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भेदभाव से परे, पूरी पृथ्वी के सुख की कामना करने वाला धर्म है सनातन : स्वांत रंजन

-आरएसएस के प्रचारक अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख ने सारगर्भित ढंग से की सनातन धर्म की व्याख्या

-माधव सेवा फाउंडेशन और अग्रवाल वेलफेयर एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में गौसेवा कार्यक्रम आयोजित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। सनातन धर्म बांटने वाला नहीं, एक रखने वाला धर्म है जहां भारत के बाहर के मध्य पंथ और धर्म दुनिया को दो भागों में बांटते हैं, वहीं हमारा सनातन धर्म वसुधैव कुटुम्बकम यानी सम्पूर्ण पृथ्वी को एक परिवार और कुटुम्ब मानने वाला है। सनातन धर्म पूरी तरह से वैज्ञानिकता पर आधारित है, प्राचीन काल में जो ऋषियों ने कहा वह आज भी सच है, जैसे उन्होंने तब कहा था कि सूर्य के चक्कर लगाती है पृथ्वी, चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाता है, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण हजारों साल से पंचांग देख लीजिये सूर्यग्रहण कब है, चंद्रग्रहण कब है, सब लिखा होता है, इसका पूर्व में ही आकलन करने की गणित सनातन में प्राचीन काल से ही मौजूद है।

ये विचार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन ने मंगलवार को यहां जानकीपुरम स्थित लक्ष्मण गौशाला में आयोजित गौसेवा कार्यक्रम में शामिल होते हुए मुख्य अतिथि के रूप में दिये अपने सम्बोधन में व्यक्त किये। गौसेवा के इस कार्यक्रम का आयोजन माधव सेवा फाउंडेशन और अग्रवाल वेलफेयर एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। उन्होंने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा की झलक वर्तमान में भी दिखायी देती है, क्योंकि कोरोना की वैक्सीन जब भारत ने बनायी थी तो भारत ने दूसरे देशों की भी फिक्र रखते हुए दुनिया के कई छोटे-छोटे देशों को वैक्सीन मुफ्त में उपलब्ध करायी थी, जबकि कई बड़े देशों में भी वैक्सीन बनायी गयी लेकिन उन देशों ने उन्हें बेचा, फ्री में नहीं दी।

स्वांत रंजन ने सनातन के सिद्धांत बताते हुए कहा कि सनातन सभी जड़-चेतन में आत्मा मानता है, भगवत गीता में कहा गया है कि जड़-चेतन, पशु पक्षी, पेड़-पौधे सभी में ईश्वर का वास है। सनातन सबको एक मानता है, ऋषियों में संकुचित सोच नहीं थी। सनातन में सभी मानते हैं कि ईश्वर एक है, भले ही मत-पंथ-सम्प्रदाय, उप सम्प्रदाय, उप मत भले ही अलग हों लेकिन आपस में टकराव नहीं है, सभी का उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है। उन्होंने कहा कि सनातन शाश्वत है, कब से प्रारम्भ हुआ मालूम नहीं, राम-कृष्ण के अवतार से पूर्व भी सनातन था, और अब आगे कब तक रहेगा यह भी किसी को मालूम नहीं है, हम सौभाग्यशाली हैं कि इस सनातन परम्परा में हमारा जन्म हुआ है। सनातन के सिद्धांत का पालन करना आवश्यक है।

स्वांत जी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शताब्दी वर्ष आने वाला है, संघ ने सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठन का बीड़ा उठाया है, देश के सभी स्वयं सेवक, संघ के समर्थक, सज्जन लोग, समाज के सब लोग एकसाथ देश की उन्नति की दिशा में चल सकें, इसके लिए पांच बातें सबके सामने रखी हैं, इसे पंच परिवर्तन का नाम दिया है, इसके पांच सूत्र बतायें हैं, पहला पर्यावरण है, इसमें भी तीन बातों को कहा गया है जल संरक्षण, वृक्षारोपण, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करना। उन्होंने कहा कि देश के कई भागों में मैंने देखा कि केले के पत्ते, अन्य पत्तों के माध्यम से प्लेट बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह भी आवश्यक है कि प्लास्टिक को बंद करने के लिए सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा, उसका विकल्प भी देना होगा। इसके लिए उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जोधपुर में एक संस्था ने कई सेट बर्तन खरीदे और प्रचारित किया कि अगर किसी के यहां कोई फंक्शन है, तो उसमें प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल मत करिये, आप उनके पास आइये, और जितनी जरूरत हो थाली, कटोरी, चम्मच, गिलास आदि खाने के बर्तन कुछ पैसे जमा करके ले जायें और जब समारोह हो जाये तो वे बर्तन वापस कर जायें और अपने जमा किये हुए पैसे ले जायें, यानी बर्तन की सेवा बिल्कुल मुफ्त।

