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सिस्टिक हाइड्रोमा का बिना सर्जरी होम्योपैथी में इलाज संभव

-जीसीसीएचआर में हुई स्टडी में शरीर और मन की स्थिति को ध्यान में रखकर किया गया था दवा का चुनाव

-अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्ता ने प्रेजेंटेशन में दिखाए कई मरीजों के केस

उपचार की शुरुआत से सिस्ट के कम होने की प्रगति देखने के लिए खींचीं गयीं कुछ फोटो

सेहत टाइम्स

लखनऊ। जन्म से होने वाली बीमारी सिस्टिक हाइड्रोमा को बिना सर्जरी कराये होम्योपैथिक दवाओं से उपचारित किया जा सकता है। होम्योपैथी के मूल सिद्धांत कि इलाज सिर्फ रोग नहीं, रोगी के शारीरिक एवं मन से जुड़े लक्षणों को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिए, के अनुसार दवा का चयन किया गया तो मरीज को चमत्कारिक रूप से लाभकारी परिणाम मिले। यह स्टडी यहाँ लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) में की जा चुकी है।

यह जानकारी गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक व चीफ कंसल्टेंट वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता ने अंतर्राष्‍ट्रीय फोरम फॉर प्रमोशन ऑफ होम्‍योपैथी IFPH द्वारा 5 जुलाई को आयोजित वेबिनार में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होकर दी। उन्होंने बताया कि जन्म से ही होने वाली इस बीमारी का कारण अभी ज्ञात नहीं है। इसमें शरीर में मौजूद लिम्फेटिक ब्लॉकेड हो जाते हैं, लिम्फ के चारों ओर से भरने के कारण वह स्थान एक बड़ा आकार ले लेता है, यह बहुत सॉफ्ट होता है, इसमें किसी प्रकार का हेमरेज या ब्लीडिंग नहीं होती है। अपने प्रेजेंटेशन में डॉ गिरीश गुप्ता ने सिस्टिक हाइड्रोमा से पीड़ित मरीजों के कई केसेस का जिक्र करते हुए फोटो के माध्यम से इलाज के पूर्व की स्थिति से लेकर इलाज के दौरान और इलाज के बाद की स्थितियों को इस अंतर्राष्ट्रीय फोरम पर रखा।

इन केसेस में एक केस 17 फरवरी, 2014 को आये उस बच्चे का भी शामिल था, जिसकी गर्दन में सिस्ट का आकार इतना बड़ा था कि बच्चे की गर्दन के ऊपर का भाग टेढ़ा हो गया था, उसका इलाज कराने मुंबई से उसके माता-पिता इसलिए आये क्योंकि वहां डॉक्टर्स ने उनके बच्चे के इलाज के लिए सर्जरी आवश्यक बतायी थी, सिर्फ 1 साल की उम्र के अपने बच्चे की सर्जरी की बात सुन परेशान हुए माता-पिता किसी भी तरह बच्चे की सर्जरी बचाना चाहते थे, तभी उन्हें अपने किसी परिचित से डॉ गिरीश गुप्ता के बारे में पता चला। डॉ गिरीश ने बताया कि मैंने अपने जीवन में इतना बड़े आकार वाले सिस्टिक हाइड्रोमा को नहीं देखा था।

डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि हमारे सामने एक बड़ी चुनौती थी उस बच्चे के शरीर और मन की स्थिति के अनुसार उसके लिए दवा का चयन करना, क्योंकि मनःस्थिति के बारे में इतना छोटा बच्चा तो बता नहीं सकता था। ऐसे में माता-पिता से पूछे गए सवालों के उत्तर में जो लक्षण सामने आये, उसका मुख्य सार यह था कि बच्चा जिद्दी स्वभाव का था, सोते-सोते चौंक जाता था, सिर में पसीना आता था, नमकीन ज्यादा पसंद करता था। उन्होंने बताया कि इसके बाद दवा का चयन कर बच्चे का इलाज शुरू किया गया और प्रोग्रेस की लगातार मॉनिटरिंग की गयी। डॉ गिरीश ने इस बच्चे को हुए लाभ को दिखाने के लिए 12 फोटोग्राफ दिखाए, पहले और सबसे बाद के फोटोग्राफ को देख कर जमीन और आसमान जैसा बदलाव साफ़ दिख रहा है।

