डॉ गीता खन्ना ने वेबिनार से देश भर की 1200 महिला चिकित्सकों को बताये संतानहीनता को दूर करने के उपाय
लखनऊ। अजंता अस्पताल की विख्यात बांझपन व आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ गीता खन्ना ने यहां गोमती नगर में आयोजित वेबिनार में आईयूआई (अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान) विधि से संतानोत्पत्ति पर व्याख्यान दिया। इस व्याख्यान को पूरे भारत वर्ष में प्रसारित किया गया। इस वेबिनार में करीब 1200 स्त्री रोग विशेषज्ञों ने अपने-अपने शहर से ही बैठकर भाग लिया। इन विशेषज्ञों ने अपनी जानकारी और जिज्ञासा को शांत करने के लिए डॉ गीता से करीब 45 सवाल पूछे जिनका जवाब देकर डॉ गीता खन्ना ने उनकी जिज्ञासायें शांत कीं।
इस वेबिनार में मुंबई, दिल्ली, पुणे, अहमदाबाद, पटना कोलकाता, जालंधर आदि के प्रतिभागियों हिस्सा लिया। व्याख्यान लगभग एक घंटे तक चला। डॉ गीता ने बताया कि पति-पत्नी के शुक्राणु या अंडाशय में किसी प्रकार की कमी है या फिर पत्नी के गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब या ऊपर के संयोजन में कुछ समस्याएं होने पर इस तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है। डॉ गीता ने बताया कि आईयूआई पति में यौन विकारों के मामलों में या पत्नी का गर्भाशय ग्रीवा कारक होने की दशा में भी किया जाता है।
उन्होंने बताया कि इसका साधारण शब्दों में अर्थ है कि पुरुष के शुक्राणु किसी न किसी समस्या के कारण स्त्री के गर्भाशय तक नहीं पहुंच पा रहे है, ऐसी स्थिति में पुरुष का वीर्य लेकर लैब में उससे शुक्राणुओं को अलग कर उन शुक्राणुओं को एक नली की सहायता से स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है। यानी स्वाभाविक प्रक्रिया में जो शुक्राणु गर्भाशय तक पहुंचने में बाधा आ रही है, उस बाधा को दूर करने की जो पूरी प्रक्रिया है उसे ही आईयूआई कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि महिला व स्त्री रोग विशेषज्ञ को चाहिये कि वे संतान के लिए आये जोड़े की पूरी हिस्ट्री लें, जिससे परिणाम बेहतर निकलें। उन्होंने बताया कि इस विधि से इलाज से दूसरी तकनीकों से इलाज के मुकाबले कम पैसे खर्च होते हैं। अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान जिसे आमतौर पर IUI कहा जाता है, एक सुरक्षित है और यह सभी प्रशिक्षित स्त्रीरोग विशेषज्ञों द्वारा किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि बस आवश्यक यह है कि यह केवल तभी किया जाना चाहिए जब पत्नी के फैलोपियन ट्यूब खुले हों, अंडाशय में अंडे बन रहे हों, उसकी उम्र 35 वर्ष से कम हो, उसके पति का वीर्य 15 मिलियन / cc से अधिक हो और गर्भाशय में कोई संरचनात्मक असामान्यता नहीं हो। डॉ गीता के अनुसार इस विधि से सफलता प्राप्त करने की संभावना और बढ़ाने के लिए क्लोमीफीन, लेट्राज़ोल और गोनैडोट्रोपिन हार्मोन जैसी कुछ दवाएं देकर अंडाशय को उत्तेजित किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि 38 वर्ष से ज्यादा की आयु में शादी होने के कारण गर्भाधान में दिक्कत होने, पति के शुक्राणु कम होने या पत्नी का अंडाशय कमजोर होने या फिर आईयूआई विधि से तीन बार गर्भाधान में विफल होने पर आगे और समय नहीं गंवाना चाहिये, ऐसे में आईवीएफ, जिसे आमतौर पर टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है, तकनीक से संतान प्राप्ति के लिए सोचना श्रेयस्कर रहता है। उन्होने बताया कि आईवीएफ तकनीक से संतान प्राप्त करने में पिछले 10 वर्षों में 50 से 60 प्रतिशत सफलता बढ़ी है।