केदारनाथ आपदा के समय राहत कार्य करने वाले प्लास्टिक सर्जन ने साझा किये अनुभव
लखनऊ। कोई दुर्घटना हो या प्राकृतिक आपदा जब बचाव कार्य करना होता है तब समझ में आता है जो कानून जनता के हित के बारे में सोच कर बनाये जाते हैं उससे वाकई जनता को लाभ पहुंचेगा अथवा नहीं। चिकित्सा से जुड़े कानून भी कुछ ऐसा ही अहसास तब कराते हैं जब आपदा को सम्भालने के लिए कार्य किया जाता है, ऐसे में न सिर्फ पुराने कानूनों को सुधारने की बल्कि नये बनने वाले कानूनों को विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाने की जरूरत है।
यह सार निकलता है केदारनाथ आपदा के समय मरीजों की चिकित्सा में दिन-रात जुटे रहे देहरादून के प्लास्टिक सर्जन डॉ राकेश कालरा के बताये संस्मरणों से। लखनऊ में चल रही देश भर के प्लास्टिक सर्जनों की कॉन्फ्रेंस में आये डॉ कालरा ने बताया कि किस तरह उन्होंने 16-17 जून 2013 की रात को केदारनाथ में आयी आपदा के बाद उन्होंने देहरादून से पहुंच कर मरीजों की चिकित्सा में अपना योगदान दिया था तथा किस प्रकार की परेशानियां उनके सम्मुख आयी थीं, ऐसी परेशानियां जो कानून के पेंच की वजह से खड़ी हुई थीं।
उन्होंने बताया कि हम लोगों को समाचारों के माध्यम से पता चला तो मैं भी बचाव कार्य में भाग लेने चला गया। वहां पहुंचकर स्थिति इतनी आपाधापी की थी कि समझ में ही नहीं आ रहा था कि कहां बचाव कार्य करना है। प्रशासन से जुड़े लोग भी कुछ नहीं बता पा रहे थे। ऐसे में आपदा प्रभावित क्षेत्र में लगे हेलीकॉप्टर के पायलट से जब बात हुई तो वह उन्हें गुप्तकाशी नाम की जगह ले गया। अपने अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक बड़ी कमी तब सामने आयी जब रक्त की अनुपलब्धता के चलते लोगों की जान चली गयी। उन्होंने बताया कि बचाव कार्य में लगी एम्बुलेंस में अगर अन्य सामानों के साथ रक्त की उपलब्धता भी होती तो शायद कई जानें बच सकती थीं। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए नहीं हो सका क्योंकि एम्बुलेंस में रक्त ले जाना प्रोटोकॉल के खिलाफ है।
उन्होंने बताया कि इसी तरह एक और दिक्कत आने वाली है वह है क्लीनिकल स्टेब्लिशमेंट ऐक्ट के तहत एक राज्य का चिकित्सक दूसरे राज्य में प्रैक्टिस नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में अगर कोई आपदा आती है तो जब उस समय चिकित्सकों की ज्यादा आवश्यकता होती है, दूसरे राज्य के चिकित्सकों को अनुमति नहीं है। ऐसे नियम कानून से जनता का कितना भला हो सकेगा, यह प्रश्न विचारणीय है। डॉ कालरा ने सुझाव देते हुए कहा कि इन नियमों को बदल कर जनता की सहूलियत वाले नियमों को बनाने की जरूरत है।