ज्यादातर जिलों में सीएमओ कार्यालयों में पंजीकरण प्रक्रिया में मनमानी
अव्यवहारिक शर्तों की आड़ में नहीं हो पा रहा डॉक्टरों का सालाना पंजीकरण
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में झोलाछाप डॉक्टरों की डॉक्टरी मस्त चल रही है। जबकि इन झोलाछाप को ही अलग-थलग करने के लिए प्राइवेट क्षेत्र में काम कर रहे डिग्रीधारक डॉक्टरों के हर साल सिर्फ पंजीकरण को अनिवार्य करने के हाईकोर्ट के आदेश की आड़ में जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं। स्थितियां यहां तक पहुंच गयी हैं कि 70 प्रतिशत जनता का इलाज करने वाले निजी चिकित्सकों में से करीब 80 फीसदी के क्लीनिक, अस्पतालों पर इस माह के अंत में ताला पड़ जायेगा। यह जानकारी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की प्रदेश व लखनऊ जिला इकाई के पदाधिकारियों ने आज यहां आईएमए भवन में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में दी।
यूपी आईएमए के अध्यक्ष डॉ एएम खान और आईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डॉ जीपी सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट ने हर साल निजी चिकित्सकों के सीएमओ के कार्यालय में पंजीकरण का आदेश तो दिया था लेकिन यह भी कहा था कि सीएमओ डॉक्टर को तंग नहीं करेंगे। सिर्फ उनकी डिग्री देखकर ही पंजीकरण कर लिया जाये। लेकिन स्थिति तो यह है कि डॉक्टर चाहे छोटा क्लीनिक, छोटा अस्पताल चला रहा हो या फिर बड़ा नर्सिंग होम, सभी के लिए एक ही मानक तय कर दिये गये हैं । लाइसेंस फीस मनमाने तरीके से तय की गयी है। बिना कचरा उठाये कचरे उठाने के पैसों की वसूली की जा रही है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ज्यादातर जिलों में पंजीकरण ऑनलाइन कर दिया गया है। जबकि कुछ जगहों पर सीएमओ ऑफ लाइन पंजीकरण कर रहे हैं। जबकि होना यह चाहिये व्यवहारिक शर्तों को पूरा कराते हुए सभी जिलों में एक व्यवस्था लागू होनी चाहिये।
डॉ खान ने बताया कि जिलों के चिकित्सकों में इस मनमानी को लेकर बहुत रोष है, और स्थितियां यह हो रही हैं कि अगर सभी जिलों में आगामी 30 मई तक अगर सीएमओ द्वारा पंजीकरण नहीं किया गया तो 70 प्रतिशत जनता का इलाज करने वाले निजी क्षेत्र के डॉक्टर अपना प्रतिष्ठान बंद करने पर मजबूर हो जायेंगे। इससे चिकित्सक और जनता दोनों को भारी परेशानी उठानी पड़ सकती है।
अव्यावहारिक है शर्त
आपको बता दे कि 30 अप्रैल तक पंजीकरण के लिए जो अर्हतायें पूरी की जानी हैं, उनमें एक है फायर विभाग का अनापत्ति प्रमाण पत्र। चिकित्सकों का कहना है कि हम फायर विभाग का सर्टीफिकेट भी लगाने को तैयार हैं बशर्ते फायर विभाग दे तो। डॉ खान ने बताया कि फायर विभाग का कहना है कि जब तक 15 मीटर से ऊंची बिल्डिंग न हो, हम एनओसी नहीं दे सकते है। डॉक्टरों का तर्क यह है कि किसी की क्लीनिक है, या छोटा-मोटा हॉस्पिटल है और उसकी ऊंचाई 15 मीटर नहीं है तो वह शख्स आखिर फायर ब्रिगेड का सर्टीफिकेट कहां से लाकर देगा।
उन्होंने बताया कि हालांकि लखनऊ, मुरादाबाद जैसे जिलों के सीएमओ ने इस स्थिति को समझा और पंजीकरण आवेदन ऑफ लाइन स्वीकार कर लिया। इसमें मुरादाबाद में तो डॉक्टरों का पंजीकरण हो भी गया है जबकि लखनऊ में आवेदन स्वीकार किये गये हैं, अभी पंजीकरण होने शेष है। उन्होंने बताया कि दिक्कत यह है कि ऑनलाइन में जब तक फायर विभाग का एनओसी नहीं होता है सॉफ्टवेयर आगे बढ़ता ही नहीं है। परिणामस्वरूप जिन जिलों के सीएमओ ने ऑफलाइन आवेदन लेने से मना कर दिया है उन जिलों के डॉक्टरों को तो काफी परेशानी हो रही हैं, इसी कारण उनमें गहरा रोष है।
इसी प्रकार क्लीनिकल स्टेब्लिशमेंट ऐक्ट लागू करने की तैयारी पर भी आईएमए पदाधिकारियों ने ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि जिस प्रकार हरियाणा सरकार ने अपना मॉडल चलाया है उसी प्रकार से उत्तर प्रदेश सरकार को भी करना चाहिये। हरियाणा सरकार ने 50 बेड से कम अस्पताल वालों को इस ऐक्ट से मुक्त रखा है।
डॉ खान ने इसका व्यवहारिक पहलू बतते हुए कहा कि ऐक्ट के अनुसार जिस अस्पताल में इमरजेंसी में मरीज पहुंचेगा और यदि मरीज का इलाज उस अस्पताल में उपलब्ध नहीं है तो दूसरे अस्पताल को रेफर करने से पहले मरीज की हालत को स्थिर रखने लायक कम से बना कर ही भेजे। डॉ खान ने कहा कि मान लीजिये कोई छोटा नर्सिंग होम या जच्चा सेंटर है और वहां इमरजेंसी में कोई मरीज हार्ट की बीमारियों से ग्रस्त होकर पहुंचता है तो भला वहां हार्ट अटैक का इलाज या रेफर करने से पहले उसे स्थिर रखने के लिए भी इलाज डॉक्टर कैसे कर सकेगा। और अगर करने की कोशिश करे भी तो मरीज की जान को भी खतरा हो सकता है, जबकि मरीज को गोल्डेन आवर्स में ही स्पेशियलिस्ट की जरूरत होती है।
पत्रकार वार्ता में यूपी आईएमए महिला विंग की अध्यक्ष डॉ रुखसाना खान, लखनऊ आईएमए के सचिव डॉ जेडी रावत, डॉ आरबी सिंह, डॉ संजय सक्सेना, डॉ राकेश कुमार श्रीवास्तव भी उपस्थित रहे।