-दिल्ली के जीबी पंत हॉस्पिटल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ मोहित गुप्ता की केजीएमयू में आयोजित मोटीवेशनल स्पीच ने दिलों को छुआ
सेहत टाइम्स
लखनऊ। जिन्दगी में सारी समस्याओं का कारण भी व्यक्ति के अंदर है और समस्याओं का समाधान भी व्यक्ति के अंदर है। सुकून की तलाश में मानव ने न जाने कितनी बेचैनियां पाल ली हैं। परिस्थितियां कैसी भी हों, उनसे निपटना व्यक्ति के खुद के हाथ में होता है।
यह बात किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के फार्माकोलॉजी संकाय द्वारा प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सहयोग सेयह बात किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के फार्माकोलॉजी संकाय द्वारा प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सहयोग से शुक्रवार 6 मई को ‘सहनशीलता की शक्ति’ विषय पर किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कलाम सेंटर में आयोजित व्याख्यान में बोलते हुए जीबी पंत हॉस्पिटल दिल्ली के कार्डियोलॉजिस्ट व मोटीवेटर स्पीकर डॉ मोहित गुप्ता ने कही।
हर जज्बात को जिंदगी में जुबां नहीं मिलती…
डॉ गुप्ता ने अपनी मोटीवेशनल स्पीच की शुरुआत एक शेर से की उन्होंने कहा कि ‘…हर जज्बात को जिंदगी में जुबां नहीं मिलती, हर आरजू को जिन्दगी में दुआ नहीं मिलती, मुस्कुराहट बनाये रखो तो दुनिया साथ है, आंसुओं को तो आंखों में भी पनाह नहीं मिलती…’ दरअसल किसी भी समस्या को लेकर हम प्रेशर बहुत ले लेते हैं। हमें यह सोचना है कि फ्रॉम टूडे, आई एम नॉट बिजी इन माई लाइफ बट आई एम बी इजी इन माई लाइफ (From today, I am not busy in my life but I am be easy in my life)
सिचुएशन नहीं हमारा व्यवहार जिम्मेदार
डॉ मोहित ने बताया कि व्यक्ति द्वारा गुस्से में रिएक्ट किये गये व्यवहार के लिए गुस्से की वजह नहीं बल्कि व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार होता है इसे एक उदाहरण के रूप में बताते हुए उन्होंने कहा कि ट्रैफिक की वजह से समय से न पहुंचने की स्थिति होने पर 95 प्रतिशत लोग गुस्से का अलग-अलग तरीके से इजहार करते हैं और परेशान होते हैं, इनमें कुछ लोग हॉर्न बजाकर अपनी परेशानी व्यक्त करते हैं, कुछ लोग दांत पीसकर गुस्सा कर अपना व्यवहार दिखाते हैं, जबकि कुछ लोग गाड़ी के बाहर आकर गुस्सा दिखाते हैं, लेकिन इन सबसे अलग 5 फीसदी लोग ऐसे भी होते हैं जो स्थिति की मजबूरी समझते हुए जहां उन्हें पहुंचना है वहां फोन कर बता देते हैं कि मैं ट्रैफिक में फंसा हुआ हूं और आराम से म्यूजिक सुनते रहते हैं। उनका कहना था कि यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि ट्रैफिक जाम की स्थिति सभी के लिए एक सी है, लेकिन उसपर व्यवहार करने की स्थिति अलग-अलग है इसका अर्थ यह है कि गुस्सा करके अपनी परेशानी बढ़ाने के लिए स्थिति (situation) नहीं बल्कि हमारा अपना व्यवहार (behaviour) जिम्मेदार है, इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम अपना व्यवहार बदलें। डॉ मोहित ने कहा कि लोग क्या व्यवहार रहे हैं, सिचुएशन क्या है, यह मैटर नहीं करता यह पूरी तरह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उस सिचुएशन को कैसे हैंडल करते हैं।
