मौत का कारण कुछ भी हो बच्चों की इस तरह शिफ्टिंग पर सवालिया निशान तो लगता है
लखनऊ. किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में ऑक्सीजन के अभाव में हुई बच्चे की मौत का मामला निश्चित ही बहुत गंभीर और अफसोसजनक है. जैसी कि खबर है कि ऑक्सीजन के अभाव से बच्चों की मौत हुई है लेकिन देखा जाये तो ऑक्सीजन न मिलने से ज्यादा यह लापरवाही से हुई मौत का मामला कहा जाये तो गलत नहीं होगा. हालांकि इस पूरे मामले में संस्थान के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने बच्चे की मौत का कारण बाल रोग विभाग के डॉ. सिद्धार्थ की रिपोर्ट के अनुसार कार्डियोरैसपाइरेटरी अरेस्ट होना बताया है, लेकिन मोटे तौर पर यह तो समझा ही जा सकता है कि आखिर एक ऑक्सीजन सिलिंडर के सहारे चार बच्चों को दूसरे वार्ड में शिफ्ट करने के लिए ले जाने की सलाह किसने दी. ज्ञात हो रायबरेली के रहने वाले मो. रशीद के बेटे सैफ की मौत तब हो गयी थी जब पीडियाट्रिक आईसीयू से सैफ, महफूज, रुचि, ऋशभ को वार्ड में शिफ्ट किया जा रहा था.
ऑक्सीजन सिलिंडर एक, जरूरतमंद बच्चे चार
एक सिलिंडर से एक बार में एक ही बच्चे के तो ऑक्सीजन दी जा सकती है तो फिर चार सिलिंडर क्यों नहीं रखे गए. और अगर सिलिंडर मौजूद नहीं थे तो व्यवस्था करनी चाहिए थी और अगर वह भी नहीं किया गया तो कम से कम एक-एक करके बच्चे को वार्ड में शिफ्ट किया जाना चाहिए था. शिफ्ट करने वाले वार्ड बॉय को आखिर किसने इजाजत दी कि चारों बच्चों को एक ही सिलिंडर के साथ ले जाएँ. यही नहीं जब बच्चों के परिजनों ने टोका भी तब भी ध्यान नहीं दिया.
बात यह भी ध्यान देने वाली है
चिकित्सालय से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह वार्ड बॉय ही क्यों न हो, उसे कम से कम प्राथमिक जानकारी तो होनी ही चाहिए कि जब एक बार में एक बच्चे के ऑक्सीजन लगाई जाएगी तो बाकी तीन का क्या होगा, यही नहीं जब बच्चों के घरवालों को ऑक्सीजन न हटे, यह बात समझ में आ सकती है तो अस्पताल में हजारों केस देखने वाले वार्ड बॉय को यह बात क्यों नहीं समझ में आयी? और अगर नहीं आयी तो यह गंभीर विषय है, और अगर आयी थी, फिर भी ऐसा किया तो यह ज्यादा गंभीर विषय है. दरअसल वार्ड बॉय जैसी पोस्ट पर भी भर्ती करते समय उनकी हैसियत चपरासी से ज्यादा नहीं समझी जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है यहाँ फिर याद दिलाना ठीक रहेगा कि किसी नॉन टेक्निकल संस्थान में कार्य करना और अस्पताल जैसे जीवन-मृत्यु से जुड़े किसी भी संस्थान में कार्य करना भिन्न है.
इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्किल डेवेलपमेंट में सबकी ट्रेनिंग अनिवार्य होनी चाहिए
केजीएमयू के तहत चल रहे स्किल डेवलप इंस्टिट्यूट में एडवांस लाइव ट्रामा सपोर्ट (ATLS), बेसिक लाइफ सपोर्ट की ट्रेनिंग संस्थान के सभी पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य नॉन टेक्निकल स्टाफ जैसे वार्ड बॉय, आया जैसी पोस्ट वालों को भी लेना अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि वे भी मरीज के जीवन का मूल्य समझते हुए उसकी केयर कर सकें. और जब ट्रेनिंग दे दी जायेगी तो जहाँ उनके अन्दर मानवता के भाव पैदा होंगे, वहीँ इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचा जा सकेगा, और कहीं न कहीं उनकी भी जवाबदेही तय की जा सकती है. वर्ना तो इस तरह की घटनाएँ होती रहेंगी, जांच कमेटियां बैठती रहेंगी, राज-काज चलता रहेगा.
यह भी गौर करने वाली बात है कि एक तरफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्किल डेवलपमेंट के निदेशक डॉ. विनोद जैन ने शुरू में ही कहा था कि हमारा लक्ष्य है कि प्रत्येक नागरिक को यह ट्रेनिंग लेनी चाहिए कि चोट लगने पर शुरुआती बचाव कैसे किया जाता है और मरीज को डॉक्टर के पास पहुंचाने तक किस तरह उसके साथ सावधानियां बरतीं जा सकती हैं, तो ऐसे में संस्थान के कर्मचारी ही इससे अछूते क्यों ?