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किससे कहूं मन की बात : एपीसोड-1

-एक्‍सपर्ट साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता बता रहीं समस्‍या का समाधान

सावनी गुप्ता. क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट 

सेहत टाइम्‍स

आजकल प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ भरी जिंदगी जीते-जीते हम भावनाओं के ऐसे मकड़जाल में उलझ गए हैं कि जीवन जीना पहले की तरह सरल नहीं रह गया है। कहीं माता-पिता बच्चों को लेकर परेशान हैं तो कहीं युवा अपनी समस्याओं से। हमारी एक-दूसरे से अपेक्षाएं बहुत हैं। ये अपेक्षाएं जब पूरी नहीं होती है तो तनाव की स्थिति पैदा होती है। ऐसे में यदि कोई सही राय देने वाला व्यक्ति मिल जाता है तो राह आसान हो जाती है। हम इस बात के लिए तो परेशान रहते हैं कि इसका समाधान कैसे हो लेकिन बहुत बार हम शर्म और झिझक के चलते दूसरों के सामने अपनी बात रखना भी नहीं चाहते हैं। सेहत टाइम्स का हमेशा यह प्रयत्न रहा है कि हम अपने पाठकों तक अर्थपूर्ण जानकारी पहुंचाएं। अपने इसी प्रयास के तहत अब सेहत टाइम्स अपने पाठकों की समस्याओं के समाधान के लिए एक्सपर्ट मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को ला रहा है।  इस शृंखला की पहली कड़ी में अलीगंज स्थित ‘फेदर्स’ (सेंटर फॉर मेंटल हेल्‍थ) की फाउंडर, क्‍लीनिकल साइकोलॉजिस्‍ट सावनी गुप्‍ता  इन समस्याओं के संबंध में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर और मार्गदर्शन दे रही हैं।
पाठकों से अनुरोध है कि यदि आप भी बच्चों, किशोरों, युवा और बुजुर्गों की भावना, व्यवहार से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या को लेकर परेशान हैं तो एक्सपर्ट सावनी गुप्ता की राय लेने के लिए अपने प्रश्न सेहत टाइम्स को  sehattimes@gmail.com पर मेल या 094155 45814 नम्‍बर पर व्हाट्सएप कर सकते हैं। मैसेज में सब्जेक्ट के स्थान पर किससे कहूं मन की बात लिख दें तो बेहतर रहेगा। आपकी निजता का उल्लंघन न हो, इसके लिए आपका नाम गुप्त रखा जाएगा।

प्रश्‍न 1 मेरा बेटा 16 साल का है, पिछले दिनों मैं घर में अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र करते हुए बता रही थी कि आज मैं बाजार में गाड़ी के नीचे आते-आते बच गयी, मेरा बेटा जो मेरे पास ही बैठा था, अचानक उसके मुंह से निकला कि अच्‍छा होता गाड़ी के नीचे आ जातीं, मैं तो धक से रह गयी, तब से मैं सोच रही हूं कि आखिर उसे मेरे प्रति इतनी नफरत क्‍यों है, परेशान हूं क्‍या करूं, सोच-सोच कर रोना आता है कि मेरा अपना बेटा मेरे बारे में ऐसा क्‍यों सोचता है।

                                       -एस.टी., लखनऊ  

उत्‍तर- ऐसे में आपको चाहिये कि बच्‍चे के दिल की बात पता लगायें कि आखिर उसने ऐसा क्‍यों कहा, क्‍योंकि कुछ तो जरूर है जो उसके अंदर चल रहा है। आपके लिए मेरी यही सलाह है कि पहले आप बच्‍चे से घर में ही पूछें कि उसने ऐसा क्‍यों कहा, क्‍या उन्‍होंने कोई गलती की है… इसे ईगो का प्रश्‍न न बनायें, यह न सोचें कि आप बड़ी हैं तो आप बच्‍चे से अपनी गलती के बारे में नहीं पूछ सकती हैं, बच्‍चे के मन से बात निकलवाने के लिए उससे सख्‍ती से नहीं बल्कि प्‍यार से पूछने की आवश्‍यकता है, क्‍योंकि उसके मन में आपके प्रति इस तरह के भाव आने के पीछे के कारण को जानना बहुत आवश्‍यक है कि आपके किस व्‍यवहार ने उसे इतना आहत किया है, कि वह ऐसी बात बोल रहा है। आपकी कोशिश अगर सफल न हो तो किसी मनोवैज्ञानिक की मदद लें।

प्रश्‍न 2- मेरा बेटा 15 साल का है,  वह अपने दोस्‍तों में ही मस्‍त रहता है, घर में सबसे अलग-थलग रहना पसंद करता है, अगर उसे डांटती हूं तो वह सुनता नहीं है, एक कान से सुनता है दूसरे से निकाल देता है, ज्‍यादा कहो तो उल्‍टा जवाब दे देता है, समझ नहीं आता कि क्‍या करूं, इतने बड़े बच्‍चे को मारना भी अच्‍छा नहीं लगता है।

                                    -आर.एस., लखनऊ

उत्‍तर- देखिये, किशोरावस्‍था में आजकल जो शिकायतें ज्‍यादा मिल रही हैं उनमें बच्‍चों के मूड में बदलाव, किसी से न घुलना-मिलना, पढाई में मन नहीं लगना, एकाग्र न रहना, झुंझलाहट, ज्‍यादा समय दोस्‍तों के साथ रहना, कुछ समझाओ तो उल्‍टा जवाब देना जैसी शिकायतें शामिल हैं। सबसे पहले बच्‍चे के साथ बिना सख्‍ती दिखाये उससे पूछें कि उसे‍ किस बात की दिक्‍कत है, बहुत से माता-पिता या तो सख्‍ती दिखाते हैं या फि‍र बच्‍चे को दिखाते हैं कि वे उसके बात नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिये। प्‍यार से उससे उसकी परेशानियों के बारे में पूछें, उसे यह विश्‍वास दिलायें कि आपको उसके अच्‍छे भविष्‍य के लिए उसे अच्‍छा इंसान बनाने को लेकर बहुत फि‍क्र है। साथ ही अपने और उसके बीच एक सीमा बनाकर रखें,  उसकी गलत बातों पर उस बात के बुरे नतीजों के बारे में जानकारी देते हुए समझायें। ऐसा करने से आपकी समस्‍या हल हो सकती है। अगर फि‍र भी समस्‍या कायम रहे तो आप किसी मनोवैज्ञानिक से मिलें।

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