प्रतिभा को उचित सम्मान न दिये जाने से आक्रोशित है राज्य स्तरीय पुरस्कार विजेता

धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्किल को बेरोजगारी से जोड़कर प्रतिभाओं को उभारने का काम कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारी अपने पास मौजूद प्रतिभाओं को सहेज नहीं पा रहे हैं, जिससे जनता को परेशानी के साथ-साथ ही राजस्व को भी नुकसान होने का संकट खड़ा हो रहा है। इसका ताजा उदाहरण केजीएमयू का डिपार्टमेंट ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन है। दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंग और सहायक उपकरण बनाने वाले विभाग की वर्कशॉप के मैनेजर अरविन्द कुमार निगम रिटायरमेंट के कगार पर पहुंच गये हैं, अपनी रिसर्च से विभाग को लाखों के राजस्व के साथ ही दिव्यांगों के लिए मददगार बहुत कम कीमत वाले उपकरण बनाने वाले अरविन्द निगम एक माह बाद जून में रिटायर हो रहे हैं। राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त करने के नियमानुसार उन्हें जो सेवा विस्तार दिया जाना चाहिये वह नहीं दिया जा रहा है, काफी कोशिशों के बाद भी सेवा विस्तार का हक न मिलने के बाद इस लड़ाई को वह हाईकोर्ट में लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि मेरा हक मुझे न देकर चूंकि मेरे सम्मान और अधिकार को ठेस पहुंची है इसलिए मजबूर होकर मुझे न्यायालय का रास्ता चुनना पड़ा है।
अपनी प्रतिभा को न्यायोचित सम्मान न मिलने से आक्रोश भरा दुख अपने अंदर समेटे अरविन्द कुमार निगम ने तथ्यों के साथ जो अपनी बात रखी वह चौंकाने वाली है। अरविन्द कुमार निगम बताते हैं कि दिव्यांगों के बीच कार्य करते-करते उनके दुखों को उन्होंने नजदीक से महसूस किया है, इसी अहसास ने उन्हें दिव्यांगों के लिए सस्ते और उपयोगी उपकरण बनाने की प्रेरणा दी। शोध के बाद उनके बनाये उपकरण की कद्र उत्तर प्रदेश सरकार ने भी की और वर्ष 2009 में उन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाजा गया। यह पहला मौका था जब यह पुरस्कार किसी गैर चिकित्सा शिक्षक को दिया गया।
अरविन्द कुमार निगम ने अपने शोध से जो उपकरण बनाये हैं, उनमें एक उपकरण एक ऐसी नी ब्रेस है जिसके पहनने से घुटने की शिकायत वाले लोग, जिनके पैर कमान की तरह टेढ़े हो जाते हैं, के पैर न सिर्फ सीधे हो जाते हैं बल्कि उन्हें चलने में बहुत आराम मिलता है और घुटना प्रत्यारोपण रुक जाता है। इस उपकरण की कीमत सिर्फ 1000 रुपये है जबकि मल्टी नेशनल कम्पनी की बनी इस ब्रेस की कीमत 27 से 30 हजार रुपये है।
आपको बता दें कि डीपीएमआर विभाग ने अरविन्द कुमार के सेवा विस्तार के लिए संस्थान के कुलसचिव को पत्र भी भेजा हुआ है, लेकिन सूत्रों के अनुसार यह पत्र अभी शासन को नहीं भेजा गया है। सूत्र बताते हैं कि इसका कारण यह बताया जा रहा है कि राज्य स्तरीय पुरस्कार के चलते सेवा विस्तार का लाभ अभी तक सिर्फ शिक्षकों को ही दिया गया है। इस पर अरविन्द का तर्क है कि यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भी तो शिक्षकों को ही दिया जाता था, लेकिन उन्हें यह दिया गया तो इसका अर्थ यह है कि पुरस्कार चयन करने वाली कमेटी ने मेरे कार्यों का आकलन करके ही शिक्षकों को दिया जाने वाला पुरस्कार मुझे देने का फैसला किया तो ऐसे में पुरस्कार के एवज में मिलने वाले लाभ से मुझे क्यों वंचित रखा गया। इसके अतिरिक्त देखा जाये तो मैं शिक्षक की श्रेणी में भी आता हूं।


शिक्षक की कैटेगरी के लिए भी पात्र होने का दावा करने के पीछे अरविन्द कुमार निगम तर्क देते हैं कि उनकी प्रतिभा और योग्यता के अनुसार ही वर्ष 2015 में उन्हें डॉ शकुन्तला मिश्र राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में ऑर्थोटिक्स एंड प्रॉस्थेटिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर उनका चयन हो गया। लेकिन उचित माध्यम से आवेदन किये जाने के बावजूद केजीएमयू से उन्हें रिलीव नहीं किया गया।
अरविन्द कुमार बताते हैं कि इस समय भी वह डॉ शकुन्तला मिश्र राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में बेचलर ऑफ प्रॉस्थेटिक्स एंड ऑर्थोटिक्स के परीक्षक, मणिपाल यूनिवार्सिटी के ऑर्थोटिक्स एंड प्रॉस्थेटिक्स के परीक्षक, कानपुर यूनिवर्सिटी के बैचलर ऑफ फीजियोथैरेपी के परीक्षक हैं, इसके साथ ही वह केजीएमयू के एमबीबीएस द्वितीय वर्ष एवं पैरामेडिकल के छात्रों को ऑर्थोटिक्स एंड प्रॉस्थेटिक्स की पढ़ाई भी करा रहे हैं।
