ऐसे पाए गए जिन्हें गंभीर मानसिक तनाव था या जिन्हें आगे मूल्यांकन की आवश्यकता थी। यह चिंताजनक आंकड़ा है, क्योंकि उनकी शैक्षणिक सत्र की शुरुआत ही हुई थी।

उन्होंने बताया कि प्रश्नावली के उत्तरों, छात्रों से संक्षिप्त व्यक्तिगत बातचीत और सार्वजनिक जानकारी के विश्लेषण से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आईं जो सभी उम्र और शैक्षणिक स्तर के छात्रों के लिए प्रासंगिक हैं जैसे कि प्रदर्शन का दबाव उन पर भारी पड़ता है। यह दबाव अक्सर स्वयं उत्पन्न होता है क्योंकि वे स्वयं और दूसरों की अपेक्षाओं पर खरे उतरना चाहते हैं। लगातार खुद की या दूसरों द्वारा की गई तुलना से ध्यान स्वयं के विकास से हटकर दूसरों पर केंद्रित हो जाता है। इससे ईर्ष्या, हीनभावना और असंतोष की भावना पैदा होती है। व्यक्तिगत या रोमांटिक संबंधों में समस्याएँ उनके आत्म-सम्मान और समग्र कल्याण पर गहरा प्रभाव डालती हैं।

डॉ गुप्ता ने कहा कि अब मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ पहले की तुलना में अधिक सुलभ हो गई हैं। कोविड-19 महामारी के बाद से लोग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के प्रति अधिक जागरूक हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में तकनीक के तेज़ विकास ने पेशेवर मदद लेने से जुड़ी झिझक और कलंक को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परिणामस्वरूप, अब अधिक से अधिक युवा खुद ही मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से संपर्क कर रहे हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि होम्योपैथिक दवाएं तनाव, अवसाद, चिंता विकारों और यहाँ तक कि व्यवहार संबंधी विकारों के इलाज में बिना किसी हानिकारक दुष्प्रभाव के अद्भुत भूमिका निभाती हैं।

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