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सामाजिक और आर्थिक प्रगति का आईना भी है टीबी : डॉ जेडी रावत

-विश्‍व टीबी दिवस पर आईएमए लखनऊ ने आयोजित की संगोष्‍ठी

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। विश्व टीवी दिवस पर आज इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ द्वारा एक जागरूकता कार्यक्रम एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यहां रिवर बैंक कॉलोनी स्थित आईएमए भवन में आयोजित कार्यक्रम में आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए आईएमए के अध्यक्ष डॉ जेडी रावत ने कहा की टीबी सिर्फ एक रोग ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक प्रगति का आईना भी है। उन्‍होंने कहा कि जांच और उपचार की बेहतर व्यवस्था के बाद भी यह बीमारी जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। उन्होंने कहा इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2025 तक देश को टीवी मुक्त बनाने का संकल्प लिया है।

सचिव आईआईएम लखनऊ व सदस्य कोर कमेटी एनटीईपी डॉ संजय सक्सेना ने कहा कि प्रधानमंत्री के संकल्प को साकार करने के लिए शीघ्र जांच और पूरा इलाज करवाना चाहिए, जिससे टीबी से होने वाली मौतों को रोका जा सके। उन्होंने कहा कि टीबी से हर साल देश में करीब पांच लाख लोग दम तोड़ देते हैं। ये मौत टीबी के साथ अन्य बीमारियों के कारण होती है। उन्होंने कहा कि टीबी से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ते ही एचआईवी, डायबिटीज व कई अन्य बीमारियों के साथ मानसिक समस्याएं होती हैं, ऐसे में टीबी की पुष्टि होते ही अन्य जरूरी जांच कराकर जोखिम का पता लगाना जरूरी है, जिससे उच्च जोखिम वाले मरीजों का खास खयाल रखकर उनका जीवन बचाया जा सके।

टीबी संक्रमण और टीबी से मौतें में भारत पहले स्‍थान पर : डॉ दर्शन बजाज

इस मौके पर आयोजित संगोष्‍ठी में वक्‍ता के रूप में आमंत्रित किंग जॉज मेडिकल यूनिवर्सिटी नोडल ऑफीसर कोर कमेटी एनटीईपी डॉ दर्शन बजाज ने कहा कि विश्‍व में टीबी के सर्वाधिक 28 प्रतिशत मरीज अकेले भारत से हैं, यानी हर चौथा मरीज भारत का है, टीबी से मरने वाले मरीजों में हर तीसरा मरीज भारतीय है। कुछ सालों पहले डॉट्स का जो ट्रीटमेंट हम एक दिन छोड़कर देते थे, वह आज रोज देना पड़ रहा है, पहले छह माह में ट्रीटमेंट समाप्‍त हो जाता था, अब इसे नौ महीने से लेकर एक साल तक बढ़ाया जा सकता है, पहले चार दवाओं के बाद दो दवाएं थीं अब चार दवाओं के बाद तीन दवाएं देनी पड़ रही हैं।

उन्‍होंने कहा कि इसके अलावा कोर्स समाप्‍त होने के बाद छह-छह माह के अंतराल पर जांच कर दो साल तक मरीज पर नजर रखनी है क्‍योंकि ऐसे मरीजों को दोबारा टीबी होने की आशंका रहती है। इसके अलावा उन्‍होंने बताया कि टीबी की जांच के लिए आधुनिक उपकरणों के साथ ही रे‍सिस्‍टेंट टीबी के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं के बारे में जानकारी दी। उन्‍होंने कहा कि अच्‍छी बात यह हैं कि ज्‍यादातर दवाएं मुंह से खाने वाली हैं, इंजेक्‍शन से देने की आवश्‍यकता बहुत कम लोगों को ही पड़ती है।