काबू में रखें मन
उन्होंने कहा कि हमें केवल मन को रोकना है, उसे रुकना सिखाना है, संयम करना सिखाना है, इससे हमें हर सिचुएशन से निपटना आ जाता है। परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों लेकिन यदि हमने अपने मन को काबू करते हुए उस परिस्थिति से निपटना सीख लिया तो कोई मुश्किल नहीं होगी। परिस्थिति कितनी भी पावरफुल हो हम उससे अपने संकल्पों के द्वारा इससे निपट सकते हैं। लोग और परिस्थितियां मेरे हिसाब से नहीं होंगी लेकिन अगर मेरा मन मेरे हिसाब से है तो मैं सदा इससे निपटता रहूंगा।
उन्होंने कहा कि इसको करने के लिए अपने व्यवहार को बदलें, अगर हम अपने जीवन को परिवर्तित करना चाहते हैं तो हमें अपनी मान्यता बदलनी होगी, जिसे बदलने में मेडीटेशन हमारी मदद करता है। परिस्थितियां सबके लिए अलग हो सकती हैं, एक ही चीज एक व्यक्ति के लिए अलग है दूसरी व्यक्ति के लिए अलग हो जाती है क्योंकि दोनों के दृष्टिकोण अलग हैं।
धैर्य तो चिकित्सक को रखना होगा
उन्होंने कहा कि चिकित्सक होने के नाते आपको पेशेंस यानी धैर्य रखना ही पड़ेगा क्योंकि जिस प्रोफेशन में आप आये हैं वहां परेशान मरीज आता है ऐसे में उससे पेशेंस की उम्मीद करना उचित नहीं है यदि वह कुछ गलत कर रहा है तो उसे आपको विनम्रता से समझाना है न कि घृणा करनी है। आज चिकित्सा के पेशे में अगर असहनशीलता है, आज हॉस्पिटल में हिंसा, तनाव, नकारात्मकता की स्थितियां हो गयी हैं तो उसके लिए कोई और नहीं बल्कि जिम्मेदार हम ही हैं, हमने यह प्रोफेशन अपनी मर्जी से चुना है।
उन्होंने कहा कि आपका संकल्प आपका व्यवहार तय करेगा और यही व्यवहार आपके जीवन में आपकी डेस्टिनी, आपकी फीलिंग्स और आपके इमोशंस को पैदा करेगा। अगर हमें अपने जीवन में पावरफुल इमोशंस, डेस्टिनी चाहिये तो हमें पावरफुल तरीके से अपने संकल्पों को बदलना होगा। मन को अपने काबू में रखिये अगर मन को काबू में रखा तो वह एक अच्छा सर्वेंट साबित होगा लेकिन अगर मन को बेलगाम छोड़ दिया तो वह आप पर हावी रहेगा यानी काबू में रहने वाला मन एक गुड सर्वेंट है जबकि बेकाबू मन बैड मास्टर। अपने मन को पावरफुल बनायें, जिससे वहीं वाइब्रेशंस वातावरण में पैदा होती हैं हमारी सोच वातावरण पर प्रभाव डालती है। भोजन को किस प्रकार की वाइब्रेशंस देते हैं, इमोशनल एनर्जी देनी है। अपने परिवार को समय दें, एक जगह रहकर भी सब अलग रहते हैं सुबह-शाम थोड़ा समय निकालकर मोबाइल एक तरफ रखकर आपस में बात करिये।
मन के कूड़ेदान को साफ करते रहें
डॉ गुप्ता ने कहा कि मन को साफ करते चलिये, किसी की छोटी गलती को हमने दूसरे को बताया तो वह बात हमारे मन में भी बड़ी हो जाती है। किसी ने आपके साथ गलत बात की है और वह पांच-दस साल बाद आता है तो आपके मन में उसके प्रति घृणा के विचार आते हैं, ऐसे में घृणा को लम्बे समय तक अपने मन में न रखें, क्योंकि इस प्रकार कई लोग आपके साथ ऐसा करते हैं तो आपके मन में तो नफरत ही नफरत भरी रहेगी और एक दिन आपका मन मन नहीं कूड़ेदान बन जायेगा ऐसे में इस कूड़ेदान की गंदगी, बदबू सबसे पहले आप पर ही प्रभाव डालेगी, अत: मन के कूड़ेदान को जल्दी-जल्दी साफ करते रहें, किसी की कड़वी बातों को मन में न रखें। उन्होंने शेर पढ़कर कहा कि ‘जिन्दगी को ऐसे मैंने आसान कर दिया किसी से माफी मांग ली किसी को माफ कर दिया’।
