साढ़े पांच सौ सालों के लम्बे संघर्ष और प्रतीक्षा के बाद अयोध्या में प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान पर भव्य मन्दिर के निर्माण का भक्तों का सपना पूरा हो चुका है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। गर्भ गृह पर अपने आराध्य के भव्य मन्दिर की प्रतीक्षा पिछली कई पीढ़ियों से असंख्य भक्त कर रहे थे। मुस्लिम आक्रांताओं ने जहां राम जन्मभूमि पर बने मन्दिर के स्थान पर मस्जिद बनवाकर भक्तों की आस्था को ठेस पहुंचायी थी, वहीं आज़ाद भारत में वर्ष 1990 में जब जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े निहत्थे राम भक्तों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने गोलियां चलवायीं तो अयोध्या में सरयू का जल रक्त से लाल हुआ। हालात ऐसे थे कि अयोध्या की गलियों में गोलियों की तड़तड़ाहट, लाठियां, सुरक्षा बलों की बूटों की आवाजें, राम का नाम लेने पर रोक, यहां तक कि अर्थी ले जाते समय सनातनी परंपरा के अनुसार लिए जाने वाले राम के नाम को लेना भी दुश्वार हो गया था। इस घटना से प्रभु श्रीराम के भक्त अत्यधिक व्यथित हो गए। उन्हें लगा कि विदेशी आक्रांता द्वारा हिन्दुओं की भावनाओं को रौंदते हुए किये गए इस कुकृत्य के खिलाफ आवाज उठाते हुए अपने आराध्य का मन्दिर पुनः स्थापित करने की मांग करना क्या गुनाह है ? श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनने की अभिलाषा कब पूरी होगी ? इस पीड़ा को जिन राम भक्तों ने अनुभव किया था, उनमें एक हैं लखनऊ के वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक, गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक डॉ गिरीश गुप्ता।