-दो दिवसीय सीएमई में लगा देश भर के 300 से ज्यादा चिकित्सकों का जमावड़ा
सेहत टाइम्स
लखनऊ। बांझपन के शिकार दम्पतियों के आंगन में खुशियों की सौगात देने वाली आईवीएफ टेक्निक के बारे में आज लगभग सभी जान चुके हैं। ऐसे में इंतजार के बाद माता-पिता बनने के सुख से वंचित दम्पतियों के मन में इस टेक्निक के जरिये संतान सुख को पाने की लालसा जन्म लेने लगती है। लेकिन किन लोगों को बिना आईवीएफ के ही संतान सुख दिया जा सकता है और किन लोगों के पास आईवीएफ के अलावा कोई रास्ता नहीं है। मरीजों के साथ ही डॉक्टरों में भी उहापोह की स्थिति रहती है। इन्हीं सब स्थितियों में क्या करें, क्या निर्णय लें, इस पर विचार करने के लिए देशभर से चिकित्सकों के साथ ही इस क्षेत्र के नामचीन विशेषज्ञों का जमावड़ा लखनऊ में लगा।
अजंता होप सोसाइटी ऑफ रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च (एएचएचआर) लखनऊ, इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी व लॉग्स के संयुक्त तत्वावधान में इस विषय पर एक सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) का आयोजन यहां 3 एवं 4 सितम्बर को किया गया। चार सितम्बर को सम्पन्न वैज्ञानिक सत्र में देशभर के लगभग 300 से ज्यादा चिकित्सकों ने हिस्सा लिया। सीएमई की थीम बांझपन और उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में निर्णय लेने में आने वाली कठिनाइयों का समाधान कैसे करें पर देश के नामचीन विशेषज्ञों ने इससे जुड़े पहलुओं पर विशेष और नयी जानकारियां साझा कीं। सीएमई में देशभर से जुड़े विशेषज्ञों में डॉ केडी नायर, डॉ कुलदीप जैन, डॉ पंकज तलवार, डॉ सुरवीन घूमन, डॉ कुलदीप सिंह, डॉ गिरजा वाघ, डॉ टी रामानी देवी, डॉ सुषमा देशमुख, डॉ पीएल त्रिपाठी ने महत्वपूर्ण जानकारियां दीं।
सीएमई की आयोजक व इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी की उपाध्यक्ष डॉ गीता खन्ना ने कहा कि चिकित्सक के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि वह जिस मरीज का चुनाव करें उनमें उसकी उम्र, संतान सुख न मिलने का कारण, किसे आईयूआई करना है, किसे आईवीएफ करना है जैसी बातों को निर्धारित करके ही आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि आजकल मरीज बहुत जागरूक हो चुका है, वह जब आईवीएफ के लिए डॉक्टर से मिलने आता है तो हर चीज जानना चाहता है। किस मरीज में लाभ नहीं होगा, कितना पैसा लगेगा, कितनी सफलता मिल सकती है, क्या-क्या विकल्प हैं, सब कुछ पारदर्शिता के साथ मरीज को साफ-साफ बताना चाहिये, जिससे उसका विश्वास बना रहे। उन्होंने कहा कि अब काउंसिलिंग बढ़ गयी है, चिकित्सक को बहुत धैर्य रखकर मरीजों के प्रश्न के उत्तर देने होंगे।
डॉ गीता खन्ना ने बताया कि संतान की चाहत रखने वाले दम्पतियों के सामने सबसे पहले यह प्रश्न होता है कि कहां जाना है, और डॉक्टरों को भी कठिनाई होती है कि निदान कैसे करें। उन्होंनें कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि किसी भी निर्णय को लेने में समय न बर्बाद किया जाये, साथ ही यह भी ध्यान रखा जाये कि पहले से ही परेशान दम्पति की कम से कम खर्च वाली आवश्यक जांचों को कराकर ही उपचार की दिशा तय की जाये।
उन्होंने कहा कि समय का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि क्योंकि सामान्यत: आजकल विवाह होने में ही देर होती है, फिर दम्पति संतान की प्लानिंग करने में कुछ समय लगाते हैं, इसके पश्चात कुछ समय संतान की प्राप्ति की उम्मीद में निकल चुका होता है। यानी कुल मिलाकर पहले ही काफी समय निकल चुका होता है, यहां यह ध्यान रखने की बात है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे गर्भ धारण करने में भी समस्याएं बढ़ती हैं।
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी
