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मन:स्थिति के चलते होते हैं शरीर पर सफेद दाग, होम्‍योपैथी में इलाज संभव

-अंतर्राष्‍ट्रीय फोरम पर डॉ गिरीश गुप्‍ता ने दिया प्रेजेन्‍टेशन  

-जीसीसीएचआर की रिसर्च में सफलता की दर 50 फीसदी

डॉ गिरीश गुप्‍ता

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। अंतर्राष्‍ट्रीय फोरम फॉर प्रमोशन ऑफ होम्‍योपैथी IFPH द्वारा ग्‍लोबल स्‍तर पर सभी होम्‍योपैथिक चिकित्सक और जन मानस को एक प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए निरंतर प्रति दिन अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया जा रहा है। इसी क्रम में 15 सितम्‍बर को विटिलिगो (सफेद दाग) रोग पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। हिन्‍दी दिवस को समर्पित इस कार्यक्रम में मुख्‍य वक्‍ता के रूप में गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्‍सल्‍टेंट डॉ गिरीश गुप्‍ता ने विटिलिगो पर अपनी रिसर्च के बारे में जानकारी देते हुए उपचारित किये गये सैकड़ों केसेज में पांच मॉडल केसेज के बारे में विस्‍तार से प्रस्‍तुति दी। 

डॉ गिरीश ने बताया कि ऑटो इम्‍यून डिजीज विटिलिगो का सम्‍बन्‍ध मन यानी मानसिक सोच से होता है, इस बात को अब ऐलोपैथी के चिकित्‍सक भी मानने लगे है, हालांकि होम्‍योपैथी के तो सिद्धांत में ही यह शामिल है कि इलाज रोग का नहीं बल्कि रोगी का होता है, इसी सिद्धांत पर चलते हुए उन्‍होंने यह सफलता प्राप्‍त की है।

उन्‍होंने बताया कि सभी केसेज में मरीज की हिस्‍ट्री लेने पर उसके साथ घटी घटनाओं, उसकी आदतों, पूर्व में या वर्तमान में जिन परिस्थितियों का उसकी मनोदशा पर असर पड़ा जैसी बातों के आधार पर मरीज की मानसिक स्थिति को समझते हुए दवा का चुनाव किया गया।

आदतें जो पायी गयीं

डरपोक, जिद्दी, कम एकाग्रता, गणित में अयोग्य, लापरवाह, अंधेरे का डर, कायरता, अकेले रहने का डर, नीरसता, नमकीन भोजन की इच्छा, पेट के बल सोना, रात में अनैच्छिक पेशाब, बात-बात पर गुस्सा आना,  नखरे करना, किसी को देखकर जलना, मूडी होना, मीठा खाने की इच्‍छा, प्‍यास ज्‍यादा लगना जैसी दर्जनों आदतों को देखते हुए ही दवा का चुनाव किया गया।

जो कारण पाये गये

उन्‍होंने बताया कि सफेद दाग के लिए जिन कारणों को जिम्‍मेदार माना गया उनमें गुस्‍से को दबाना, किसी बात को लेकर दु:ख, प्रियजनों की मृत्‍यु, निराशा, मानसिक सदमा, अपमान, यौन शोषण, धोखा, किसी की परवाह करना, उसके प्रति चिंतित रहना, महत्वाकांक्षा, धोखा, भय, प्रत्याशा, वित्तीय हानि, आक्रोश, भ्रम होना आदि शामिल रहे।

