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सोचना अच्‍छी बात है, लेकिन जरूरत से ज्‍यादा सोचना बना सकता है बीमार

-एक्‍सपर्ट बता रही हैं इससे छुटकारा पाने का समाधान

-विश्‍व मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दिवस-जागरूकता सप्‍ताह (एपीसोड 1)

सावनी गुप्‍ता, क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। किसी भी विषय को लेकर सोचना एक सामान्‍य सी बात है, लेकिन उसी चीज को लेकर लगातार सोचना या जरूरत से ज्‍यादा सोचना (ओवर थिंकिंग) परेशानी खड़ी कर देता है। ज्‍यादा सोच आपके अन्‍य कार्यों को प्रभावित करती है, क्‍योंकि आप दूसरे कार्यों की ओर पूरी तरह से ध्‍यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। लगातार थिंकिंग से घबराहट पैदा होती है। सोच के प्रकार के बारे में अगर बात करें तो आजकल की भागमभाग जीवन शैली में ऐसे बहुत से विषय हैं जो सोचने भर का मसाला आपके मस्तिष्‍क को देते रहते हैं। इस समस्‍या को लेकर विश्‍व मानसिक स्‍वास्‍‍थ्‍य दिवस (10 अक्‍टूबर) के मौके पर ‘सेहत टाइम्‍स‘ ने कपूरथला, अलीगंज स्थित फेदर्स-सेंटर फॉर मेंटल हेल्‍थ की फाउंडर, क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता से बात की।

सावनी ने बताया कि सबसे पहले हमें यह देखने की आवश्‍यकता है कि जिसे हम ओवर थिंकिंग समझ रहे हैं, वह ओवर थिंकिंग की श्रेणी में आती है अथवा नहीं। उन्‍होंने बताया कि यदि आपके अंदर रनिंग कमेंट्री की तरह लगातार एक ही प्रकार के विचार आते जा रहे हैं तो इसे मैनेज करने के लिए ग्राउंडिंग टेक्निक अपनायी जाती है, यह दो प्रकार की होती है। पहली टेक्निक के तहत हम अपने पांचों सेंस का इस्‍तेमाल करते हैं, इसमें 5 4 3 2 1 का फॉर्मूला अपनाते हैं, यानी पांच चीजें देखनी हैं, चार चीजों को सुनना है, तीन चीजों को छूना है, दो चीजों का स्‍वाद लेना है और एक चीज को सूंघना है। दूसरी है 478 ब्रीदिंग टेक्निक, इसमें चार सेंकड सांस लेनी है, सांस को 7 सेकंड रोकना है और 8 सेकंड तक छोड़नी है। इस टेक्निक से विचार और चिंताएं तुरंत कंट्रोल में आ जाती हैं।

सावनी ने बताया कि इसी प्रकार यह देखना होता है कि ओवर थिंकिंग के समय समस्‍या से प्रॉब्‍लम बढ़ने के बारे में सोच रहे हैं या उसके सॉल्‍यूशन यानी हल के बारे में। हमें प्रॉब्‍लम की तरफ नहीं सोचना है हमें उसके हल की तरफ सोचना है।

उन्‍होंने बताया कि जो हमारी लाइफ स्‍टाइल होती है, हमारी दिनचर्या होती है, हम जिस प्रकार चीजों को प्‍लान करते हैं, उसमें कुछ न कुछ कमियां होती हैं, जो हमें नुकसान कर रही होती हैं, ऐसे में उस कमी को पहचान कर हमें उसे दूर करना है। जब आपकी लाइफ सिस्‍टमेटिक रहेगी तो जो हड़बड़ी में निर्णय होते हैं, वह नहीं होंगे, इससे ओवरथिंकिंग होना या नकारात्‍मकता के भाव भी नहीं आयेंगे।  

वह कहती हैं कि इसी प्रकार अपने आपको पढ़ाई, व्‍यायाम, अपने शौक के कार्यों को करने में व्‍यस्‍त रखें, जब कभी आपके दिमाग में कोई नकारात्‍मक विचार आ रहा है तो अपने आपको किसी सार्थक कार्य में डायवर्ट कर लें, इससे थोड़े दिन में आपके मन और बॉडी ट्रेंड हो जायेंगे। उन्‍होंने कहा कि जिनके मन में बहुत ज्‍यादा ओवर थिंकिंग रहती है तो वे सोचने के लिए पूरे दिन में आधा घंटा का एक टाइम तय कर लें कि पूरे दिन में इस आधे घंटे में ही हमें सोचना है, बाकी समय नहीं सोचना हे।

इसके अतिरिक्‍त एक बार में एक काम करिये, जैसे बहुत से लोग टीवी देखना, फोन करना, भोजन करना एक साथ ही करते हैं, यह नहीं करिये। एक साथ कई कार्य मत करिये, वरना असफलता मिल सकती है। मेडीटेशन यानी ध्‍यान, योगा को अपनी दिनचर्या का हिस्‍सा बनायें। इसी प्रकार घिसे-पिटे रुटीन से बाहर निकलिये, लाइफ में जो आप दूसरों के लिए अच्‍छे कार्य करते हैं तथा जो दूसरे आपके लिए अच्‍छा कार्य करते हैं। इन दोनों तरह के कार्यों की लिस्‍ट बनायें। जब नकारात्‍मक विचार आयें तो इन दोनों सूचियों को पढ़ें इससे आपके अंदर सकारात्‍मक भाव उत्‍पन्‍न होंगे।

सावनी ने बताया कि अपनी ओवर थिंकिंग को इन तरकीबों को अपना कर काबू में कर सकते हैं, लेकिन अगर फि‍र भी दिक्‍कत हो रही है तो आप विशेषज्ञ से सलाह लें।

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