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सिर से जुड़े बच्‍चों को अलग करने के बाद उनके ब्रेन पर त्‍वचा चढ़ाना किसी चुनौती से कम न था

आवश्‍यक मात्रा में त्‍वचा तैयार करने के लिए दो माह पहले से गुब्‍बारे डाल कर फैलायी गयी थी त्‍वचा

 

लखनऊ। एक दूसरे के सिर से जुड़े जुड़वा बच्‍चों की सफल माइक्रोसर्जरी पिछले वर्ष एम्‍स नई दिल्‍ली में की गयी थी। इस सर्जरी करने वाली टीम के दो प्‍लास्टिक सर्जन आजकल लखनऊ में चल रही प्‍लास्टिक सर्जन्‍स की एसोसिएशन की कॉन्‍फ्रेंस में भाग लेने आये हुए हैं। इस तरह की भारत की पहली सफल सर्जरी के बारे में कई अनुभव दोनों सर्जन डॉ एस राजा और डॉ मनीष सिंघल ने पत्रकारों से साझा किये। इस केस को एम्‍स ट्वीन्‍स के नाम से जाना जाता है।

आपको बता दें उड़ीसा के रहने वाले दो वर्ष की आयु के जुड़वा भाइयों के सिर एक दूसरे से जुड़े थे। निश्चित रूप से चिकित्‍सकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। डॉ सिंघल ने बताया कि अगस्‍त, सितम्‍बर और अक्‍टूबर में तीन चरणों में हुई सर्जरी में हम प्‍लास्टिक सर्जनों की चुनौती थी कि सिर अलग होने के बाद उन्‍हें खाल से बंद करना। उन्‍होंने बताया कि चूंकि सिर खुलने के कारण ब्रेन पर स्किन चढ़ाने का कार्य प्‍लास्टिक सर्जन को करना था। ऐसे में यह भी देखना था कि मस्तिष्‍क को क्षति न पहुंचे। डॉ सिंघल बताते हैं कि अलग करने के बाद चूंकि ब्रेन पर त्‍वचा की कोई परत नहीं होती है इसलिए वहां पर मोटी त्‍वचा की आवश्‍यकता पड़ती है। सामान्‍य केस में जहां त्‍वचा मरीज के शरीर से ही निकाल कर लगा दी जाती है लेकिन वह त्‍वचा पतली होती है, जबकि ब्रेन को बंद करने के लिए मोटी त्‍वचा की जरूरत थी। इसलिए हम लोगों ने अगस्‍त में पहले चरण की सर्जरी में बच्‍चों के सिर की त्‍वचा के अंदर गुब्‍बारे डाल दिये इन गुब्‍बारों के फूलने से त्‍वचा फूलती है जिससे उसका आकार बढ़ता जाता है। सितम्‍बर में दूसरे चरण के ऑपरेशन में एक गुब्‍बारा बदला गया इसके बाद अक्‍टूबर में फाइनल सर्जरी के समय तक गुब्‍बारे की मदद से फैलकर आवश्‍यक मात्रा में त्‍वचा तैयार हो गयी जिसे सिर अलग होने के बाद दोनों के ब्रेन के ऊपर चढ़ा दी गयी।

 

डॉ एस राजा ने बताया कि पिछले 100 वर्षों में जुड़े हुए बच्‍चों को अलग करने के 55 ऑपरेशन हुए हैं जिनमें 11 जीवित बचे हैं, जबकि भारत का यह पहला सफल ऑपरेशन है। इस सफल सर्जरी को उन्‍होंने भारत की सफलता बताया। आपको बता दें डॉ एस राजा दिल्‍ली के गंगा हॉस्पिटल में कार्यरत हैं। इस अस्‍पताल में सिर्फ प्‍लास्टिक सर्जरी और ऑर्थोपैडिक का ही इलाज होता है। इस अस्‍पताल में साल भर में करीब 12 हजार सर्जरी होती हैं, जबकि एम्‍स जैसे अस्‍पताल में साल भर में 3000 सर्जरी होती हैं।