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अंतरालीय फेफड़े की बीमारी की पहचान व स्तर जानने के लिए एचआरसीटी अत्यन्त आवश्यक

-रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, केजीएमयू, लखनऊ एवं लखनऊ चेस्ट क्लब के संयुक्त तत्वावधान में कार्यशाला आयोजित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, केजीएमयू, लखनऊ एवं लखनऊ चेस्ट क्लब के संयुक्त तत्वावधान में होटल क्लार्क अवध में इन्टर्टिशियल लंग डिजीजिस (आई.एल.डी.) (अंतरालीय फेफड़े की बीमारी )पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के आयोजन अध्यक्ष एवं केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा0 सूर्यकान्त ने आई.एल.डी. मरीजों के रोग के कारण, लक्षण और उपचार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आई.एल.डी. के मरीजों को पहचानने के लिए लक्षणों की विस्तृत जानकारी, शारीरिक परीक्षण, चेस्ट एक्सरे, सीटी स्कैन तथा फेफड़ों की कार्य क्षमता की जांच (पी.एफ.टी.) किया जा सकता है। आई.एल.डी. की बीमारी को दो भागों में बाटा जा सकता है। पहले समूह को नॉन आई.पी.एफ., इन्टर्टिशियल लंग डिजीजेस (आई.एल.डी.) तथा दूसरे को इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस (आई.पी.एफ.) कहते हैं। इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस में बिना किसी ज्ञात कारण के फेफड़े में फाइब्रोसिस (फेफड़े की सिकुड़न) हो जाती है। धीरे धीरे फेफड़ों का आकार छोटा हो जाता है और फेफड़े का वह हिस्सा कार्य करना बन्द कर देता है। इसमें बीमारी की शुरूआत सूखी खांसी से होती है, धीरे-धीरे सांस फूलने लगती है। बीमारी बढ़ने पर फेफड़े की संरचना मधुमक्खी के छत्ते (हनी कोम्ब) जैसी हो जाती है।

देश के प्रसिद्ध चिकित्सा विशेषज्ञो ने इन्टर्टिशियल लंग डिजीज (आई.एल.डी.) पर अपने व्याख्यान प्रकट किये, जिसमें बंगलौर के विख्यात रेडियोलाजिस्ट डॉ0 विमल राज ने इन्टर्टिशियल लंग डिजीजिस में एच.आर.सी.टी. (हाई रिजाॅल्यूशन कंप्यूटेड टोमोग्राफी) थोरेक्स की भूमिका पर विस्तृत जानकारी अपने व्याख्यान द्वारा प्रदान की।

इस अवसर पर प्रसिद्ध श्वसन रोग विशेषज्ञ डा0 राजेन्द्र प्रसाद ने श्वसन रोगों की स्थितियों का मूल्यांकन करने में एक्स रे एवं एच.आर.सी.टी. के महत्व पर जोर दिया। असिस्टेन्ट प्रोफेसर, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, केजीएमयू की डा0 ज्योति बाजपेई ने हाईपर सेन्सटिविटी न्यूमोनाईटीस पर चर्चा की, चंदन हास्पिटल, लखनऊ के डा0 अनिल कुमार सिंह ने सी.टी.डी. रिलेटेड आई.एल.डी. पर एवं कानपुर के रिजेन्सी हास्पिटल के डा0 अर्जुन भट्नागर ने आई.एल.डी. में इम्यूनोसपरेसिव दवाओं के रोल पर अपने व्याख्यान दिये।

कार्यशाला के आयोजक सचिव, प्रोफेसर, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, डा0 अजय कुमार वर्मा ने कार्यशाला में उपस्थित समस्त चिकित्सकों को आभार प्रकट किया। कार्यशाला में डा0 बी.पी. सिंह, डा0 दर्शन कुमार बजाज, डा0 मानसी गुप्ता (एसजीपीजीआई) एवं शहर के अन्य प्रख्यात चेस्ट रोग विशेषज्ञ तथा केजीएमयू, एसजीपीजीआई, लोहिया, एरा, कैरियर, बलरामपुर अस्पताल आदि के जूनियर चिकित्सक भी उपस्थित रहे।

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