-अंतत: डॉ गिरीश गुप्ता ने शोध से सिद्ध कर दी होम्योपैथी की वैज्ञानिकता
–डॉ गिरीश गुप्ता की पुस्तक ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ की समीक्षा भाग-4
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सेहत टाइम्स
अभी तक आपने जाना कि होम्योपैथी को ‘प्लेसबो‘ कहा जाना डॉ गिरीश को इतना ज्यादा चुभा कि उन्होंने होम्योपैथिक दवाओं की वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए शोध को अपना लक्ष्य बनाया और फिर किस प्रकार इसके लिए एनबीआरआई, सीडीआरआई में कड़े संघर्ष के बाद रिसर्च के लिए अपनी जगह बनायी। रिसर्च करते हुए तीन माह ही बीते थे कि उत्तर प्रदेश सरकार से मेडिकल ऑफीसर पद पर नियुक्ति का ऑफर मिला लेकिन रिसर्च को लक्ष्य लेकर चलने वाले डॉ गुप्ता ने नौकरी के इस ऑफर को ठुकरा दिया। डॉ गुप्ता के शोध कार्य से प्रभावित होकर ही उन्हें 1985 में लंदन में रॉयल कॉलेज ऑफ फिजीशियंस में लेक्चर के लिए आमंत्रित किया गया, यह लेक्चर ब्रिटिश जर्नल में प्रकाशित भी हुआ है। अब जानिये आगे..
केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) रिसर्च प्रोजेक्ट पूरा हुआ ही था कि लखनऊ में होम्योपैथिक ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एचडीआरआई) खुला तो उसमें कार्य करने के लिए सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी (सीसीआरएच) के निदेशक डॉ डीपी रस्तोगी ने स्वयं अपनी ओर से डॉ गिरीश गुप्ता को ऑफर दिया। डॉ गुप्ता बताते हैं कि दरअसल एचडीआरआई में रिसर्च के लिए अनेक सुविधाओं का अभाव था, और चूंकि उनका शोध क्षेत्र में कार्य करने का मकसद नौकरी करना नहीं, बल्कि होम्योपैथी की वैज्ञानिकता सिद्ध करना था, इसलिए उन्होंने यह ऑफर अस्वीकार कर दिया।
इसके बाद 1985 में डॉ गुप्ता ने फुल टाइम प्रैक्टिस करना प्रारम्भ किया और प्रत्येक मरीज का रिकॉर्ड रखना शुरू किया, इस बीच उनके कई पेपर्स जर्नल में प्रकाशित हुए। करीब 10 बाद उन्होंने अपने रिसर्च सेंटर में दो नये विभाग क्लीनिकल पैथोलॉजी और मेडिकल माइकोलॉजी स्थापित किये, इन विभागों का उद्घाटन एक सादे समारोह में उन्होंने अपने बेटे मास्टर गौरांग और बेटी बेबी सावनी के हाथों कराया। इस तरह से 1995 में फुल स्ट्रेन्थ के साथ गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) ने कार्य करना प्रारम्भ किया। इस सेंटर में सीडीआरआई के दो रिटायर्ड वैज्ञानिकों को नियुक्त किया गया। इसकी मैनेजिंग डाइरेक्टर बनीं डॉ गिरीश गुप्ता की पत्नी सीमा गुप्ता तथा डॉ गिरीश गुप्ता ने चीफ कन्सल्टेंट के रूप में कार्यभार संभाला। सेंटर का मुख्य उद्देश्य होम्योपैथी को विज्ञान की मुख्य धारा में लाने की प्रतिबद्धता के स्लोगन के साथ उपचार, शोध, प्रकाशन और प्रशिक्षण कार्य करना था।
डॉ गुप्ता लिखते हैं कि इसके बाद सेंटर पर दो तरह की क्लीनिकल और एक्सपेरिमेंटल रिसर्च पर कार्य शुरू हुआ तथा कई तरह के सॉफ्टवेयर तैयार कर अलग-अलग रोगों के मरीजों का रिकॉर्ड रखना शुरू हो गया। पहले तरह की कैटेगरी में गॉल ब्लेडर स्टोन, किडनी स्टोन, यूटराइन फाइब्रॉयड, ओवेरियन सिस्ट, पीसीओडी, बिनाइन प्रोस्टेट हाईपरप्लासिया, थायरॉयड डिस्ऑर्डर्स, विटिलिगो, सोरियासिस, लाइकेन प्लेनस लिचेन प्लानस, मोलसकम कोंटेजीयोसम, वार्ट्स, रिह्यूमेटिक आर्थराइटिस, रिह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस और गाउट रोगों का रिकॉर्ड रखना शुरू हुआ जबकि एक्सपेरिमेंटल कैटेगरी में पैथोजेनिक फंगाई, कैन्डाइड एल्बिकंस, ट्राइकोफाइटॉन स्पेशीज, एसपरजिलस नाइजर, माइक्रोस्पोरम, कर्वुलारिया लुनाटा आदि से ग्रस्त मरीजों के रिकॉर्ड रखने प्रारम्भ हुए।
डॉ गुप्ता लिखते हैं कि इन सभी रोगों पर हुए शोध के परिणाम अच्छे आये, एक्सपेरिमेंटल रिसर्च के परिणामों ने भी होम्योपैथी का वैज्ञानिक आधार होना साबित किया। इन शोधों के पेपर्स राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हुए, और इस तरह से होम्योपैथी की वैज्ञानिकता सिद्ध करने का डॉ गुप्ता का मिशन पूरा हुआ। जाहिर है रिसर्च और उसके परिणामों ने उन लोगों को भी जवाब दे दिया जो होम्योपैथी को प्लेसबो बताते थे।
डॉ गुप्ता लिखते हैं कि इस अच्छे कार्य और शोध के अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन ने दुनिया भर के विशेषज्ञों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इसी के चलते 2003 में अमेरिका के सैमुअली इंस्टीट्यूट फॉर इनफॉरमेशन बायोलॉजी (एसआईआईबी) की एक टीम ने हमारे सेंटर जीसीसीएचआर का दौरा किया। इस टीम का नेतृत्व डॉ वेन जोनस कर रहे थे तथा उनके साथ सीनियर एनआरआई साइंटिस्ट डॉ आरके माहेश्वरी, आईटीआरसी के पूर्व निदेशक डॉ आरसी श्रीमल और सीडीआरआई के वैज्ञानिक डॉ राकेश शुक्ला शामिल थे। इस टीम ने कोलकाता, केरल और लखनऊ के रिसर्च सेंटर्स का दौरा किया।
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