कर्मचारी को बिना समुचित इलाज किये बलरामपुर अस्पताल कर दिया था रेफर, रास्ते में हो गयी थी मौत
लखनऊ. किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से गंभीर हालत में रेफर किये गये केजीएमयू के कर्मचारी की मौत के मामले में आरोपी दो जूनियर डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया है। यह निर्णय कर्मचारी परिषद द्वारा धरना देकर अस्पताल प्रशासन पर दबाव डालने के बाद उठाया गया है। यही नहीं कर्मचारियों के लिए बेड आरक्षित करने की मांग पर भी सहमति बन गयी है।
दो डॉक्टरों डॉ. गौरव प्रकाश और डॉ. तौहीद को आज कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट के निर्देश पर निलंबित कर दिया गया। इन डॉक्टरों पर आरोप है कि इन्होंने केजीएमयू के एक कर्मचारी को गम्भीर हालात में बिना उचित ट्रीटमेंट किए दूसरे हॉस्पिटल रेफर कर दिया। बाद में रास्ते में ही मरीज की मौत हो गयी थी।
ज्ञात हो दन्त संकाय में कार्यरत चौकीदार को रविवार को ट्रामा सेंटर के मेडिसिन वार्ड में लाया गया था. केजीएमयू कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष विकास कुमार सिंह ने मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को लिखे पत्र में बताया था कि दन्त संकाय में चौकीदार पद पर कार्यरत शैलेश कुमार को डायरिया/लूज मोशन की शिकायत पर रविवार रात्रि 8.30 बजे मेडिसिन इमरजेंसी में लाया गया था. उनका कहना था कि वहां तैनात जूनियर डाक्टरों ने गंभीर हालत वाले कर्मचारी का समुचित तरीके से इलाज नहीं किया बल्कि इतनी गंभीर हालत होने के बावजूद मरीज को केजीएमयू जैसे उच्च संस्थान से नीचे संस्थान बलरामपुर अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. बलरामपुर पहुँचने पर चिकित्सकों ने देखते ही बता दिया कि इनकी मृत्यु रास्ते में ही हो चुकी है.
परिषद ने अपने तीखे आरोपों में कहा था कि इस तरह की घटना विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल करती है. अध्यक्ष ने पत्र में यह भी कहा था कि बीती 16 अगस्त के पत्र में कर्मचारियों के लिए तीन बेड आरक्षित करने की मांग की गयी थी जिस पर सिर्फ यह आश्वासन देकर टाल दिया गया था कि कर्मचारियों का इलाज विशेष ध्यान देकर किया जाता है, पत्र में कहा गया है कि तत्काल तीन बेड आरक्षित करने का कष्ट करें जिससे दोबारा इस तरह की घटना की नौबत न आये. पत्र में कहा गया है कि जब अपने स्थाई कर्मचारियों के साथ डाक्टरों द्वारा यह व्यवहार किया जा रहा है तो दूर-दराज से आने वाले मरीजों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता होगा.
आज पुन: इस प्रकरण को लेकर कर्मचारी नेेताओं ने चिकित्सा अधीक्षक के कार्यालय पर धरना दिया था तथा ऐलान कर दिया था कि जब तक कार्रवाई नहीं होगी तब तक यहां से नहीं उठेंगे. कर्मचारियों के रुख को देखते हुए मुख्य चिकित्सा अधीक्षक भी वहां पहुंचे.इसके बाद आनन-फानन में प्रस्ताव तैयार हुआ और कुलपति के पास भेजा गया और दोनों चिकित्सकों का निलंबन किया गया।