डॉ गिरीश ने जिन पांच मॉडल केसेज के बारे में विस्‍तार से प्रेजेन्‍टेशन दिया उनमें पहला मॉडल केस एक 12 वर्षीय बच्‍चे के बारे में बताया जिसकी गर्दन में, कान के नीचे सफेद दाग हो गये थे, इलाज से पूर्व 8 दिसम्‍बर, 2012 की फोटो और इलाज समाप्‍त होने के बाद 29 सितम्‍बर, 2014 की फोटो दिखायी। दूसरा मॉडल केस 10 वर्षीया लड़की का था जिसके पैर के अंगूठे के ऊपर सफेद दाग हो गये थे। इस लड़की का इलाज के पूर्व का 15 मार्च, 2011 का फोटो तथा 28 फरवरी, 2012 को ठीक होने का फोटो प्रदर्शित किया। तीसरा मॉडल केस 15 वर्षीया लड़की का था, यह 1 जनवरी, 2012 को आयी थी, इसके पीछे कंधे के बगल, गरदन के पास पीठ की ओर पर दाग थे। इस लड़की की हिस्‍ट्री से एक और बात सामने आयी, वह यह कि इसके पिता इसके जन्‍म के समय लड़की नहीं, लड़का चाहते थे, यह बात रिश्‍तेदारों ने लड़की को बड़े होने पर बतायी, इस बात से लड़की बहुत दु:खी हुई और यह बात उसके मन में बैठ गयी। इस लड़की के उपचार से पूर्व यानी 1 जनवरी, 2012 और 28 जून, 2016 को दाग ठीक होने के बीच के छह फोटो‍ दिखाये। चौथा मॉडल केस 16 वर्षीय लड़की का सामने आया इसके दोनों घुटनों के नीचे सफेद दाग थे 15 सितम्‍बर, 2011 से लेकर 3 जनवरी, 2014 को ठीक होने तक के चार फोटो दिखाये। पांचवां मॉडल केस 22 वर्षीय लड़के का दिखाया जिसकी साइड में कमर पर सफेद दाग थे, इस केस में इलाज से पूर्व 17 दिसम्‍बर, 2004 का तथा काफी हद तक ठीक होने पर 22 मई, 2006 का फोटो दिखाया। वेबिनार के दौरान डॉ गुप्‍ता ने कुछ और मरीजों के भी फोटो दिखाये।

विटिलिगो पर की गयी उनकी स्‍टडी, जो कि एशियन जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी में छपी है, के बारे में उन्‍होंने बताया कि 753 लोगों की स्‍टडी में 90 मरीजों को बहुत लाभ हुआ जबकि 288 मरीजों को कुछ कम लाभ हुआ, 268 की स्थिति दवा से न तो अच्‍छी हुई और न ही खराब हुई, जबकि 107 लोगों को कोई लाभ नहीं हुआ। उन्‍होंने कहा कि इस तरह देखा जाये तो कुल 378 (90 प्‍लस 288) मरीजों यानी लगभग 50 प्रतिशत मरीजों को दवा से लाभ हुआ।

डॉ गिरीश ने बताया कि यहां मैं यह भी स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं कि विटिलिगो में बहुत से होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक कुछ चुनी हुई दवाएं मरीजों को देते हैं, लेकिन उनसे लाभ नहीं होता है, उन्‍होंने कहा कि मैंने भी अपनी शुरुआती प्रैक्टिस के दौरान करीब 15 साल चुनी हुई दवाएं दीं लेकिन लाभ नहीं हुआ, फि‍र इसके बाद डॉ हैनिमैन द्वारा बताये गये सिद्धांत (इलाज रोग का नहीं, रोगी की पूरे शरीर को ध्‍यान में रखते हुए किया जाना चाहिये) को अपनाने पर मरीजों को लाभ आना शुरू हुआ। ऐसे में मेरी सलाह है कि दवा का चुनाव सम्‍पूर्ण लक्षणों को ध्‍यान में रखते हुए किया जाना चाहिये।

डॉ मृदुल कुमार साहनी

वेबिनार का संचालन डॉ मृदुल कुमार साहनी ने करते हुए बताया कि दी इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रमोशन ऑफ होम्योपैथी (IFPH), एक अंतरराष्ट्रीय होम्‍योपैथिक मानवीय संगठन है जो ग्लोबल स्तर पर सभी होम्‍योपैथिक चिकित्सकों को एक प्लेटफॉर्म पर जोड़ने के लिए प्रयासरत है। उन्‍होंने कहा कि दुनिया की वर्तमान परिस्थितियों में तबाही से बचाने में अन्य चिकित्सा पद्धति से अलग, होम्‍योपैथी ही सबसे सरल, सुलभ और सहज चिकित्सा पद्धति के रूप मे लोकप्रिय हो सकती है। उन्‍होंने डॉ गिरीश गुप्‍ता के प्रेजेन्‍टेशन को बेहतरीन बताते हुए उनका धन्‍यवाद अदा किया। डॉ गिरीश गुप्‍ता ने होम्‍योपैथिक को जन-जन तक पहुंचाने के लिए किये जा रहे प्रयासों के साथ ही हिन्‍दी भाषा में चिकित्‍सीय वेबिनार कराने के लिए डॉ साहनी की प्रशंसा की।

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