-कमजोर फेफड़े पर साधारण बैक्टीरिया और वायरस भी कर देते हैं संक्रमण
-बच्चों-बुजुर्गों और कमजोर इम्युनिटी वालों को खास बचाव की आवश्यकता

सेहत टाइम्स
लखनऊ। सर्दियों का मौसम शुरू होते ही वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है और इसी के साथ निमोनिया के मामले भी तेजी से बढ़ने लगते हैं। इस संदर्भ में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू), लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ० सूर्यकान्त ने बताया कि ठंड के मौसम में बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) वाले लोगों को निमोनिया होने का खतरा अधिक रहता है। यह खतरा वायु प्रदूषण के कारण और भी बढ जाता है। वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ा कमजोर होता है और साधारण बैक्टीरिया और वायरस भी कमजोर फेफडे़ में संक्रमण कर देते है।
केजीएमयू की कुलपति डा0 सोनिया नित्यानन्द ने भी बताया कि सर्दियों के मौसम में बढ़ते प्रदूषण से बच्चों और बुजुर्गों को निमोनिया होने का खतरा अधिक होता है इसलिए उनका खास बचाव करें।

डा० सूर्यकान्त ने बताया कि पूरी दुनिया में हर वर्ष 12 नवम्बर को “विश्व निमोनिया दिवस” मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम “बाल जीवन रक्षा” इस तथ्य पर बल देती है कि पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में निमोनिया मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार हर वर्ष लाखों बच्चे निमोनिया से पीड़ित होते हैं, जिनमें से अनेक की मृत्यु समय पर इलाज न मिलने के कारण हो जाती है। उन्होंने कहा कि जागरूकता और समय पर उपचार ही निमोनिया से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय है।
निमोनिया की भारतीय गाइडलाइन के सह लेखक डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि फेफड़े की वह बीमारी जिसमें एक या दोनों फेफड़ों के हिस्सों में सूजन आ जाती है तथा पानी भी भर जाता है, उसे निमोनिया कहते हैं। यह आमतौर पर संक्रमण के कारण होता है, लेकिन कैमिकल, एस्पिरेशन या ऑब्स्ट्रक्टिव कारणों से भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और परजीवी रोगाणु इसके प्रमुख कारण हैं। टी.बी. के संक्रमण से भी फेफड़ों में निमोनिया हो सकता है। भारत में संक्रामक रोगों से होने वाली कुल मौतों में लगभग 20 प्रतिशत मौतें निमोनिया के कारण होती हैं। डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि प्रतिवर्ष लगभग 45 करोड़ लोग निमोनिया से प्रभावित होते हैं। 19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर ने निमोनिया को “मौत का सौदागर” कहा था, जबकि 20वीं शताब्दी में एंटीबायोटिक उपचार और टीकों के कारण मृत्युदर में कमी आई। इसके बावजूद विकासशील देशों में यह बीमारी अभी भी मृत्यु का प्रमुख कारण बनी हुई है।
उन्होंने कहा कि धूम्रपान, शराब, नशा, डायलिसिस, हृदय, फेफड़े, लिवर की बीमारियां, मधुमेह, कैंसर, एड्स और उम्र से संबंधित कमजोरी निमोनिया के जोखिम को बढ़ाते हैं। संक्रमण मुख्य रूप से तीन तरीकों से फैलता है—खांसी या छींक के माध्यम से, खून के रास्ते, और एस्पिरेशन के कारण जब मुंह या पाचन नली के स्त्राव फेफड़ों में चले जाते हैं। मुख्य लक्षणों में तेज बुखार, खांसी, बलगम, सीने में दर्द, सांस फूलना, मतली, उल्टी, भूख में कमी, थकान और शरीर का ठंडा पड़ना शामिल हैं। पहचान के लिए खून और बलगम की जांच तथा छाती का एक्स-रे महत्वपूर्ण हैं। उपचार में एंटीबायोटिक सबसे प्रभावी है। कम गम्भीरता वाले मरीज बाह्य रोगी विभाग से उपचार करा सकते हैं, जबकि गंभीर मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराना आवश्यक हो सकता है। ऑक्सीजन और नेबुलाइजेशन सहायक उपचार हैं।
डा० सूर्यकान्त के अनुसार, चूंकि यह बीमारी ठंड के मौसम में अधिक होती है, अतः ठंड से बचाव सबसे प्रमुख उपाय है। विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें, धूम्रपान, शराब और अन्य नशे से पूर्णतः परहेज करें तथा मधुमेह और अन्य बीमारियों को नियंत्रण में रखें।
डॉ सूर्यकान्त ने बताया कि निमोनिया का प्रमुख कारण न्यूमोकोकस जीवाणु होता है। इससे बचाव के लिए न्यूमोकोकल वैक्सीन लगवाना चाहिए। यह वैक्सीन 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों, जटिल हृदय, लीवर और किडनी रोगियों, अस्थमा या गंभीर श्वास संबंधी बीमारियों से ग्रसित मरीजों, मधुमेह और एड्स पीड़ितों, शराब सेवन करने वालों तथा जिनकी तिल्ली निकाल दी गई हो, उन्हें अवश्य लगवानी चाहिए। अभी हाल में ही आधुनिक पीसीवी 20 निमोकोकल वैक्सीन प्रचलन में आयी है जो कि पहले की वैक्सींस से ज्यादा कारगर है। इसके साथ ही ऐसे व्यक्तियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लुएंजा वैक्सीन भी लगवानी चाहिए, जो वायरल निमोनिया से सुरक्षा प्रदान करती है। अस्पतालों में निमोनिया से बचाव के लिए डॉ सूर्यकान्त ने बताया कि हाथ धोने की सही विधि अपनाना, नेबुलाइज़र और ऑक्सीजन उपकरणों का उचित स्टरलाइजेशन, वेंटिलेटर व एंडोट्रेकियल ट्यूब की नियमित सफाई तथा आई.वी. लाइन का समय-समय पर बदलना अत्यंत आवश्यक है।
डॉ० सूर्यकान्त ने कहा कि नवजात व छोटे बच्चों को सर्दियों में गुनगुने पानी से नहलायें, उन्हें बिना कपड़ों के खुले में न जाने दें, शरीर को गर्म रखें, संतुलित आहार लें और स्वच्छता एवं टीकाकरण का विशेष ध्यान रखें। ठंड और वायु प्रदूषण से बचना, नियमित रूप से हाथ धोना तथा खांसी-जुकाम को नजरअंदाज न करना बहुत जरूरी है।
उन्होंने बताया कि निमोनिया से बचाव में शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता (इम्यूनिटी) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि व्यक्ति की इम्यूनिटी मजबूत है तो निमोनिया का खतरा काफी कम हो जाता है। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, हरी सब्जियों और फलों का सेवन करें, फास्ट फूड से बचें तथा नियमित योग और प्राणायाम करें।
डा० सूर्यकान्त ने अंत में कहा कि “निमोनिया एक गंभीर लेकिन रोके जाने योग्य बीमारी है। जागरूकता, टीकाकरण और स्वस्थ जीवनशैली ही इससे बचाव के सबसे प्रभावी उपाय हैं।”

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