पीजीआई में आयोजित कार्यशाला में अनेक चिकित्सकों ने दिया व्याख्यान
लखनऊ। दुर्घटना से बचने और चोट लगने के बाद बेहोश होने की स्थिति में मरीज को कैसे लाया जाये इस विषय को लेकर शनिवार को संजय गांधी पीजीआई में एक कार्यशाला आयोजित की गयी। इस कार्यशाला में पूरे उत्तर प्रदेश से आये 50 चिकित्सकों, नर्सिंग स्टाफ एवं पैरामेडिकल स्टाफ ने भाग लिया।
कोर्स के निदेशक व पीजीआई के एडिशनल प्रोफेसर डॉ संदीप साहू नेे दुर्घटना से होने वाली चोट एवं उसके फलस्वरूप होने वाली मौतों तथा जीवन के बचाव हेतु किये जाने वाले उपयों पर ट्रॉमा प्रिवेन्शन प्रोग्राम के अन्तर्गत व्याख्यान दिया।
एबीसीडी एप्रोच सिद्धांत को अपनायें : डॉ संदीप साहू
उन्होंने बताया कि अपने देश के परिप्रेक्ष्य में बचाव उपचार से उत्तम होता है, वाला सिद्धान्त ज्यादा प्रासंगिक है। इसलिए बचाव ही एक मात्र उपाय है क्योकि देश में ट्रॉमा उपचार की चिकित्सा व्यवस्था अपर्याप्त है साथ ही निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों पर इस इलाज हेतु अत्यधिक व्यय वसूला जाता है।
दुर्घटना के तुरन्त बाद वाले समय को डा0 संदीप साहू ने गोल्डेन समय से सम्बोधित किया। इस समयावधि में ए0बी0सी0डी0 एप्रोच के सिद्वान्त के अनुश्रवण पर बल दिया। इस सिद्वान्त के अन्तर्गत प्रथमत: श्वसन क्रिया को सुचारु रूप से बहाल करना, रक्त स्राव को रोकने का प्राथमिक उपचार करना आदि है। क्योकि अत्यधिक रक्त स्राव से मरीज के अंगों जैसे कि दिमाग एवं दिल को क्रियाशील करना जिससे कि दुर्घटना के तत्काल बाद होने वाली मृत्यु को न्यूनतम किया जा सके जिससे दुर्घटना स्थल पर होने वाली मृत्यु या अस्पताल तक मरीजों को ले जाने के दौरान होने वाली मौतों को कमतर किया जा सके।
आंतरिक नसें फट जाने पर शीघ्र सर्जरी जरूरी : डॉ विनोद जैन
किंग जॉर्ज मेडिकल यूविर्सिटी से आये सीनियर शल्य चिकित्सक डा0 विनोद जैन ने चेस्ट ट्रॉमा पर व्याख्यान दिया और बताया कि दुर्घटना के बाद कार आदि की स्टीयरिंग से चेस्ट पर होने वाले चोटों से आन्तरिक अंगों में चोट से श्वसन क्रिया प्रभावित होती है एवं दिल में चोट से ब्लड सप्लाई भी प्रभावित होती है तथा आन्तरित नसों आदि के फट जाने के कारण रक्त स्राव को तत्काल ड्रेन आउट करने के लिए शीघ्रातिशीध्र ट्रॉमा सेंटर चेस्ट सर्जरी के लिए ले जाने की आवश्यकता होती है। वही किंग जॉर्ज मेडिकल यूविर्सिटी से आये ट्रामा शल्य चिकित्सक डा0 समीर मिश्रा ने पेट पर लगने वाली चोटों एवं इसके चिकित्सा प्रबन्धन पर व्याख्यान देते हुए बताया कि ज्यादातर ट्रामा इन्जरी में लिवर, किडनी, इस्पलीन आदि क्षतिग्रस्त हेाती हैं जिससे अत्यधित रक्त स्राव हो जाता है। इसमें तत्काल मरीज को अल्ट्रासाउण्ड से पेट के अंगों में चोट से होने वाले नुकसान को तत्काल लैप्रोटॉमी एवं आईसीयू केयर के द्वारा उपचारित किया जाता है।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूविर्सिटी से ही आये न्यूरो-शल्य चिकित्सक डा0 क्षितिज श्रीवास्तव ने सिर की चोट के कारणों का चिन्हीकरण एवं इसके प्रबन्धन पर व्याख्यान दिया। ज्यादातर हेड इन्जरी के मरीजों को तत्काल सीटी स्कैन की आवश्यकता होती है एवं तत्काल मरीज की देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि समय ही बे्रन है। यदि आप मरीज के ए0बी0सी0 सिद्धान्त का अनुसरण करते हैं तो मरीज का दिमाग स्वत: बच जायेगा।