डॉ गुप्ता ने बताया कि सिस्टिक हाइड्रोमा के 12 केसेस की स्टडी उनके रिसर्च सेंटर जीसीसीएचआर पर की जा चुकी है, और इसका प्रकाशन जर्नल में हो चुका है। स्टडी के परिणाम के बारे में उन्होंने बताया कि इनमें 8 मरीजों को लगभग पूरा, दो मरीजों को कम लाभ हुआ जबकि दो मरीज ऐसे थे जिन्हें लाभ नहीं हुआ, जिन दो मरीजों को लाभ नहीं हुआ उसकी एक वजह उनका बीच में इलाज छोड़ना भी है। उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर इस स्टडी से मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि होम्योपैथिक दवाओं से बिना सर्जरी किये सिस्टिक हाइड्रोमा को ठीक किया जा सकता है।

वेबिनार में उपस्थित चिकित्सकों से डॉ गिरीश ने अपील की कि वे ऐसे मरीजों का इलाज करें लेकिन यह ध्यान रखें कि सभी मरीजों कोई एक स्पेसिफिक दवा न दें, मरीज के लक्षणों को ध्यान में रखकर ही दवा का चयन करें, तभी आशातीत परिणाम सामने आयेंगे। उन्होंने चिकित्सकों से यह भी अपील की कि वह किसी भी गंभीर रोग को जब ठीक करें तो रोग ठीक होने के साक्ष्य के साथ इसका प्रकाशन जर्नल में अवश्य कराएं, जिससे आपके किए हुए कार्य को दूसरे चिकित्सकों तक पहुंचने में आसानी हो, इससे जहां होम्योपैथी की स्वीकार्यता लोगों में बढ़ेगी, मरीज को इस पैथी का लाभ मिलेगा, वहीं आपका किया हुआ कार्य एक मान्य दस्तावेज के रूप में दर्ज हो जाएगा।

वेबिनार के आयोजक डॉ मृदुल साहनी ने डॉ गुप्ता की बातों से सहमत होते हुए कहा कि साक्ष्य आधारित केसेस का जर्नल में प्रकाशन वाकई होम्योपैथी को जन-जन तक पहुंचने में सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने यह भी बताया कि डॉक्टर गुप्ता द्वारा इस दिशा में कार्य करते हुए तीन पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है इनमें पहली पुस्तक ‘एवीडेंस बेस्‍ड रिसर्च ऑफ होम्‍योपैथी इन गाइनोकोलॉजी’ स्त्री रोगों पर, दूसरी ‘एवीडेंस बेस्‍ड रिसर्च ऑफ होम्‍योपैथी इन डर्माटोलॉजी’, त्‍वचा के रोगों पर आधारित है, तथा तीसरी पुस्तक ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ है जिसमें होम्‍योपैथिक दवाओं के लैब में किये गये शोध और उनके परिणाम के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गयी है।

डॉ गिरीश गुप्ता ने एक और महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि होम्योपैथिक के जो चिकित्सक एमडी या पीएचडी करते हैं, उन्हें अपनी थीसिस तैयार करने में साक्ष्य आधारित केसेस नहीं मिल पाते हैं, ऐसे विद्यार्थियों के लिए उनकी लिखी पुस्तकें अत्यंत लाभप्रद साबित हो सकती हैं, चूंकि ये केसेस राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं, इसलिए इनका थीसिस में रेफरेंस मान्य है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि उनकी ये किताबें उनके क्लीनिक के अलावा अमेजॉन पर भी उपलब्ध हैं।

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