-उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में आयोजित सीएमई में स्त्री रोगों व त्वचा रोगों पर दिए प्रेजेंटेशन
-त्वचा रोगों और होम्योपैथिक दवा के चुनाव के विविध आयाम पर जानकारी दी डॉ निशांत श्रीवास्तव ने

सेहत टाइम्स
लखनऊ। विभिन्न क्लीनिकल एवं एक्सपेरिमेंटल रिसर्च कर होम्योपैथी की वैज्ञानिकता सिद्ध करने वाले गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने उत्तराखंड शासन की और से डिप्टी डायरेक्टर होम्योपैथी डॉ पमिता उनियाल के आमंत्रण पर सतत् चिकित्सा शिक्षा सीएमई में भाग लेकर स्त्री रोग विज्ञान एवं त्वचा विज्ञान में होम्योपैथी की भूमिका विषय पर दो व्याख्यान दिये।

नैनीताल स्थित उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में 19-20 अक्तूबर को आयोजित इस सीएमई में उत्तराखंड सरकार के होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारियों ने हिस्सा लेकर स्त्री रोगों और त्वचा रोगों के कारणों में मनःस्थिति की भूमिका के बारे में जाना। सीएमई में स्पीकर्स का स्वागत करते हुए वित्त विभाग के डिप्टी डायरेक्टर दीपक राणा ने दोनों स्पीकर्स का परिचय दिया.
डॉ गुप्ता ने कहा कि जैसा कि आप सभी जानते हैं कि होम्योपैथिक में इलाज रोग का नहीं बल्कि मरीज का होता है ऐसे में शारीरिक और मानसिक दोनों स्थितियों का आकलन कर दवा का चुनाव किया जाता है। उन्होंने बताया कि विभिन्न प्रकार के सपने आना, डर लगना, घबराहट, चिंता, आघात, इच्छा-आकांक्षा का पूरी ना होना, आर्थिक हानि, गुस्सा, भ्रम की स्थिति होना, अत्यधिक दुखी होना जैसे कारणों के चलते पैदा हुई मन की स्थिति से होने वाले इन रोगों के उपचार के लिए मानसिक स्थिति को केंद्र में रखकर दवा दी गई तो जहां उसकी मनः स्थिति सामान्य हुई वहीं बिना शल्य क्रिया के शारीरिक व्याधियां भी दूर हो गईं। उन्होंने कुछ मॉडल केसेज प्रस्तुत करते हुए उसके बारे में विस्तार से जानकारी भी दी। डॉ गुप्ता ने बताया कि किस तरह मन में आये विचार का असर दिमाग पर, उसके बाद हार्मोन्स पर और फिर शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ता है, जिससे उस अंग में रोग पनपता है। उन्होंने बताया कि होम्योपैथिक के जनक डॉ सैमुअल हैनिमैन का कहना था कि मरीज के लिए दवा का चुनाव करते समय होलिस्टिक अप्रोच रखनी चाहिये। डॉ गुप्ता ने बताया कि होम्योपैथिक के इसी क्लासिक सिद्धांत को अपना कर ही उन्होंने अपने सफल कार्य को अंजाम दिया।

सीएमई के पहले दिन साक्ष्य आधारित स्त्री रोगों के इलाज सम्बन्धी अपने प्रेजेंटेशन में डॉ गुप्ता ने अपनी शोध में किये गये यूट्राइन फायब्रायड, ओवेरियन सिस्ट, पोलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम, ब्रेस्ट लीजन, नेबोथियन सिस्ट और सर्वाइकल पॉलिप के केस के सफल इलाज के बारे में उनकी डायग्नोसिस, रोग के कारणों, दवा के चयन के मानकों जैसी बातों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने स्त्रियों में होने वाले रोगों को लेकर इलाज शुरू करने से पूर्व और इलाज करने के बाद से सम्बन्धित अल्ट्रासाउंड फोटो, रिपोर्ट्स प्रस्तुत कीं। उन्होंने रिसर्च पेपर्स का प्रतिष्ठित जर्नल्स में प्रकाशन, उनके कन्क्लूजन रिर्मार्क भी प्रस्तुत किये।

दूसरे दिन डॉ. गुप्ता ने डर्मेटोलॉजी पर किए गए अपने शोधों का जिक्र करते हुए विटिलिगो यानी ल्यूकोडर्मा (सफेद दाग), सोरियासिस (इसमें लाल परतदार चकत्ते हो जाते हैं), एलोपीशिया एरियटा (इसमें बाल झड़ने लगते हैं), लाइकिन प्लेनस (इसमें त्वचा पर बैंगनी कलर के दाने हो जाते हैं), वार्ट (वायरल इन्फेक्शन), मोलस्कम कॉन्टेजियोसम (वायरल इन्फेक्शन) तथा माइकोसेस ऑफ नेल (नाखूनों में फंगस इन्फेक्शन) रोगों के होम्योपैथिक दवाओं से किए गए उपचार वाले शोधों की प्रस्तुति दी।
डॉ गुप्ता के अलावा लखनऊ के डॉ निशांत श्रीवास्तव ने अपने व्याख्यान में त्वचा रोगों तथा होम्योपैथिक दवा के चुनाव के विविध आयाम पर जानकारी देते हुए चुनी हुई होम्योपैथिक दवाओं से सफल उपचार के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
