Thursday , November 21 2024

गर्भस्थ शिशु के जेनेटिक्स में भी बदलाव ला सकती है माँ की इच्छाशक्ति

औरत के पास वह शक्ति है कि जितनी चाहे, उतनी महान संतान पैदा करे

केजीएमयू में गर्भोत्सव संस्कार पर ‘आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी’ व्याख्यान आयोजित

 

स्नेहलता

लखनऊ. मानव का प्रथम संस्कार गर्भ संस्कार होता है। गर्भोत्सव संस्कार गर्भ विज्ञान का एक अध्यात्मिक सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक शिक्षण है। माँ की इच्छाशक्ति शिशु के जेनेटिक्स में भी बदलाव ला सकती है। गर्भवती का चरित्र उत्तम, विचार उत्तम होना चाहिए जिससे वो एक उत्तम चरित्र के शिशु को जन्म देती है। ईश्वर ने औरतों को इतनी शक्ति प्रदान की है कि वो जैसी चाहे वैसी महान संतान पैदा कर सकती है, किन्तु आज हम अपनी संतान को डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते हैं उसे महान नहीं।

 

यह बात आज यहाँ किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कलाम सेंटर में ‘आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी’ (गर्भोत्सव संस्कार) विषय पर अतिथि व्याख्यान में देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार की डॉ. संगीता सारस्वत ने कही. डॉ. संगीता ने कहा कि वर्तमान में गर्भोत्सव संस्कार की जरूरत इसलिए पड़ी है कि आज का भौतिकवादी विज्ञान हमें ऐसे मोड़ पर ले आया है जहाँ हम जिस डाल पर बैठे है उसी को काट रहे है। इंसान की मूलभूत जरूरत भोजन, जल, एवं वायु है किन्तु आज हमने इसे इतना प्रदूषित कर दिया है कि यह हमें ही बीमार बना रही है। तनाव आने वाले समय मे पूरे विश्व में महामारी होगा।

 

गर्भावस्था में आस-पास का माहौल अच्छा होना चाहिए

उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान जैसे गर्भवती के विचार एवं भावनाएं होती है उसी प्रकार का हार्मोंस उसके शरीर में निकलता है जिससे गर्भस्थ शिशु के उपर भी प्रभाव पड़ता है। माँ खुश एवं प्रसन्नचित  रहेगी तो उसके शरीर में अच्छे हार्मोंस निकलेंगे और इससे बच्चे का व्यवहार भी अच्छा होगा। गर्भधारण प्लान करके करना चाहिए। गर्भधारण करने से पूर्व ध्यान और साधना शुरू करने से प्रेगनेंसी अच्छी होती है। माँ के गर्भ में ही बच्चा स्वाद, महक और आवाज आदि को पहचानने लगता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान गर्भवती के आस पास का माहौल सौहार्दपूर्ण एवं स्वस्थ होना चहिए, लड़ाई-झगड़ा नहीं होना चाहिए।

 

ॐ का उच्चारण करना चाहिए गर्भवती को

डॉ. संगीता ने कहा कि गर्भ संस्कार के समय गर्भवती को ॐ का उच्चारण करना चाहिए और अपने बच्चे से स्वस्थ संवाद स्थापित करना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान और गर्भावस्था के पश्चात् शब्दों के प्रभाव से हम बच्चों की क्षमता को खत्म कर देते हैं। बहुत से ऐसे माता-पिता होते हैं जो अपने बच्चों को यह कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कर सकते इस प्रकार वो अपने बच्चे की योग्यता एवं उसकी क्षमताओं को खत्म कर देते है। गर्भावस्था के दौरान माता जिस भाषा, विद्या पर ध्यान देती है वो भाषा या विद्या शिशु आसानी से सीख जाता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान गर्भवती को नियमित स्वस्थ जीवनचर्या का पालन करना, योगासन करना, जप, ध्यान, प्राणायाम एवं अच्छी किताबों का अध्ययन करना चाहिए। अगर आप स्वामी विवेकानंद की तरह पुत्र चाहते हैं तो गर्भावस्था के दौरान उनकी बायोग्राफी को मन से ध्यान लगाकर पढ़ें। हर गर्भवती को चार घंटे अच्छी बातें सीखनी चाहिए, गूंजने वाले संगीत सुनना चाहिए, गर्भवती के आस-पास प्रसन्न, स्वस्थ एवं सकारात्मक वातावरण बनाना चाहिए, डरावनी तथा नकारात्मक बातें न करें। गर्भवती को निःस्वार्थ सेवा का भाव रखना चाहिए इससे सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है।

