भारत सरकार ने भारत में बनाने और बेचने दोनों पर लगाया प्रतिबंध

सरकार ने 328 तरह की फटाफट आराम देने वाली दवाओं पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। फिक्स डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाओं के नाम से जानी जाने वाली जिन दवाओं पर रोक लगाई गई है, उनमें विक्स ऐक्शन 500, सेरिडॉन, फेंसिडील, जिंटाप, डिकोल्ड, कोरेक्स, सुमो, जीरोडॉल, और कई तरह के ऐंटीबायॉटिक्स, पेन किलर्स, शुगर और दिल के रोगों की दवाएं शामिल हैं। अभी और भी कई एफडीसी दवाएं हैं, जो देश में बिक रही हैं। माना जा रहा है कि सरकार 500 और एफडीसी पर रोक लगा सकती है।
(जिन दवाओं पर लगाया गया है बैन उनकी सूची देखने के लिए FDC पर क्लिक कीजिये) FDC List
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इन दवाओं को अब देश में बनाया या बेचा नहीं जा सकेगा। बैन दवाओं में कई ऐसी हैं, जिन्हें लोग फटाफट आराम पाने के लिए खुद से खरीद लेते हैं। कई दवाएं सिरदर्द, जुकाम, दस्त, पेट दर्द जैसी बीमारी में ली जाती हैं। आपको बता दें कि एफडीसी दवाएं मरीजों के लिए खतरनाक होती हैं, कई देशों में इन पर बैन भी है।
पर्चे के बगैर नहीं मिलेंगी दवायें
दूसरी ओर 6 एफडीसी को कड़े प्रतिबंधों के साथ बेचा जा सकेगा। इन्हें डॉक्टर के पर्चे के बिना नहीं बेचा जा सकेगा। गौरतलब है कि सरकार ने मार्च 2016 में 349 एफडीसी पर बैन लगा दिया था। दवा कंपनियां इस बैन के खिलाफ दिल्ली और अन्य हाई कोर्ट में चली गई थीं। दिल्ली हाई कोर्ट ने बैन को खारिज कर दिया था। इसके बाद सरकार और कुछ निजी हेल्थ संगठन सुप्रीम कोर्ट चले गए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से बैन की गई दवाओं की जांच के लिए एक कमिटी बनाने और रिपोर्ट देने को कहा था। इस पर ड्रग टेक्निकल अडवाइजरी बोर्ड ने एक कमिटी का गठन किया। कमिटी ने 343 दवाओं पर लगाए गए बैन को जायज करार दिया और छह के निर्माण और बिक्री के लिए कुछ शर्तें लगा दी। सरकार ने इनमें से 328 को ही बैन किया है। इस बैन के बाद इन दवाओं के बाजार से बाहर होने का रास्ता साफ हो गया है।
एफडीसी दवाओं का मतलब
आपको बता दें कि एफडीसी दवाएं वह होती हैं, जो कॉम्बिनेशन में बनती हैं अर्थात जिन्हें दो या उससे ज्यादा दवाओं को मिलाकर बनाया जाता है। इन दवाओं पर देश में एक लंबे समय से विवाद हो रहा है। हेल्थ वर्कर्स के साथ ही संसद की एक समिति ने भी इन पर सवाल उठाए हैं।
समिति का कहना है कि ये बिना मंजूरी के और अवैज्ञानिक तरीके से बनाई गई हैं। इनमें कई ऐंटीबायॉटिक दवाएं भी शामिल हैं। जिन एफडीसी पर विवाद हो रहा है, उन्हें भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल की मंजूरी के बिना ही देश में बनाया और बेचा जा रहा था। इन एफडीसी को राज्यों ने अपने स्तर पर मंजूरी दे दी थी। जबकि इस बारे में केंद्र का मानना यह है कि किसी भी नयी ऐलोपैथिक दवा को मंजूरी देने का अधिकार केंद्र के पास है राज्य सरकारों के पास नहीं। केंद्र इसे गलत मानता है। उसका कहना है कि किसी भी नई ऐलोपैथिक दवा को मंजूरी देने का अधिकार राज्यों को नहीं है।
इन देशों में है बैन
अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के साथ ही कई देशों में एफडीसी पर रोक है। भारत के साथ ही कई विकासशील देशों में ये बिकती हैं। भारत की अगर बात करें तो महज पुडुचेरी एक ऐसा राज्य है, जिसने एफडीसी पर रोक लगा दी है।
माना जा रहा है कि सरकार ने जिन 328 एफडीसी पर बैन लगाया है उनका देश के संगठित दवा क्षेत्र में कुल कारोबार करीब 3800 करोड़ रुपये का है। हालांकि यह भारत के फार्मा सेक्टर के कुल कारोबार का करीब 3 प्रतिशत है। सरकार के फैसले के बाद कोरेक्स पर रोक से फाइजर के 308 करोड़ रुपये के कारोबार पर असर पड़ेगा। वहीं, एबॉट के 480, मैकलॉड्स के 367, पैनडेम के 214, सुमो के 79 और जीरोडॉल के 72 करोड़ रुपये के कारोबार पर असर होगा।

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