उन्होंने कहा कि योग और ध्यान जरूर करें यह उसी तरह है कि जैसे हम अपने मोबाइल को चार्ज करते हैं, मन को चार्ज करने के लिए ध्यान करना जरूरी है।
सीख हमारे पेशे के लिए आवश्यक : कुलपति
कुलपति ले.ज. डॉ बिपिन पुरी ने अपने सम्बोधन में कहा कि इस वार्ता को सुनने के बाद कुछ कहने को रह नहीं जाता है। यह सीख हमारे पेशे के लिए बहुत सटीक है। हम जिन परिस्थितियों में कार्य करते हैं उनमें तनाव का स्तर जो होता है उसे दूर करने में यह वार्ता अत्यन्त सार्थक साबित होगी। उन्होंने इस मौके पर बैठी फैकल्टी व अन्य कर्मियों से इस सीख को अपनाने की हामी भरवायी। कार्यक्रम में गोमती नगर स्थित प्रजापिता ब्रह्मकुमारी संस्थान की हेड ब्रह्मकुमारी राधा ने कहा कि आज मानव समाज को आध्यात्मिक सशक्तिकरण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक सशक्तिकरण का अर्थ है अपने अन्दर के विकारों का उन्मूलन करना और आत्मा को अपने आदि-अनादि गुणों व शक्तियों में वापस ले जाना। जब तक मनुष्य नहीं बदलेगा तब तक समाज भी नहीं बदल सकता। समाज व विश्व की व्यवस्था में परिवर्तन कर सुखदायी स्थिति का निर्माण करने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य को स्वयं को बदलना पड़ेगा तभी स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन आएगा। उन्होंने कहा कि कई लोग आध्यात्मिकता और धर्म में अंतर नहीं जानते। आध्यात्मिकता का अर्थ है आत्मा के मौलिक गुणों शांति, प्रेम, आनंद, पवित्रता और शक्तियों को बढ़ाना तथा सर्व को एक परमपिता परमात्मा की संतान समझकर कर्म-सम्बन्ध में आना।
मन में रह गया मलाल…
जहां इस मोटीवेशन स्पीच को उपस्थित सभागार में लोगों ने पूरी तन्मयता से सुना वहीं उन्हें इस बात का मलाल रह गया कि कार्यक्रम के दौरान अगर प्रश्नोत्तरी का छोटा सा सत्र रख दिया जाता तो बेहतर होता। लोगों का कहना था कि बहुत से ऐसे प्रश्न मस्तिष्क में कौंधते हैं जिनका उत्तर अगर ऐसे मोटीवेटर से मिलता है तो उसकी बतायी हुई सीख पर चलने में सुविधा होती है।
कार्यक्रम के मुख्य संयोजक फार्माकोलोजी के हेड प्रो ए के सचान ने कहा वातावरण में सभी स्थाई सुख-शांति की तलाश कर रहे है। देखा जाए तो इन सबका कारण मानव जीवन में पांच मनोविकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह और अभिमान द्वारा उत्पन्न हुआ नैतिक पतन है। उन्होंने कहा कि इन मनोविकारों की उत्पत्ति आतंरिक शक्ति की कमी अथवा आध्यात्मिक कमजोरी से होती है। जब तक मानव जीवन में शुभ-भावना व श्रेष्ठ कामना का अभाव है तब तक कर्मों में दिव्यता नहीं आ सकती। कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रति कुलपति डा0 विनीत शर्मा, डीन एकेडेमिक डॉ उमा सिंह एवं सभी विभागाध्यक्ष, फैकल्टी, छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संयोजन डॉ भूपेंद्र सिंह एवं डॉ रीमा कुमारी द्वारा किया गया।