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गर्भाशय में बड़ी गांठों का भी बिना ऑपरेशन स्‍थायी इलाज है होम्‍योपैथी में

-जीसीसीएचआर में हुई रिसर्च में रोग का कारण मिला मन:स्थिति

-इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रमोटिंग होम्‍योपैथी के वेबिनार में डॉ गौरांग गुप्‍ता का प्रेजेन्‍टेशन

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। किसी भी रोग से होने वाली परेशानी का अंत उसके स्‍थायी उपचार से ही संभव है, क्‍योंकि जब तक समस्‍या को जड़ से नहीं समाप्‍त किया जायेगा तब‍तक वह बार-बार उभरती रहेगी। होम्‍योपैथिक से इलाज के दौरान भी यह देखना अति महत्‍वपूर्ण है कि रोग का कारण क्‍या है क्‍योंकि कुछेक रोग को छोड़ दिया जाये तो ज्‍यादातर शारीरिक रोग के कारण भी मन यानी माइंड में मिलते हैं, ऐसे में जब मन:स्थिति को केंद्र में रखकर दवाओं का चुनाव किया जाता है तो रोग जड़ से समाप्‍त हो जाता है। महिलाओं में होने वाला यूट्राइन फाइब्रॉयड यानी गर्भाशय में गांठ रोग भी ऐसा ही है जिसका कारण मन:स्थिति है। गांठ छोटी हो या बड़ी, एक हो या दो सभी का बिना सर्जरी कराये होम्‍योपैथी में स्‍थायी इलाज मौजूद है। यह शोध में भी साबित हो चुका है। यह विचार इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रमोटिंग होम्‍योपैथी के 20 अक्‍टूबर कह शाम को आयोजित वेबिनार में ‘फाइब्रॉयड गर्भाशय के लिए होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा और प्रबंधन’ विषय अपना प्रेजेन्‍टेंशन देते हुए गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च के कन्‍सल्‍टेंट डॉ गौरांग गुप्‍ता ने व्‍यक्‍त किये।

डॉ गौरांग ने बताया कि किसी भी समस्‍या का समाधान तीन टेक्निक से किया जाता है। पहली सुपरफि‍शियल, दूसरी इंटरमीडिएट तथा तीसरी रूट यानी समस्‍या की जड़ तक पहुंच कर समाधान। उन्‍होंने तीनों टेक्निक को समझाने के लिए एक उदाहरण देते हुए स्‍पष्ट किया कि यूं समझिये कि बाथरूम का नल खराब हो गया है और पानी बह कर बाथरूम में भर रहा है, इस समस्‍या का समाधान तीन टे‍क्निक से किया जा सकता है पहली सुपरफि‍शियल टेक्निक यानी भरे पानी को वायपर से निकाला जाये, जो कि अस्‍थायी समाधान है क्‍योंकि नल बहता रहेगा और पानी भरता रहेगा, यानी बार-बार वायपर करना होगा। दूसरी टेक्निक है इंटरमीडिएट इसमें पानी को जमीन पर भरने से रोकने के लिए अगर एक बाल्‍टी नल के नीचे रख दी जाये, और बाल्‍टी भर जाने के बाद बाल्‍टी का पानी फेंक दिया जाये, लेकिन यह भी अस्‍थायी समाधान है क्‍योंकि बार-बार बाल्‍टी भरती रहेगी और पानी फेंकते रहना पड़ेगा, तीसरी टेक्निक है रूट यानी समस्‍या की जड़ तक जाकर समाधान करना, इसके तहत नल की टोटी को ठीक कराकर पानी बहने से रोकना।

