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मैट्रिक्स रिब तकनीक से एसजीपीजीआई में अब नाक, कान जैसे अंगों की प्‍लास्टिक सर्जरी हुई आसान

-दो माह पूर्व कानों को बनाने में किया गया था नयी तकनीक का उपयोग, अब मरीज पूरी तरह स्‍वस्‍थ

-मैट्रिक्स रिब तकनीक से क्रांतिकारी बदलाव, पसलियों में फ्रैक्‍चर के उपचार में भी होगा लाभ

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। प्‍लास्टिक सर्जरी में अत्‍याधुनिक मैट्रिक्‍स रिब तकनीक से जहां पसली के फ्रैक्‍चर में उपचार आसान हुआ है वहीं इस तकनीक से नाक-कान जैसे मुलायम अंगों को बनाने में प्‍लास्टिक सर्जरी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया है, क्‍योंकि मुलायम अंगों को बनाने में पसली के साथ मौजूद रहने वाले कार्टिलेज (एक प्रकार की मुलायम हड्डी) का प्रयोग किया जाता है, अभी तक कार्टिलेज निकालने के लिए पसली निकालनी पड़ती है, और निकाली हुई पसली की जगह को खाली छोड़ना मजबूरी होती थी क्‍योंकि पसली दोबारा लग नहीं पाती थी लेकिन मैट्रिक्‍स रिब तकनीक से पसली को प्‍लेट के जरिये वापस लगाया जाना संभव हो गया है। इस तकनीक का यहां संजय गांधी पीजीआई में दो माह पूर्व पहली बार इस्‍तेमाल हुआ था, मरीज अब पूरी तरह स्‍वस्‍थ है, इसके बाद ही इस तकनीक की सफलता के बारे में संस्‍थान द्वारा जानकारी दी गयी है।

इस सर्जरी को अंजाम देने वाले संस्‍थान के प्‍लास्टिक एवं सर्जरी विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो राजीव अग्रवाल ने बताया कि रोगी एक बारह वर्ष की लड़की है, जिसके दोनों कानों में विकृति थी एवं  दोनों कान आगे की ओर झुके हुए थे। इस रोगी के कान को सही आकृति देने में पसली के मुलायम भाग का प्रयोग किया गया, एवं इसकी पसलियों को रि‍बप्लास्टी तकनीक के द्वारा सुदृढ़ किया गया, यह रोगी अब डिसचार्ज हो चुका है, एवं स्वस्थ है। रोगी का ऑपरेशन  डॉ राजीव अग्रवाल द्वारा संचालित टीम ने किया टीम के सदस्यों में चीफ सर्जन प्रो राजीव अग्रवाल के साथ ही चीफ निश्‍चेतक डॉ संजय कुमार, डॉ दिव्‍या श्रीवास्‍तव एवं रेजीडेंट डॉ भू‍पेश गोगिया शामिल थे।

उच्‍च संस्‍थानों में ही किया जाना चाहिये इस तकनीक का प्रयोग

डॉ राजीव अग्रवाल ने बताया कि मैट्रिक्स रिब तकनीक ने पसली के फ्रैक्‍चर होने की दशा में किये जाने वाले उपचार में एक क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है और इस तकनीक से आगे आने वाले समय में अब नाक एवं कान की प्लास्टिक सर्जरी सुगम हो जायेगी। उन्‍होंने कहा कि मैट्रिक्स रिब तकनीक अत्यन्त नाजुक एवं कठिन तकनीक है, जिसका प्रयोग प्लास्टिक सर्जरी के मान्यता प्राप्त उच्च संस्थानों में किया जाना चाहिए क्‍योंकि इस  सर्जरी में महत्वपूर्ण बात यह है कि पसलियों को निकालने एवं पुनः बनाने का कार्य अत्यंत संवेदनशील एवं जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया में रोगी निश्चेतना कि अवस्था में होता है एवं सांस लेता रहता है। सांस लेते वक्त रोगी की पसलियां निरंतर गतिशील रहती हैं, और प्लास्टिक सर्जन को एक हिलते हुए स्थान पर कार्य करना पड़ता है, एवं पावर ड्रि‍ल मशीन से सुराख इत्यादि‍ करने पड़ते हैं। ज्ञात हो कि पसलियों के कुछ  मिलीमीटर नीचे फेफड़ा होता है और जरा सी चूक फेफड़े को क्षति‍ग्रस्त कर सकती है। मैट्रिक्स रिब तकनीक की सुविधा एस0जी0पी0जी0आई0, लखनऊ के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में उपलब्ध है

