-वैवाहिक विवादों, झूठे आरोपों और विवाहेतर संबंधों के कारण पुरुषों एवं परिवारों के अस्तित्व पर भारी संकट मंडरा रहा
-मेरठ कांड में शामिल मुस्कान रस्तोगी सहित दूसरी घटनाओं की दोषी महिलाओं को सजा के लिए प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। वैवाहिक कानूनों के दुरुपयोग को रोकने एवं परिवारों को बचाने के लिए लैंगिक भेदभाव पर आधारित कानूनों और सुधारों में आवश्यकता है। हाल ही में मेरठ हत्या कांड, अतुल सुभाष, मनीष, निशांत सहित कई पुरुषों की आत्महत्या के मामलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वैवाहिक विवादों, झूठे आरोपों और विवाहेतर संबंधों के कारण पुरुषों एवं परिवारों के अस्तित्व पर भारी संकट मंडरा रहा है।
यह कहना है सामाजिक कार्यकर्ता व गाइड संगठन की संस्थापक डॉ इंदु सुभाष का। गाइड संगठन द्वारा आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ इंदु सुभाष ने कहा कि
आईपीसी 498ए (दहेज उत्पीड़न), झूठे रेप आरोप, घरेलू हिंसा अधिनियम और भरण-पोषण कानूनों के दुरुपयोग ने निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को कानूनी, आर्थिक और मानसिक रूप से तोड़कर रख दिया है। कई मामलों में झूठे आरोपों से पीड़ित पुरुष आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं।


संगोष्ठी में युवा स्त्रियों के आपराधिक क्रूर एवं विकृत स्वभाव के कारण पुरुषों की बढ़ती नृशंस हत्याएं एवं झूठे आरोपों के बढ़ते मामले और उसके सामाजिक दुष्प्रभावों पर चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि संस्था द्वारा प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, अध्यक्ष महिला आयोग को मेरठ कांड में शामिल मुस्कान रस्तोगी एवं अन्य इस तरह के जघन्य अपराध करने वाली आर्य कुपुत्रियों को कड़ी सजा देने के लिए ज्ञापन दिया जा रहा है।
डॉ इंदु ने बताया कि वक्ताओं ने वैवाहिक कानूनों को लैंगिक-निरपेक्ष बनाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया ताकि परिवारों को बेवजह की कानूनी प्रताड़ना और मानसिक उत्पीड़न से बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि संस्था की मांग है कि
1. लैंगिक-निरपेक्ष वैवाहिक और आपराधिक कानून – घरेलू हिंसा, विवाह से जुड़े कानूनी विवाद और यौन उत्पीड़न कानूनों को लैंगिक-निरपेक्ष बनाया जाए ताकि सभी को समान न्याय मिले।
2. झूठे मामलों पर कड़ी सजा – झूठे आरोप लगाने वालों पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए ताकि कानूनों का दुरुपयोग रोका जा सके।
3. पुलिस और न्यायिक सुधार – पुलिस को किसी भी गिरफ्तारी से पहले निष्पक्ष जांच करने के निर्देश दिए जाएं और विवाह संबंधी मामलों के निपटारे के लिए एक अलग कानूनी निकाय का गठन किया जाए।
4. अनिवार्य काउंसलिंग एवं मध्यस्थता – कोर्ट में मामला दर्ज करने से पहले सुलह और काउंसलिंग को प्राथमिकता दी जाए ताकि बेवजह की कानूनी लड़ाइयों और मानसिक उत्पीड़न को रोका जा सके।
5. मानसिक स्वास्थ्य एवं आत्महत्या रोकथाम सहायता – झूठे आरोपों, उत्पीड़न और मानसिक तनाव से जूझ रहे पुरुषों के लिए विशेष हेल्पलाइन, कानूनी सहायता और मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं।
6. वरिष्ठ नागरिकों को कानूनी उत्पीड़न से सुरक्षा – घरेलू हिंसा और भरण-पोषण कानूनों के दुरुपयोग के कारण कई बुजुर्ग माता-पिता कानूनी और आर्थिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें बेवजह कानूनी मामलों में न फंसाया जाए।
7. पुरुष मंत्रालय की मांग के साथ झूठे मामलों पर रोक एवं कड़ी सजा हो बच्चों से मिलने का अधिकार, फास्ट-ट्रैक अदालते हों, झूठे केस में पुरुष को मुआवजा मिले।
डॉ इंदु सुभाष ने कहा कि हमारी अपील है कि एक न्यायपूर्ण समाज की नींव कानून के समान अनुप्रयोग पर टिकी होती है, मौजूदा कानूनी प्रणाली, पुरुषों पर झूठे आरोपों और कानूनी शोषण की अनदेखी कर रही है, समाज में असंतोष, टूटते परिवारों और आत्महत्या जैसी दुखद घटनाओं को जन्म दे रही है। डॉ इंदु सुभाष ने कहा कि हम विधायकों, न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से अनुरोध करते हैं कि वे न्याय को सुनिश्चित करें, न कि किसी विशेष लिंग के लिए विशेषाधिकार, परिवर्तन का समय अब आ गया है। यदि इन मुद्दों को जल्द हल नहीं किया गया, तो निर्दोष लोगों की जान जाती रहेंगी और परिवारों को अपूरणीय क्षति होगी। संगोष्ठी में रश्मि मिश्रा, डॉ.आतिफा सलाउद्दीन, तसनील अहमद, सरोज शर्मा, सुलक्षणा टंडन, प्रो. सुषमा मिश्रा, रत्ना सिंह, डॉ. अरविंद आदि अनेक लोग शामिल हुए।