दूसरा सूत्र है कुटुम्ब प्रबोधन यानी नयी पीढ़ी को सनातन के बारे में जानकारी देना, उनसे संवाद करना क्योंकि आज परिवार में संवादहीनता हो गयी है। तीसरा सूत्र है भेदभाव छोड़कर सामाजिक समरसता रखना, चौथा सूत्र है स्वदेशी का पालन, सिर्फ सामान ही नही, स्वदेशी संस्कृति की भावना रखना, मातृ भाषा का उपयोग तथा पांचवां सूत्र है नागरिक कर्तव्य यानी समाज के प्रति हमारी जो जिम्मेदारियां हैं, उनका पालन करना होगा।

गौसेवा के इस कार्यक्रम को प्रतिवर्ष आयोजित करने वाले माधव सेवा फाउंडेशन और अग्रवाल वेलफेयर एसोसिएशन के संस्थापक सेवाराम गुप्ता ने अपने सम्बोधन में पुराने संस्मरणों को याद किया। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए गौ माता की सेवा सनातनी परम्परा रही है। उन्होंने कहा कि गौ का महत्व आदिकाल से चला आ रहा है, लेकिन हमें बताया नहीं गया। क्रोध का शमन करना है तो मौन रहना चाहिये, हमें पढ़ाया नहीं जाता है। उन्होंने बताया कि चींटियों ने राक्षस का वध करने के लिए बनाये जाने वाले वज्र में अपना योगदान दिया था इसलिए चीटीं का भी सनातन में महत्व बताया गया है। इसे स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि देवासुर संग्राम में ऋषि दधीचि की हड्डी से वज्र बनाने के लिए जब दधीचि हड्डी का दान देने के लिए तैयार हो गये, तो जब सवाल आया कि जीवित शरीर से रीढ़ की हड्डी निकाली कैसे जाये तब ऋषि दधीचि के ही सुझाव पर उनके शरीर में दही और मिष्ठान्न मल दिया गया, इसके बाद चींटी आ गयीं और धीरे-धीरे दधीचि की देह खा ली, इसके बाद रीढ़ की हड्डी निकाली गयी।

कार्यक्रम में आये हुए अतिथियों द्वारा गौवंशों को रोटी-गुड़, हरा चारा खिला कर सनातनी परम्परा का निर्वहन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता जय किशन सिन्हा ने की तथा धन्यवाद प्रस्ताव माधव सेवा फाउंडेशन और अग्रवाल वेलफेयर एसोसिएशन के महामंत्री पीएमएस के सीनियर सर्जन डॉ संजीव मोहन ने रखा। कार्यक्रम में आये लोगों का हृदय उस समय प्रफुल्लित हो गया जब आये हुए लोगों को प्रसाद स्वरूप श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह की मिट्टी व इलायची दाने का प्रसाद वितरित किया गया। आपको बता दें कि गर्भगृह की यह मिट्टी श्रीराम मंदिर निर्माण की व्यवस्था में बढ़-चढ़कर योगदान देने वाले सेवाराम गुप्ता की ओर से वितरित की गयी। इसके अतिरिक्त कार्यक्रम में आये हुए लोगों को नववर्ष चेतना समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता व महामंत्री डॉ सुनील अग्रवाल ने समिति की वार्षिक पत्रिका नव चैतन्य भी वितरित की। आयोजन के मौके पर माधव सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष जितेन्द्र अग्रवाल, महेश गोयल, संरक्षक भारत विकास परिषद मदन लाल अग्रवाल, अमरजीत मिश्रा, डॉ सुनीत मिश्रा, शोभित अग्रवाल, एनके अग्रवाल, केडी अग्रवाल सहित अनेक लोगों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।

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