-कविता होलिस्टिक एप्रोच स्टडी ग्रुप ने आयोजित किया वेबिनार
-एनबीआरआई, सीडीआरआई, एलआरएलसी जैसी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय लैब में किये गये एक्सपेरिमेंट का विस्तार से वर्णन है किताब में
सेहत टाइम्स
लखनऊ। होम्योपैथिक दवाएं प्लेसबो नहीं हैं, ये पूरी तरह वैज्ञानिक हैं और इनका असर होता है, इसे प्रमाणित करने का लक्ष्य मन में ठान कर रिसर्च की राह को नौकरी से भी ऊपर रखने वाले लखनऊ के वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता की अब तक की सभी एस्पेरिमेंटल स्टडी का कलेक्शन उनकी तीसरी पुस्तक ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ पर अमेरिका में एक वेबिनार का आयोजन किया गया। ज्ञात हो डॉ गुप्ता की इस पुस्तक का विमोचन नयी दिल्ली में बीती 9 अप्रैल को केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने एक सरकारी समारोह में किया था। वेबिनार का आयोजन कविता होलिस्टिक एप्रोच (केएचए) स्टडी ग्रुप द्वारा रविवार को भारतीय समय रात्रि 9 बजे से किया गया। वेबिनार में पुस्तक के लेखक और लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने करीब एक घंटे का व्याख्यान दिया।
वेबिनार का संचालन डॉ श्वेता सिंह ने अपनी सहयोगी डॉ सृजा येरावल्ली के साथ प्रारम्भ किया। उन्होंने वेबिनार से जुड़े लोगों को डॉ गुप्ता के बारे में जानकारी दी। डॉ गिरीश गुप्ता ने अपने व्याख्यान में पुस्तक के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि किस प्रकार उन्हें लखनऊ स्थित केजीएमसी के एक चिकित्सक की होम्योपैथी का उपहास उड़ाते हुए इसे प्लेसबो बताने की टिप्पणी अखर गयी थी। और फिर होम्योपैथी दवाओं की वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए रिसर्च को अपने जीवन का एकमेव लक्ष्य बना लिया, और सबसे पहले पौधों के रोगों पर होम्योपैथी दवाओं का असर साबित कर दिखाया कि होम्योपैथिक दवाओं की साइंटिफिक वैल्यू है।
डॉ गुप्ता ने बताया कि किस प्रकार उन्होंने अनेक प्रकार की फंगस, जिसमें पिछले दिनों कोविड काल में प्रासंगिक हुई ब्लैक फंगस भी शामिल है, पर होम्योपैथी दवाओं का कारगर असर अबसे 27 साल पूर्व यानी 1995 में बाकायदा कल्चर प्लेट पर दवाओं का असर दिखाते हुए साबित कर दिया था। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार लोगों के बीच फैली यह भ्रांति कि अगर एलोपैथिक दवा, चाय, कॉफी या अन्य खुश्बूदार चीजें खायी जायें तो होम्योपैथी दवा असर नहीं करती है, इसे भी कल्चर के माध्यम से एक्सपेरिमेंट करके मिथ्या साबित किया था। उन्होंने कहा कि एक्सपेरिमेंट में दवा से हुआ बदलाव जो दिखता है उसे देखकर वैज्ञानिक या किसी भी पैथी का डॉक्टर ही नहीं मेडिकल विधा का गैर जानकार व्यक्ति भी यह कह सकता है कि होम्योपैथिक दवाओं का असर होता है।
अपने एक्सपेरिमेंट में उन्होंने यह भी साबित किया है कि लहसुन, प्याज, इलायची, लौंग, जीरा, अदरक, मैथी, हींग, लाल मिर्च, नीबू, कपूर जैसी वस्तुएं होम्योपैथी के असर को प्रभावित नहीं कर सकीं। डॉ गुप्ता ने बताया कि इस किताब में उनके 16 रिसर्च पेपर्स जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में छपे हैं, के बारे में एक-एक जानकारी दी गयी है।
उन्होंने बताया कि उनके द्वारा की गयी रिसर्च के लिए किये गये सभी एक्सपेरिमेंट नेशनल बॉटिनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई), सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई), नेशनल रिसर्च लेबोरेटरी फॉर कन्जर्वेशन (एनआरएलसी) और गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) की लैब में हुए हैं।
वेबिनार में कविता होलिस्टिक एप्रोच की संस्थापक डॉ कविता कुकुनूर का ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ किताब पर की गयी समीक्षा को उनके रिकॉर्डेड वीडियो के माध्यम से प्रस्तुत किया गया क्योंकि डॉ कविता किसी कारणवश वेबिनार का हिस्सा नहीं बन पायीं थीं। वेबिनार में विभिन्न स्थानों से अनेक लोग जुड़े रहे।