ब्लड प्रेशर और तनाव कम करता है गायत्री मन्त्र

उन्होंने कहा कि आज मानव प्रजाति पर न्यूक्लियर युद्ध की तरह ही एंटी माइक्रोबियल रजिस्टेंस का खतरा बढ़ गया है। आज के समय में हम आईक्यू को बहुत महत्व देते हैं किन्तु जब तक इसके साथ विवेक, प्रज्ञा नहीं आये तब तक इसका कोई उपयोग नही है। वर्तमान समय में अध्यात्म एवं विज्ञान में तालमेल बैठाना बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। आने वाला समय अध्यात्मिक विज्ञान का होगा। कई जगहों पर अध्यात्मिक कार्यों  में जप किए जाने वाले मन्त्रों के ऊपर यह शोध चल रहा है कि वह मनुष्य पर क्या असर डालते है। उसी क्रम में गायत्री मंत्र के ऊपर भी एक शोध किया गया है। ऐसे मरीज जिनका ब्लड प्रेशर असमान्य रहता हो उनको लगातार एक महीने तक गायत्री मंत्र का जाप करा कर उनको इसीजी, एवं ब्लड प्रेशर को मॉनिटर कर के देखा गया तो उनके ब्लड प्रेशर और तनाव कम हो गया था। संस्कार की पद्धति श्रीविष्णु द्वारा प्रदान की गई है। यह एक अध्यात्मिक चिकित्सा प्रणाली है जो हमारे विकारों को दूर करती है, मानवीय चेतना उन्नति करती है।

 

सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य पर ही ध्यान देते हैं हम

उन्होंने बताया कि माइंड को तीन भाग में बाटते है सब कॉन्शियस माइंड, कॉन्शियस माइंड, सुपर कॉन्शियस माइंड। सब कॉन्शियस माइंड का विकास गर्भावस्था से जन्म के पांच वर्ष तक होता है। अध्यात्मिक दृष्टिकोण से मानव शरीर को तीन भागों में बाटा गया है। कारण शरीर, सूक्ष्म शरीर एवं स्थूल शरीर। हम आज स्थूल शरीर के प्रदूषण की तो बात करते हैं किन्तु सूक्ष्म एवं कारण शरीर के प्रदूषण की बात नहीं करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक एवं अध्यात्मिक स्वास्थ्य के रूप में परिभाषित किया जाता है, किन्तु आज हम केवल शारीरक स्वास्थ्य पर ही ध्यान देते हैं.

मनुष्य पर जीवन पर्यंत असर डालता है गर्भावस्था संस्कार

कार्यक्रम में कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट ने कहा कि यह अतिथि व्याख्यान नर्सिंग के विद्यार्थियों, मेडिकल विद्यार्थियों एवं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों के लिए खास तौर से आयोजित किया गया है, ताकि वो समाज के दूसरे लोगो को इन संस्कारों के विषय में ज्ञान दे सकें। सभी धर्मों में मृत्यु एवं जन्म दो अटल सत्य हैं। मनुष्य जीवन में विभिन्न संस्कारों को अपनाया जाता है। हम शिशु के जन्म से पहले केवल गर्भवती के न्यूट्रिशियन के अलावा अन्य बातों पर ध्यान नहीं देते है। गर्भ संस्कार जीवन का सबसे पहला संस्कार होता है और इसका इतना महत्व है कि गर्भावस्था के संस्कार व्यक्ति पर जीवन पर्यंत असर डालता है। गर्भ के दौरान जैसा वातावरण होता है उसी के अनुसार गर्भ में पल रहे शिशु का निर्माण होता है। इसलिए आवश्यक है कि हम गर्भावस्था के दौरान उचित वातावरण का विकास करें।

इस अवसर पर अधिष्ठाता, चिकित्सा संकाय प्रो विनीता दास, अधिष्ठाता नर्सिंग संकाय प्रो0 मधुमती गोयल, अधिष्ठाता, पैरामेडिकल संकाय प्रो0 विनोद जैन सहित विभिन्न संकायों के संकाय सदस्य, विद्यार्थी उपस्थित रहे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.