उन्‍होंने बताया कि यही टेक्निक होम्‍योपैथी से इलाज में भी लागू होती है, अगर इलाज पहली और दूसरी टेक्निक से किया गया तो स्‍थायी लाभ नहीं होगा। इसी लिए क्‍लासिकल होम्‍योपै‍थी से इलाज करने के लिए रोग की जड़ तक जाना होता है। डॉ गौरांग ने बताया कि गौरांग क्‍लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्‍योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) पर की गयी शोध बताती है कि यूट्राइन फाइब्रॉयड सहित ज्‍यादातर शारीरिक रोगों का कारण मन:स्थिति है। इच्‍छाएं-आकांक्षाएं पूरी न होना, डर, भ्रम, घबराहट, दुखद घटना, किसी को खोने का गम, उपेक्षा का शिकार, हादसा, विभिन्‍न प्रकार के स्‍वप्‍न आना जैसे अनेक बिन्‍दु हैं जिनके बारे में मरीज की हिस्‍ट्री लेते समय जानकारी ली जाती है। डॉ गौरांग ने बताया कि होम्‍योपैथी में मन की स्थितियों के हिसाब से दवाएं मौजूद हैं। उन्‍होंने बताया कि किन प्रकार की स्थितियां मन को प्रभावित करती हैं, जैसे सपने हमारे अनकॉन्शियस माइंड को, भ्रम सबकॉन्शियस माइंड को, डर कॉन्शियस माइंड को तथा व्‍यक्तित्‍व इनेट माइंड व अक्‍वॉयर्ड माइंड को प्रभावित करता है।

डॉ गौरांग ने बताया कि मरीज की हिस्‍ट्री के हिसाब से दवा का चुनाव किया जाता हे। क्‍लासिकल होम्‍योपैथी का सिद्धांत ही यही है कि इसमें इलाज मर्ज का नहीं, मरीज का होता है, क्‍योंकि जब मरीज ठीक होगा तो मर्ज भी ठीक हो जायेगा। 

अपने प्रेजेन्‍टेशन में डॉ गौरांग ने चार मॉडल केसेज के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी। इनमें 35 वर्षीया का केस सबसे लेटेस्‍ट है, यह महिला जुलाई, 2023 में क्‍लीनिक में पहली बार आयी थी, इसकी फैमिली हिस्‍ट्री जिसने इसकी मन:स्थिति पर असर डाला उसके बारे में बताते हुए उन्‍होंने कहा कि 1990 में मरीज के पिता का मर्डर हो गया था, इसके बाद मां ने दूसरी शादी कर ली थी, मरीज की शादी 2011 में हुई थी, ससुराल में वह घरेलू हिंसा का शिकार हुई जिसके बाद वह अलग हो गयी, 2013 में मां की मृत्‍यु हो गयी, जिसके बाद से यह महिला अकेले रहने लगी। इसके बाद इस महिला का एक ब्‍वॉय फ्रेंड बना, जिसकी सड़क दुर्घटना में 2017 में मृत्‍यु हो गयी थी, 2018 में पति से भी तलाक हो गया था।

डॉ गौरांग ने इसी प्रकार एक 43 वर्षीया महिला का केस, जिसके दो फायबर की गांठें थी, 42 वर्षीया महिला के 55 एमएम की फाइब्रॉयड तथा एक और 42 वर्षीया महिला जिसके दो बच्‍चे भी हैं, के केस की हिस्‍ट्री के बारे में जानकारी देते हुए इनकी अल्‍ट्रासाउंड फि‍ल्‍म के साथ रिपोर्ट दिखायीं, जिसमें यूट्राइन फाइब्रॉयड की गांठें दिख रही थीं तथा उपचार के पश्‍चात की अल्‍ट्रासाउंड साउंड फि‍ल्‍म व रिपोर्ट दिखायीं जिसमें दिखा कि गांठें समाप्‍त हो गयीं।

वेबिनार का लिंकhttps://www.youtube.com/watch?v=eaxj9bIjryE&t=660s

उन्‍होंने जीसीसीएचआर में हुई यूट्राइन फाइब्रॉयड पर स्‍टडी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 630 मरीजों पर हुई स्‍टडी के अनुसार इनमें 415 मरीजों को पूर्ण अथवा आंशिक लाभ हुआ जबकि 215 मरीजों को फायदा नहीं हुआ। इस शोध का प्रकाशन प्रतिष्ठित जर्नल्‍स एशियन जर्नल ऑफ होम्‍योपैथी तथा द होम्‍योपैथिक हेरिटेज में हो चुका है।

वेबिनार का संचालन डॉ मृदुल साहनी ने किया। वेबिनार से जुड़े कई चिकित्‍सकों ने प्रेजेन्‍टेशन के बाद अपने सवाल पूछे जिनका डॉ गौरांग ने उत्‍तर दिया।   

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