केजीएमयू के एनीस्थीसिया विभाग से ही आई डा0 हेमलता ने श्वसन क्रिया प्रबन्धन पर व्याख्यान दिया और बताया कि कुछ केसों में आकस्मिकता की स्थिति में क्रिकोथाईरोटॉमी की भी आवश्यकता पड़ सकती है तथा ज्यादातर मरीजों में इन्टूवेशन एवं वेन्टिलेटरी सपोर्ट की आवश्यकता पड़ सकती है। उन्होंने आर्थो-ट्रॉमा पर भी व्याख्यान दिया। ज्यादातर ऑर्थो-ट्रॉमा में मरीजों में अंगों के क्षत-विक्षत होने की वजह से ततकाल एक्स-रे तथा नसों के क्षतिग्रस्त होने के प्रबन्धन पर भी ध्यान केन्द्रित किया । वहीं डा0नेहा राय ने बच्चों में अत्यधित रक्त स्राव से होने वाली मौतों पर ब्लड टा्रन्सफ्यूजन पर व्याख्यान दिया, क्योंकि बच्चों में वैसे भी बहुत कम रक्त शरीर में शेष रह जाता है।
प्रतिभागियों को एस0जी0पी0जी0आई0 के हृदय शल्य चिकित्सक डा0 बिपिन चन्द्रा एवं क्रिटिकल केयर फिजीशियन डा0प्रबोल घोष ने पुतलों एवं स्वैच्छिक मनुष्यों पर भी प्रैक्टिकल करके ट्रॉमा मरीजों के जीवन के बचाने के उपायों को करके दिखाया।
कोर्स आयोजन के मौके पर समारोह का उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रो0 राकेश कपूर ने किया। उन्होंने एनीस्थीसिया विभाग द्वारा की गई इस नवीन पहल की तारीफ की जिसमें कि चिकित्स एवं नर्सिंग स्टाफ तथा पैरा-मेडिकल स्टाफ प्रशिक्षित हो सकें।
संस्थान के डीन प्रो. राजन सक्सेना संस्थान के संकाय सदस्यों को निरन्तर समाज में जाकर सेवा कर मरीजों की जान बचाने हेतु प्रोत्साहित करते आ रहे हैं। प्रो0 अमित अग्रवाल, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने संस्थान द्वारा शीध्र ही ट्रॉमा सेवाओं के चालू किये जाने की बात कही। प्रो0 राज कुमार, विभागाध्यक्ष- न्यूरो सर्जरी, एवं इंचार्ज ट्रॉमा सेंटर ने आश्वस्त किया कि प्रदेश में अत्याधुनिक प्रथम स्तर का ट्रॉमा सेंटर विकसित किया जायेगा जिससे कि समस्त राज्य के मरीज ट्रॉमा के इलाज से लाभान्वित हो सकें। वहीं संस्थान के एनीस्थीसिया विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 अनिल अग्रवाल ने ट्रामा/चोट के मरीजों के दर्द से छुटकारा एवं स्वास्थ्य लाभ पर व्याख्यान दिया।
आईएमए प्रेसीडेन्ट डॉ. पीके गुप्ता से समाज से अपील की ट्रैफिक नियमों का सख्ती से अनुपालन करके रोड एक्सीडेन्ट को रोका जाय। सभी वक्ताओं ने समग्र रूप में विचार रखे कि सबकी सामाजिक जिम्मदारी बनती है कि स्वच्छ भारत बनाये तथा सुरक्षित यातायात के साधनों को अपनाये जिससे सडक़ दुर्घटनायें न हों एवं स्वस्थ एवं खुशहाल जिन्दगी जियें और देश की उन्नति में सहभागिता प्रदान करे।