प्रो राजीव ने बताया कि मानव शरीर की संरचना में पसली का महत्वपूर्ण योगदान है, मानव शरीर में चौबीस पसलियां  होती हैं, जो कि एक महत्वपूर्ण ढांचा बनाती हैं, इसी ढांचे के अन्दर मनुष्य के दो फेफड़े, हृदय एवं शरीर की महत्वपूर्ण धमनि‍यां होती हैं। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि पसलियां सिर्फ फेफड़े एवं हृदय की सुरक्षा ही नही करतीं बल्कि ये अस्थि का एक प्रमुख स्रोत हैं। पसली में एक विशेषता होती है कि इसमें अस्थि के साथ-साथ उपास्थि (कार्टिलेज) भी मिश्रित होती है। यही उपस्थि पसली को लचीला बनाती है, जिससे की पसली का पूरा ढांचा रि‍बकेज भी कहते हैं, वह सांस की गति के साथ फैलता एवं संकुचित होता है। पसलि‍यों का प्लास्टिक सर्जरी के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। उपास्थि का सबसे ज्यादा प्रयोग नाक को सुडौल एवं आकर्षक बनाने में किया जाता है, क्योंकि यह उपास्थि मुलायम एवं लचीली होती है, एवं इसको किसी भी आकार में ढाला एवं बनाया जा सकता है। उपास्थि का प्रयोग उन रोगों में किया जाता है, जिनमें कान नहीं होते। चूंकि कान में भी मुलायम उपास्थि होती है, अतः कान बनाने में भी उपास्थियों का प्रयोग किया जाता है।

नयी पद्धति से एक से ज्‍यादा पसलियां निकालना भी संभव

पसली के प्रयोग के लिए आवश्यक है कि पसली को शरीर से सुगमतापूर्वक एवं सावधानीपूर्वक निकाला जा सके एवं जहां से पसली निकाली गयी है, वहां पर किसी प्रकार की कोई विकृति एवं कमी ना आने  पाये। अब तक प्लास्टिक सर्जरी में, पसलियों का प्रयोग तो होता था, लेकिन जहां से पसली  निकाली जाती है, वहां पर खाली छोड़ दिया जाता था। ऐसी स्थिति‍ में किसी रोगी में अगर एक से ज्यादा पसलियों की आवश्यकता पड़े तब दो पसलियों को निकालना असंभव हो जाता था, क्योंकि दो पसलियों को निकालने के बाद रोगी को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।

मैट्रिक्स रिब एक ऐसी आकर्षक रि‍बप्लास्टी की चिकित्सा पद्धती है जिसके द्वारा मनुष्य की एक अथवा एक से अधिक पसलियों को निकालने के बाद, अत्याधुनिक टाइटेनियम प्लेट से जोड़ा जा सकता है। इस तकनीक के प्रयोग से रोगी की पसलियों में कहीं भी खाली जगह नहीं रह जाती है, जिससे पसली पूर्व की तरह सुदृढ़ एवं मजबूत रहती है। इस तकनीक का प्रयोग एक से ज्यादा पसलियों के लिए भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पसलियों के टूट जाने या फ्रैक्चर हो जाने पर भी इस तकनीक का प्रयोग अत्यन्त लाभदायक होता है।

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