ठीक से पुष्टि होने के बाद ही शुरू करें टीबी की दवा : डॉ एसएन गुप्‍ता

संजीवनी हॉस्पिटल के डॉ एसएन गुप्‍ता ने कहा कि टीबी की जांच अब बहुत एडवांस हो गयी हैं, पहले एक समय था जब कल्‍चर जांच के बाद दो-दो हफ्ते रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ता था। लेकिन अब 48 घंटे में इसकी रिपोर्ट सामने आ जाती है। उन्‍होंने कहा कि जांच रिपोर्ट में टीबी होने की पुष्टि ठीक तरह से करने के बाद ही टीबी की दवा शुरू करनी चाहिये। कई बार ऐसा भी होता है किे टीबी न होने के बावजूद टीबी की दवा शुरू कर दी जाती है। उन्‍होंने कहा कि कई बार बलगम की जांच में टीबी निगेटिव आती है लेकिन एक्‍सरे में धब्‍बा देखने से लगता है कि मरीज टीबी से ग्रस्‍त है। उन्‍होंने कहा कि किसी भी मरीज का सिर्फ एक्‍सरे देखकर यह नहीं कहा जा सकता है कि उसे टीबी है, क्‍योंकि एक्‍सरे में फेफड़ों पर दिखने वाला हर धब्‍बा टीबी नहीं होता है, कैंसर, फंगल, निमोनिया जैसी दूसरी वजहों से भी वह धब्‍बा हो सकता है। उन्‍होंने कहा कि उन्‍होंने कहा कि इसके लिए दूसरे एडवांस टेस्‍ट एलपीए, जीन एक्‍सपर्ट करवा कर ही किसी निष्‍कर्ष पर पहुंचना चाहिये। उन्‍होंने कहा कि ब्रॉन्‍कोस्‍कोपी से भी जांच की जा सकती है।

किसी भी अंग में हो सकती है टीबी, समय से शुरू करें इलाज : डॉ वीरेन्‍द्र यादव

आईएमए लखनऊ के प्रवक्‍ता व लखनऊ हेरिटेज हॉस्पिटल के डॉ वीरेन्‍द्र यादव ने एक्‍स्‍ट्रा पल्‍मोनरी टीबी के प्रबंधन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि टीबी पल्‍मोनरी, फेफड़े में तो होती ही है, लेकिन यह शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। उन्‍होंने बताया कि फेफड़े के बाद सबसे ज्‍यादा टीबी लिम्‍फ नोड्स में होती है, इसके अलावा हड्डियों, स्‍पाइन, ब्रेन, नाक, कान, गला, आंख, त्‍वचा आदि सभी अंगों पर होती है। उन्‍होंने कहा कि सभी अंगों के हिसाब से अलग-अलग इलाज किया जाता है, और सभी टीबी का ट्रीटमेंट है, बशर्ते समय से देख कर उपचार शुरू कर दिया जाये। इसके लिए आवश्‍यक है कि यदि टीबी के लक्षण हैं तो समय से जांच करवा कर उसको डायग्‍नोस करा लिया जाये।  उन्‍होंने कहा कि यहां एक बात ध्‍यान में रखने वाली है कि कभी भी टीबी की दवा को बीच में छोड़ना नहीं चाहिये अगर एक बार दवा खाने में चूक होती है तो एक माह का कोर्स और बढ़ जाता है। यही नहीं एक स्थिति ऐसी भी आ सकती है कि वे दवा के प्रति रेसिस्‍टेंट हो जायें और कोई दवा फायदा न करे।

इस मौके पर पूर्व अध्यक्ष डॉ जीपी सिंह, पूर्व अध्‍यक्ष डॉ मनीष टंडन, डॉ मनोज गोविला, डॉ राकेश सिंह, डॉ आरबी सिंह, डॉ मनोज अस्‍थाना, डॉ सरस्वती देवी, डॉ अर्चिका गुप्ता, डॉ शाश्वत सक्सेना, डॉ संजय श्रीवास्‍तव, डॉ गुरमीत सिंह सहित अनेक चिकित्‍सक उपस्थित थे। इस मौके पर उपस्थित आईएमए कार्यकारिणी सदस्य व चिकित्सा प्रकोष्ठ भाजपा लखनऊ  के संयोजक डॉ शाश्वत विद्याधर ने अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त करते हुए कहा कि चिकित्सक निक्षय पोर्टल पर क्षय रोगियों का ब्यौरा अवश्य दें।

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