डॉ गीता खन्ना ने कहा कि ध्यान रखने वाली बात यह है कि आईवीएफ से हुई प्रेगनेंसी को साधारण गर्भधारण करने की तरह नहीं ट्रीट किया जा सकता है। ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर जैसे रोग जो आम हो चुके हैं, ये संतान प्राप्ति में बाधक बन सकते हैं। इसी प्रकार अन्य ऐसी बातें जो साधारण गर्भावस्था में आम होती हैं, लेकिन आईवीएफ गर्भावस्था में इन पर बारीक नजर रखनी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ऐसे में आवश्यक यह है कि गर्भधारण करने में सफलता मिलने के बाद गर्भावस्था के दौरान और फिर डिलीवरी भी आईवीएफ स्पेशलिस्ट की ही देखरेख में हो।
सिर्फ चुनिंदा टेस्ट ही काफी
डॉ गीता खन्ना कहती हैं कि डॉक्टर और मरीज दोनों के मन में भ्रम की स्थिति होती है। इस बारे में सर गंगा राम अस्पताल दिल्ली की अनुभवी विशेषज्ञ डॉ आभा मजूमदार ने बताया कि अनावश्यक टेस्ट न कराकर कुछ चुनिंदा टेस्ट करवाये जायें ताकि पहले से ही संतान न होने के कारण अवसाद से ग्रस्त रोगी के समय और पैसे की बचत की जा सके।
हार्मोन का चुनाव
इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी की सचिव डॉ सुरवीन घूमन ने बताया कि अगर अंडाशय ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, या अंडे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, तो अंडे बनाने के लिए या अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए किस प्रकार की महिला को कौन से हार्मोन दिये जायें।
कैसे होगा दवा का खर्च आधा
इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी (आईएफएस) के अध्यक्ष डॉ केडी नायर ने अपनी प्रस्तुति में बताया कि एक महत्वपूर्ण हार्मोन प्रोजेस्टेरोन के इस्तेमाल से दवाओं का खर्च आधा हो जायेगा। आईएफएस के पूर्व अध्यक्ष डॉ कुलदीप जैन ने पुरुषों में शुक्राणुओं की पर्याप्त संख्या, अच्छे शुक्राणुओं का आसानी से चुनाव, उनकी गुणवत्ता, प्रक्रिया के दौरान उनका डीएनए किस प्रकार बरकरार रखा जाये जैसी महत्वपूर्ण जानकारी दी।
दिल्ली की प्रो सोनिया मलिक ने बताया कि अगर किसी महिला का बार-बार गर्भपात हो रहा है तो पहले उसकी इम्यूनोलॉजी की जांच करनी चाहिये। यह देखना चाहिये कि कहीं महिला किसी एलर्जी की शिकार तो नहीं है।
आईयूआई सबके लिए नहीं
इसके अतिरिक्त सेना के विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित दिल्ली के डॉ. पंकज तलवार ने बताया कि आईयूआई तकनीक, जिसे गरीबों का आईवीएफ भी कहा जाता है, का इस्तेमाल किन मरीज में करें और किन मरीजों में नहीं। ज्ञात हो अनावश्यक रूप प्रत्येक मरीज में आईयूआई करने से जहां समय की बर्बादी होती है, वहीं मरीज पर भी खर्च का भार बढ़ता है। डॉ टी रामानी देवी ने बताया कि एडिनोमायोसिस गर्भाशय की एक बहुत ही विशेष बीमारी है जो बांझपन के लिए जिम्मेदार है, हार्मोन्स के कारण होने वाली इस बीमारी को कैसे डायग्नोस करें, कैसे इलाज करें। पुणे की डॉ गिरिजा वाघ ने बताया कि आईवीएफ गर्भावस्था का प्रबंधन कैसे किया जाए।
साइंटिफिक कमेटी की चेयरपर्सन और लॉग्स की सेक्रेटरी डॉ प्रीति कुमार ने बताया कि भारत में महिलाएं डायबिटीज के लिए प्रोन हैं, ऐसे में गर्भावस्था में डायबिटीज बढ़ जाती है। इसलिए आवश्यक है कि गर्भवती होने की जानकारी मिलने के बाद डायबिटीज की जांच करायें, इसके बाद गर्भावस्था के सातवें माह में और फिर डिलीवरी के बाद डायबिटीज की जांच करानी चाहिये। उन्होंने बताया कि डायबिटीज न सिर्फ मां बल्कि गर्भस्थ शिशु के लिए भी दिक्कत पैदा कर सकती है।
डॉ कुलदीप सिंह ने बताया कि गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड से बीमारियों का निदान किस प्रकार किया जाये, किस प्रकार उसका सही प्रयोग किया जाये, विशेष रूप से गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में जब बच्चे के अंग बन रहे हैं, यह केवल अल्ट्रासाउंड द्वारा देखा जा सकता है।
उड़ीसा की डॉ पीएल त्रिपाठी ने बताया कि गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप बढ़ते बच्चे में किन प्रकार की समस्याएं पैदा करता है। इसके अलावा एक पैनल चर्चा का भी आयोजन किया गया। इसमें मधुमेह, रक्तचाप, जुड़वां, बार-बार गर्भपात का इतिहास, उम्र बढ़ने वाली महिलाओं से जुड़ी उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था पर विचार-विमर्श किया गया।