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उनको आखिर क्यों कड़वी लगती हैं होम्योपैथी की मीठी गोलियां ?

-विश्व होम्योपैथी दिवस 10 अप्रैल पर डॉ अनुरुद्ध वर्मा की कलम से

डॉ हैनिमैन

होम्योपैथी के आविष्कारक डॉ हैनिमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी के सेक्सोनी नामक शहर में हुआ था। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एम डी उपाधि प्राप्त डॉ हैनिमैन को होम्योपैथी की खोज कर दुनिया को एक नई चिकित्सा पद्धति देने का श्रेय जाता है। डॉ हैनिमैन तत्कालीन प्रचलित चिकित्सा पद्धति के अवैज्ञानिकरूप एवं चिकित्सा के बर्बर तरीके से सहमत नहीं थे इसलिए चिकित्सा अभ्यास छोड़कर पुस्तकों का अनुवाद कर जीवन यापन करने लगे और क्युलेन्स की मटेरिया मेडिका का अनुवाद करते समय सिनकोना अध्याय में उन्होंने पाया कि सिनकोना की छाल का शत पीने से मलेरिया ज्वर जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं इसी को आधार मानकर उन्होंने लंबे समय तक परीक्षण किये एवँ अनेक परीक्षणों एवं अनुभवों के पश्चात सिमिलिया, सिमिलिबस, कयूरेन्टर के नवीन दर्शन एवँ सिद्धांत पर आधारित होम्योपैथी का 1790 में अविष्कार किया।

डॉ हैनिमैन के इस अविष्कार ने पूरे चिकित्सा जगत में क्रान्ति ला दी और यहीं से डॉ हैनिमैन का विरोध शुरू हो गया यहां तक कि‍ उन्हें देश भी छोड़ना पड़ा परन्तु उन्होंने हार नहीं स्वीकार की और अपने अभियान  मेँ निरंतर लगे रहे। जैसा कि होता है जब कोई नया अविष्कार या खोज सामने आती है तो उस समय प्रचलित मान्यताओं को मानने वाले लोग उसको आसानी से स्वीकार करने को तैयार नहीं होते हैं यही होम्योपैथी के साथ भी हुआ और उसके विरोधों का सिलसिला प्रारंभ हो गया। यह कोई नई बात नहीं थी इसके पहले अनेकों वैज्ञानिकों को विरोधों का सामना करना पड़ा।

न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण, एडिसन को बल्ब, डार्विन को एवोल्यूशन, गैलीलियो को माइक्रोस्कोप, एरिस्टोटल, कॉपरनिकस आदि को भी खोजों लिए भी अनेक जबर्दस्त विरोधों का सामना करना पड़ा परंतु बाद में दुनिया ने उनके अविष्कारों को स्वीकार किया क्योंकि वह विज्ञान की कसौटी पर खरे साबित हुये थे। इसी प्रकार डॉ हैनिमैन को भी अनेक विरोधों का सामना करना पड़ा क्योंकि यह तो होना ही था क्योंकि डॉ हैनिमैन ने जो दर्शन एवं सिद्धांत प्रतिपादित किया था वह बिल्कुल नया था और पुरानी परम्पराओं तथ मिथकों को तोड़ता था। डॉ हैनिमैन ने होम्योपैथी को विज्ञान की सभी कसौटियों एवं पैमानों पर सही साबित कर यह सिद्ध कर दिया था कि उनकी खोज तर्कसंगत एवं विज्ञान के मूल सिद्धांतों पर आधारित है।

डॉ अनुरुद्ध वर्मा

होम्योपैथी के आविष्कार के लगभग 200 वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं परंतु अभी भी उसका विरोध जारी है जबकि 200 वर्षों के अंतराल में होम्योपैथी ने अपनी वैज्ञानिकता एवं कारगरता साबित कर दी है जहां वैज्ञानिकों ने इसे पूर्ण रूप से विज्ञान सम्मत माना है वहीं पर होम्योपैथी  एलोपैथी चिकित्सा द्वारा लाइलाज घोषित एवं गड़े हुये रोगों के उपचार लिए आशा की नई किरण साबित हुईं है तथा कुछ मामलों में तो यह वरदान साबित हई है। चर्म रोग, जोड़ों के दर्द, कैंसर, ट्यूमर, पेट के रोग, शिशुओं एवं माताओं के रोग के उपचार में इसकी कारगरता अद्वितीय है केवल रोगोँ के उपचार मेँ ही नहीं बल्कि रोकथाम मेँ भी अपनी कार्यकारिता साबित कर चुकी है। सहज, सरल एवं सुरक्षित पद्धति होते हुये भी अभी इसे वह स्थान नहीं मिल पाया है जिसकी हक़दार है इसके विपरीत इसे कभी जादू की पुड़िया, प्लेसबो, बिच क्रॉफ्ट, खुशफहमी की पद्धति बता कर इसका मज़ाक उड़ाया गया। कभी इसके खिलाफ लैंसेट ने ज़हर उगला तो कभी नेचर पत्रिका ने। समाचार पत्रों में भी अक्सर कुछ न कुछ होम्योपैथी के ख़िलाफ़ छपता ही रहता है कुछ तथाकथित वैज्ञानिक नइस पर रोक लगाने एवं इसे सरकारी सरंक्षण न दिए जाने की मांग भी अक्सर करते रहते हैँ। एक वैज्ञानिक विधा होने के बावजूद इसे दुनिया एवं देश में मुख्यधारा की चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता नहीं प्राप्त हुई है। होम्योपैथी के आरम्भिक काल में तो इसका विरोध समझ मे आता था परंतु अब जब यह पूरी तरह स्थापित हो गईं है तब इसके विरोध का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता है।होम्योपैथी के विरोध के पीछे एलोपैथी पद्धति के चिकित्सक एवं दवा कम्पनियों की हताशा है क्योंकि इससे उनका व्यवसाय प्रभावित होता है। इसका प्रमाण यह है कि जहां एलोपैथी की वृद्धि दर लगभग 13% है वहीँ पर होम्योपैथी 25%की दर से वृद्धि कर रही है। दुनिया में स्वास्थ्य को मुनाफेदार व्यवसाय मानने वाले लोगों का घाटा हो रहा है इसलिए वह लोग एक योजनाबद्ध तरीके से होम्योपैथी के विरुद्ध प्रायोजित अभियान चला रहे है इसके लिए अनेक प्रकार के उपक्रम कर रहे हैं। 

