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आशा की किरण फूट चुकी है, रोशनी फैलने वाली है…

न्‍यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर वाले बच्‍चों के इलाज करने वाले ब्रेन रक्षक तैयार हो रहे

ब्रेन रक्षक डॉ टीआर यादव से सेहत टाइम्‍स की खास बातचीत

लखनऊ। बच्‍चों की न्‍यूरोलॉजिकल समस्‍याओं का हल होना बहुत जरूरी है, मैंने अपने चिकित्‍सीय कार्यकाल में अनेक बच्‍चों को न्‍यूरोलॉजिकल समस्‍याओं जैसे बोल न पाना, चल न पाना, पढ़ लेना लेकिन समझ न पाना, दौरे पड़ना जैसी तकलीफों से जूझते देखा है। ऐसे बच्‍चों को जब देखता था तो बहुत आत्‍मग्‍लानि होती थी कि मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूं, क्‍योंकि बच्‍चों की न्‍यूरोलॉजी के इलाज के लिए तब कोई कोर्स ही उपलब्‍ध नहीं था, जिसे मैं कर लेता। मैं मानता हूं कि ऐसे बच्‍चों को उचित तरीके से इलाज उपलब्‍ध कराना एक बड़ी चुनौती है।

 

यह कहना है उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ निवासी निजी क्‍लीनिक चलाने वाले बाल रोग विशेषज्ञ डॉ टीआर यादव का। इस विषय को लेकर ‘सेहत टाइम्‍स’ ने डॉ टीआर यादव से विशेष वार्ता की। डॉ यादव ने कहा कि  बच्‍चों की न्‍यूरोलॉजी बड़ों से अलग होने के कारण इसका इलाज पीडियाट्रि‍क न्‍यूरोलॉजिस्‍ट ही बेहतर तरीके से कर सकता है, और दुर्भाग्‍य से ऐसे विशेषज्ञों का नितांत अभाव है। हालांकि अब जब इस समस्‍या के समाधान के लिए एसोसिएशन ऑफ चाइल्‍ड ब्रेन रिसर्च के संस्‍थापक डॉ राहुल भारत ने बीड़ा उठाया है तो इससे एक आशा अवश्‍य जगी है क्‍योंकि चार फेज की रिसर्च के बाद उन्‍होंने इसके उपचार का यह कार्यक्रम तैयार किया है।

 

आपको बता दें कि डॉ राहुल भारत ने पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी की पढ़ाई कैंब्रिज यूके से की है। डॉ राहुल ब्रिटिश पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी एसोसिएशन के सदस्यऔर पीडियाट्रिक एपिलेप्सी ट्रेनिंग के ट्रेनर हैं। इसके अलावा इंटरनेशनल चाइल्ड न्यूरोलॉजी एसोसिएशन और रॉयल कॉलेज एंड पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ लंदन के सदस्य भी हैं।

 

डॉ यादव के अतीत में झांकने पर पता चला कि उत्‍तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक गांव में जन्‍मे डॉ यादव की हाईस्‍कूल तक की शिक्षा जौनपुर में हुई तथा फि‍र इंटरमीडिएट उन्‍होंने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से किया। इसके बाद इनका चयन मेडिकल में हो गया तो एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए मेरठ के लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। आगे विशेषज्ञता की पढ़ाई के लिए एमडी कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज से किया। वे बताते हैं कि सीनियर रेजीडेंट के रूप में मैंने दिल्‍ली के आरएमएल इंस्‍टीट्यूट में कार्य किया। इसके बाद अब लखनऊ में प्राइवेट क्‍लीनिक चला रहा हूं।

 

डॉ यादव ने बताया कि बच्‍चों की न्‍यूरोलॉजी के आधार पर न्‍यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का इलाज करना ए‍क बड़ी चुनौती है। अपना उदाहरण देते हुए उन्‍होंने बताया कि मेरे पास ही बहुत से ऐसे लक्षणों वाले बच्‍चे आते थे, मुझे जब कुछ समय में नहीं आता था तो मैं मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर देता था, चूंकि मेडिकल कॉलेज में भारी भीड़ होने के कारण बच्‍चे को दिखाना मुश्किल होता था तो लोग वहां जाने की हिम्‍मत नहीं करते थे, उनका कहना होता था कि आपके पास कोई इलाज हो तो बताइये, मेडिकल कॉलेज नहीं ले जायेंगे। फि‍र मेरी एक बार एक कॉन्‍फ्रेंस में डॉ राहुल भारत से मुलाकात हुई और ऐसे बच्‍चों के उपचार के लिए उनकी रिसर्च के बारे में पता चला।

 

उन्‍होंने बताया कि डॉ राहुल ने ऐसे बच्‍चों तक इलाज की पहुंच आसान बनाने के लिए हर जिले में ब्रेन रक्षक तैयार करने के लिए बाल रोग विशेषज्ञों को चुनने का निर्णय लिया।  इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। इन पीडियाट्रीशियंस को डॉ राहुल ने अपनी रिसर्च से तैयार किये पाठ्यक्रम के माध्‍यम से न्‍यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर वाले बच्‍चों का उपचार करने संबंधी प्रशिक्षण देने का बीड़ा उठाया है। एसोसिएशन ऑफ चाइल्‍ड ब्रेन रिसर्च के बैनर तले दिये जाने वाले इस प्रशिक्षण में बाल रोग विशेषज्ञों को ब्रेन रक्षक के रूप में तैयार किया जा रहा है। अ‍भियान की औपचारिक शुरुआत अगस्‍त माह से होगी।

 

ब्रेन रक्षक अभियान से जुड़ने के बारे में उन्‍होंने बताया कि डॉ राहुल के एक कार्यक्रम में मैं शामिल हुआ था। चूंकि अपनी इंटर्नशिप के समय से ही मुझे बच्‍चों की इस दिक्‍कत को दू्र करने के प्रति रुचि थी लेकिन मजबूर था कि ऐसा कोई कोर्स ही उपलब्‍ध नहीं था। डॉ राहुल के बारे में उन्‍होंने बताया कि डॉ राहुल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह जो भी होता है, साफ बोल देते हैं, अगर उन्‍हें लगता है कि बच्‍चे के इलाज में किसी डॉक्‍टर द्वार दवा बहुत ज्‍यादा चलायी जा रही हैं, तो वह साफ-साफ कह देते हैं कि यह गलत है, भले ही इस साफगोई से उन्‍हें कोई नुकसान हो जाये।

 

डॉ यादव ने कहा कि हम लोगों का लक्ष्‍य यह है कि इस कार्यक्रम को पहले चरण में लखनऊ से शुरुआत करके प्रदेश के अन्‍य जिलों में भी ले जाया जाये ताकि पीड़ित बच्‍चों को उनके घर के नजदीक गुणवत्‍तायुक्‍त इलाज मिल सके। हम इसे एक चुनौती के रूप में स्‍वीकार कर रहे हैं।