-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर आईएमए की पत्रकार वार्ता में डॉ शाश्वत सक्सेना ने कड़वे सच से कराया सामना
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सेहत टाइम्स
लखनऊ। राजधानी लखनऊ में बच्चे, किशोर और युवा नशे की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। मिथ जैसे नये नशे लखनऊ में पहुंच चुके हैं। इसके साथ ही गांजा, स्मैक, कोकीन के नशे के शिकार छात्र इलाज के लिए आ रहे हैं। सिर्फ लड़के ही नहीं, लड़कियों में भी नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
राजधानी लखनऊ की इस भयावह स्थिति से रू ब रू कराया मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ शाश्वत सक्सेना ने। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा 10 अक्टूबर को आयोजित पत्रकार वार्ता में डॉ सक्सेना ने बताया कि अलग-अलग उम्र के बच्चों के लिए अलग-अलग प्रकार के नशों का दौर चल रहा है।
उन्होंने बताया कि 13 साल तक के बच्चे सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू के अलावा सूंघने वाले नशे का इस्तेमाल करते हैं, इनमें नेल पॉलिश रिमूवर, व्हाइटनर, पेंट, पेट्रोल को सूंघने से उन्हें बहुत आनन्द आता है। इससे ऊपर की उम्र के 18 साल तक के बच्चे मारिजुआनाप, गांजा, शराब, स्मैक का सेवन कर रहे हैं जबकि 19 साल से ऊपर वाले मिथ, गांजा, कोकीन जैसे हर प्रकार के नशे का सेवन कर रहे हैं।
डॉ शाश्वत ने बताया कि कोकीन, स्मैक के नशे में तलब ज्यादा है, इसी प्रकार शराब के मुकाबले तम्बाकू के नशे में तलब ज्यादा है। मिथ और कोकीन ऐसे नशे ऐसे होते हैं, कि अगर एक बार भी ले लिया तो तलब लगती है।
उन्होंने बताया कि नशा करने वालों में लड़कों की संख्या ज्यादा है लेकिन लड़कियां भी नशा कर रही हैं, हाल के वर्षों में देखा गया है कि लड़कियों में नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
इस समस्या के कारणों और उसके समाधान के बारे में डॉ शाश्वत ने बताया कि आजकल बच्चों में धैर्य की कमी देखी जा रही है, बदली हुई लाइफ स्टाइल में बच्चे आउटडोर गेम खेल नहीं रहे हैं, आउटडोर वाले गेम भी मोबाइल पर खेलते हैं, ऐसे में हार को पचाना नहीं सीख पाते हैं, जो कि जीवन जीने के दृष्टिकोण से बहुत आवश्यक है। क्योंकि मोबाइल पर खेलते समय यदि हारे तो तुरंत ही नया मैच फिर खेल सकते हैं, जबकि मैदान में खेलते समय हारने पर तुरंत ही अगला गेम नहीं खेला जाता है।
उन्होंने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों को धैर्य रखना सिखाना चाहिये, क्योंकि यही अधीरता उन्हें कुंठा की तरफ ले जाती है, इसी के चलते उनका नशे की तरफ भी झुकाव हो सकता है। माता-पिता को चाहिये कि वे बच्चों को समय दें, उसकी परेशानियों को समझें, और उसका समाधान निकालें। बच्चों को बतायें कि वह अपना लक्ष्य निश्चित रखें, और सफल कहलाने के लिए धैर्य के साथ अपना कार्य करें, जैसे कि यदि अकादमिक क्षेत्र में सफलता हमेशा 50-55 वर्ष की आयु पर आकर ही मिलती है क्योंकि इससे पूर्व व्यक्ति की लगातार आगे बढ़ने की प्रक्रिया चलती रहती है। डॉक्टर, लेखक, साइंटिस्ट जैसे सफल लोग एक दिन मे सफल नहीं बन जाते हैं, वर्षों की मेहनत के बाद ऐसा होता है। बच्चे स्वयं और माता-पिता बच्चों की फिजिकल और मेंटल हेल्थ मेन्टेन रखें।
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