यह सर्वविदित है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति दुनिया में उत्पन्न हो रही जनस्वास्थ्य की चुनौतियों का सामना करने में विफल साबित हो रही है। चाहे तेजी के साथ सिर उठा रहे संक्रामक रोग हों या अन्य गैर संक्रामक रोग। आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने उपचार एवँ रोकथाम के बजाए जटिलता बढ़ा दी यहाँ तक की दवाइयों के प्रति वायरस एवँ बैक्टीरिया प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे हैं जिससे टी बी जैसे रोगों का उपचार मुश्किल हो रहा है। आधुनिक दवाईओं के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो रही है जिससे लोग जल्दी जल्दी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। डेंगू, स्वाइन फ्लू, चिकनपॉक्स के साथ साथ होम्योपैथी ने कोरोना काल मे कोविड के संक्रमण से रोकथांम में महत्ववपूर्ण भूमिका निभाई है औऱ जनता ने उस पर विश्वास भी व्यक्त किया है परंतु सरकार है कि दवा लॉबी के दबाव में उसके योगदान को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। लोगों की स्वास्थ्य की देखभाल के लिए अनेक योजनाएं बना रही हैं वह असफल साबित हो रही हैं जिसके कारण अभी भी सरभौमिक स्वास्थ्य आच्छादन की बात तो दूर सबको स्वास्थ्य के संकल्प से हम कोसों दूर हैं।

होम्योपैथी ने दुनिया में जो भी सफलता अर्जित की है वह अपनी विशिष्टताओं के दम पर प्राप्त की है। अपने गुणों के कारण होम्योपैथी आज पूरी दुनिया में लोगों का विश्वास अर्जित  कर रही है। आज हमें यह समझने और जानने की जरूरत है है कि आखिर वह कौन सी ताकतें हैँ जो एक तार्किक एवं विज्ञान सम्मत चिकित्सा पद्धति को मजबूत और जिम्मेदार बनाने के बजाय उसे प्लेसबो या झाड़-फूंक वाली पद्धति साबित करने मेँ लगे हुए हैं। आज जब होम्योपैथी पूरी विश्व में जनता में लोकप्रियता अर्जित कर रही है परन्तु सरकारोँ का रवैया होम्योपैथी के प्रति सौतेला ही बना हुआ है। हमें विश्व होम्योपैथी दिवस ( 10 अप्रैल) पर यह चिंतन, मनन करना होगा और पहचानना होगा कि वह कौन ताक़तें औऱ लोग हैं जिन्हें होम्योपैथी की मीठी गोलियां कड़वी लगती हैं। सरकारों का रवैया भी होम्योपैथी के प्रति तंग है। सरकारों को भी यह सोचना चाहिए कि यदि हमें अपने देश की जनता को किफायती, विज्ञान सम्मत विकल्प उपलब्ध कराना है जो जनता को गरीबी के गड्ढे में न धकेले बल्कि उन्हें उनकी पंहुच वाला इलाज़ उपलब्ध कराए। उनको एक पद्धति पर निर्भर रहने के स्थान पर होम्योपैथी जैसी सरल, सुलभ, दुष्परिणाम रहित, सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली पद्धति के विकास के पर्याप्त सरकारी संरक्षण प्रदान करना चाहिये जिससे जनता अपने रोगों के लिए होम्योपैथी के विकल्प को चुन सके। होम्योपैथी को बढ़ावा देकर सरकार कम संसाधनों में अपने नागरिकों को स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध कराकर उनके जीवन को खुशहाल बना सकती है।

(डॉ अनुरुद्ध वर्मा, केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद के पूर्व सदस्‍य हैं)