-मानव के साथ ही जानवरों व वनस्पतियों में होम्योपैथिक दवा के असर को रिसर्च में साबित करने वाले डॉ गिरीश गुप्ता ने की अपील
-राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सकों की मौजूदगी वाले वेबिनार में सीएसआईआर की प्रयोगशालाओं में किये सफल परीक्षणों को किया प्रस्तुत
सेहत टाइम्स
लखनऊ। मीठी गोली, प्लेसबो जैसे नामों की संज्ञा देकर होम्योपैथिक दवाओं का उपहास उड़ाने वालों को इन दवाओं की ताकत का वैज्ञानिक सबूत देने वाले वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता ने सभी होम्योपैथिक चिकित्सकों से अपील की है कि वे अपने रोगियों के उपचार का डाटा अवश्य संकलित करें, और जब 100 या ज्यादा केस हो जायें तो उनका आकलन कर एक स्टडी तैयार करें तथा उसका प्रकाशन किसी भी साधारण अथवा पीयर रिव्यू जर्नल में अवश्य करायें, ऐसा करने से किसी भी राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय मंच पर होम्योपैथिक दवाओं के प्रति लोगों की स्वीकार्यता बढ़ाने में मदद मिल सकेगी।
डॉ गुप्ता ने यह बात इंटरनेशलन फोरम ऑफ प्रमोटिंग होम्योपैथी के निरंतर दैनिक वेबिनार के 1500 एपीसोड पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित वेबिनार में कही। वेबिनार में आयोजित चर्चा का विषय ‘स्कोप ऑफ द होम्योपैथी फॉर द डिजीजेस ऑफ ह्यूमैन्स, एनिमल्स एंड प्लांट्स’ था। चर्चा करने वाले पैनल में डॉ गिरीश गुप्ता के साथ ही यूनाइटेड किंगडम के डॉ निकुंज एम त्रिवेदी व फिलीपीन्स में क्लीनिक चलाने वाले आईएफपीएच के वाइस प्रेसीडेंट डॉ शाजी वर्गीस कुदियात शामिल थे। डॉ निकुंज ने डॉ गिरीश के रिसर्च वर्क की प्रशंसा करते हुए कहा कि कोविड काल के समय से ही मैं देख रहा हूं, उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है एक दिन होम्योपैथी का डंका पूरी दुनिया में बजेगा। डॉ हुबर्ट डी सिल्वा ने अपने सम्बोधन के दौरान डॉ गिरीश की रिसर्च को लाजवाब बताया। वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्ता के रिसर्च कार्य के समय शामिल रहे पशु चिकित्सक डॉ सुरजीत सिंह मक्कड़ भी शामिल हुए। इस वेबिनार से भारत के साथ ही दुनिया के अनेक देशों के होम्योपैथिक विशेषज्ञ जुड़े थे, जिन्होंने डॉ गुप्ता के रिसर्च वर्क की सराहना करते हुए उनके इस कार्य को होम्योपैथी को उपचार की मुख्य धारा में लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।
वेबिनार में डॉ हुबर्ट डी सिल्वा, डॉ हरिहरन, डॉ मनोज जीएस, डॉ राम प्रवेश शाह, डॉ मारियन सकेडा, डॉ जावेद अख्तर सहित अनेक चिकित्सकों ने अपने विचार रखे। वेबिनार का संचालन डॉ धनेश ने किया।
वेबिनार में डॉ गिरीश ने सीएसआईआर की राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) के वैज्ञानिकों की निगरानी में प्रयोगशालाओं में किये गये अपने रिसर्च वर्क के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि होम्योपैथिक दवाओं में न सिर्फ मनुष्य बल्कि जानवर और पेड़-पौधों में होने वाले रोगों को ठीक किये जाने की भी क्षमता है।
डॉ गुप्ता के बताया कि किस तरह उन्होंने एनबीआरआई में निकोटियाना ग्लूटिनोसा Nicotiana glutinosa पौधे पर लगने वाले टोबेको मोसाइक वायरस tobacco mosaic virus पर होम्योपैथिक दवाओं का असर देखने के लिए अनुसंधान कार्य किया, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आये। यह रिसर्च 1980 में जर्नल ‘दि हैनिमैनियन ग्लीनिंग्स’ The Hahnemannian Gleanings में छपी। जर्नल में छपने के बाद इस रिसर्च ने होम्योपैथी की दुनिया के दिग्गजों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवारकल्याण मंत्रालय के तत्कालीन एडवाइजर ऑफ होम्योपैथी डॉ दीवान हरिश्चंद ने भी जब यह रिसर्च देखी तो उन्होंने रिसर्च प्रोजेक्ट का प्रस्ताव सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी (सीसीआरएच) में भेजने को कहा था।
डॉ गुप्ता ने रोल ऑफ होम्योपैथी इन प्लांट्स एंड एनिमल डिजीज पर लिखी अपनी किताब एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी को दिखाते हुए सीडीआरआई में किये गये अपने रिसर्च वर्क के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वहां की वायरोलॉजी डिवीजन में उन्होंने अपने रिसर्च प्रोजेक्ट ‘एंटीवायरल स्क्रीनिंग ऑफ होम्योपैथिक ड्रग्स अगेन्स्ट ह्यूमैन एंड एनिमल वायरेसेस’ पर अनुसंधान कार्य किया। डिवीजन के तत्कालीन इंचार्ज डॉ एलएम सिंह ने उनसे ऐसे एनिमल वायरस पर रिसर्च करने को कहा जो मानव को न संक्रमित करते हों, इसके लिए उन्होंने मुर्गों में होने वाली गंभीर बीमारी के लिए चिकन एम्ब्रियो वायरस नामक एक नए स्ट्रेन पर शोध कार्य किया, यह वायरस मुर्गे की गंभीर रुग्णता और मृत्यु दर का कारण बनता है जिससे पोल्ट्री उद्योग को भारी नुकसान होता है। इस रिसर्च की सफलता के परिणामों को देखकर सीसीआरएच के अधिकारी भी हतप्रभ रह गये। वहां के अधिकारियों ने इसे काफी प्रोत्साहन दिया क्योंकि काउंसिल के तहत की जाने वाली यह एक अनोखी रिसर्च थी। इस पर उनके तीन रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए, इनमें दो हैनिमैनियन ग्लीनिंग्स में और एक ब्रिटिश होम्योपैथिक जर्नल में जुलाई 1985 में प्रकाशित हुआ। यही नहीं एक रिसर्च पेपर ‘वायरस कीमोथेरेपी थ्रू होम्योपैथिक ड्रग्स : ए न्यू अप्रोच’ को लियोन में में आयोजित लिगा मेडिकोरम होम्योपैथिका इंटरनेशनलिस में प्रस्तुत करने के लिए अनुमोदित किया गया।
डॉ गुप्ता ने बताया कि उन्होंने एक्सपेरिमेंटल कैटेगरी में पैथोजेनिक फंगाई, कैन्डाइड एल्बिकंस, ट्राइकोफाइटॉन स्पेशीज, एसपरजिलस नाइजर, माइक्रोस्पोरम, कर्वुलारिया लुनाटा आदि से ग्रस्त मरीजों का इलाज किया।