प्रतिष्ठित अस्पतालों की ओर जाने वाले रास्तों को डिवाइडर से बंद करने से हो रही असुविधा

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय को केजीएमयू नाम से ज्यादा पहचाना जाता है। इस विश्व विख्यात संस्थान के हॉस्पिटल में अन्य राज्यों के अलावा उत्तर प्रदेश के सभी जिलों से मरीजों को गंभीर अवस्था में यहां इलाज के लिए रेफर किया जाता है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि यहां तक पहुंचने में एम्बुलेंस में लाये जाने वाले मरीजों को रास्ते की दुश्वारियों से गुजरना पड़ता है। यही नहीं ये दुश्वारियां तब और बढ़ जाती हैं जब उसे जल्दी से जल्दी इलाज की आवश्यकता होती है। कुल मिलाकर मरीज की जान ट्रैफिक के जाम, डिवाइडर बंद करने जैसी व्यवस्था के झाम में फंस जाती है इसलिए अनेक बार मरीज का ‘काम-तमाम’ (मौत) हो जाता है।
हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसे ऐसे समझिये। अगर मरीज को सीतापुर रोड की तरफ से लाल पुल, बुद्धा पार्क के रास्ते केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर या हार्ट के लिए लारी कार्डियोलॉजी या फिर प्रसव के लिए क्वीनमैरी लाया जा रहा है तो अटल बिहारी वाजपेयी कन्वेंशन सेंटर के बगल से शाहमीना रोड की ओर मुड़ने का रास्ता बंद रखा गया है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि हार्ट अटैक का मरीज हो या ब्रेट स्ट्रोक का या फिर दुर्घटना में खून से लथपथ यानी जिसमें ‘गोल्डन आवर’ में इलाज अवश्य मिलने की बात कही गयी है, इस व्यवस्था से इसमें व्यवधान उत्पन्न होता है। नतीजतन मरीज की जान अव्यवस्था की सूली पर चढ़ना स्वाभाविक है।

यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि केजीएमयू को पहुंचने वाला एक रास्ता चौक की तरफ से है, हरदोई की ओर से एम्बुलेंस में आने वाले मरीजों की भी दिक्कत यह है कि इस रास्ते पर चौक चौराहे के बाद से केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर तक के रास्ते में जो जाम रहता है, उससे भी एम्बुलेंस के चलने में अवरोध पैदा होता है।
यह दुश्वारी यहीं हो, ऐसा नहीं है अब आपको बताते हैं उत्तर प्रदेश के सभी अस्पतालों के रेफरल सेंटर और सबसे बड़े चिकित्सालय बलरामपुर हॉस्पिटल के आसपास का हाल। बलरामपुर अस्पताल के लेसा की तरफ खुलने वाले गेट वाली सड़क जो रेजीडेंसी से कैसरबाग की ओर आती है, वहां से भी एम्बुलेंस का निकलना एक टेढ़ी खीर है, यह दिक्कत आज की नहीं बरसों की है लेकिन इसका कोई भी समाधान नहीं निकाल सका है। हैरत की बात यह है कि इन दिक्कतों से रोज ही शासन, प्रशासन, अस्पतालों में बैठे जिम्मेदार अधिकारियों को भी रूबरू होना पड़ता है लेकिन समाधान की दिशा में किया गया कोई भी प्रयास दिखता नहीं है।

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