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कर्मचारियों का आरोप, केजीएमयू प्रशासन की कथनी और करनी में अंतर

-स्‍थापना दिवस पर गैर शैक्षणिक कर्मियों को सम्‍मानि‍त न किये जाने से नाराज है कर्मचारी परिषद, वीसी को सौंपा पत्र

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) की कर्मचारी परिषद ने 22 दिसम्‍बर को सम्‍पन्‍न केजीएमयू के 114वें और 115वें स्‍थापना दिवस समारोह में किसी नॉन टीचिंग स्‍टाफ को पुरस्‍कृत न किये जाने पर केजीएमयू प्रशासन पर भेदभाव का आरोप लगाया है। परिषद का कहना है कि प्रशासन की कथनी और करनी में अंतर है। परिषद ने कहा है कि कोविड काल में चिकित्‍सक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले नॉन टीचिंग कर्मियों को सम्‍मान न प्रदान किये जाने से पूरी ईमानदारी और गंभीरता से अपनी ड्यूटी करने वाले कर्मियों का मनोबल टूट रहा है, ऐसे में केजीएमयू प्रशासन इस बारे में विचार कर कर्मियों को सम्‍मानि‍त करने का पृथक समारोह आयोजित करना चाहीये।

परिषद के अध्‍यक्ष प्रदीप गंगवार और महासचिव राजन यादव ने इस आशय का एक पत्र कुलपति को लिखा है। पत्र में कहा गया है कि हमेशा स्‍थापना दिवस समारोह में गैर-शैक्षणिक स्‍टाफ में अच्‍छे कार्य करने वालों को पुरस्‍कृत किया जाता रहा है, लेकिन इस बार ऐसा न होने से निराशा हुई है। कर्मियों को लगता है कि जैसे वह इस सिस्‍टम का हिस्‍सा नहीं हैं। इससे अच्‍छा कार्य करने वाले कर्मियों को जहां निराशा हाथ लगी है वहीं कर्मियों को अच्‍छा कार्य करने के लिए प्रोत्‍साहित करने में भी निराशा हाथ लगेगी।

पत्र में कहा गया है कि गैर शै‍क्षणिक कर्मियों को सम्‍मानित करने की सूची में न रखना जानबूझकर या अनजाने में, कैसे भी हुआ हो, कर्मचारी परिषद की यह मांग हैं कि प्रशासन अपनी चूक को मानते हुए गैर शैक्षणिक कर्मियों को पुरस्‍कृत करने के लिए पृथक सम्‍मान समारोह आयोजित किया जाना चाहिये।

प्रदीप गंगवार ने कहा कि कर्मचारी और अधिकारी, चिकित्सक केजीएमयू रूपी रथ के दो पहिये हैं और एक दूसरे के पूरक हैं, एक बिना दूसरा अधूरा है, केजीएमयू का इतिहास गवाह है, कि‍ अगर शिक्षकों ने शोध किये हैं तो बिना कर्मचारियों की मदद के नहीं किये, कितने कर्मचारियों ने स्वयं भी एक से बढ़कर एक शोध किये हैं, और देश-प्रदेश में नाम भी कमाया है, पुरस्कृत भी हुए है, पर इसको दुर्भाग्य ही कहा जायेगा की जब केजीएमयू में सम्मान बटने होंगे तो एक खास संवर्ग को आगे कर दिया जायेगा, बाकी पीछे कर दिये जायेंगे।

उन्‍होंने कहा कि यह बात किसी भी संस्थान की प्रगति में बाधक सिद्ध होगी, असहयोग की भावना पनपेगी, और निश्चित ही इसके परिणाम संस्थान हित मे उचित नहीं होंगे।