-मुख्य सचिव के आश्वासन के बावजूद मांगें पूरी न होने के विरोध में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद यूपी ने शुरू किया आंदोलन
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। विभिन्न संवर्गों की वेतन विसंगतियों पर मुख्य सचिव द्वारा दिए गए आश्वासन के बावजूद दिसंबर माह में निर्णय न हो पाने, कैशलेस चिकित्सा, महंगाई भत्ता बहाल किये जाने, अन्य समाप्त किये गए भत्तों को पुनः शुरू किए जाने, पुरानी पेंशन बहाली, ठेकेदारी व्यवस्था, निजीकरण पर रोक आदि मांगों पर कार्यवाही न होते देख राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया है। परिषद के आह्वान पर प्रदेश के राज्य कर्मचारियों ने काला फीता बांधकर विरोध जताया।
परिषद के अध्यक्ष सुरेश रावत, महामंत्री अतुल मिश्रा ने बताया कि वर्तमान समय में प्रदेश का कर्मचारी विशेषतः चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग कोरोना वायरस से लड़ने में लगे रहे, कोविड से बचाव व उसके उपचार आदि में कर्मचारियों द्वारा लगभग सफलता प्राप्त कर ली गयी है, ऐसे समय में कर्मचारियों की मांगों को पूरा कर पारितोषिक दिया जाना चाहिए।
मुख्य सचिव ने फार्मेसिस्ट, लैब टेक्नीशियन, ऑप्टोमेट्रिस्ट की वेतन विसंगति दिसंबर माह में दूर करने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे , लेकिन दिसंबर समाप्त हो जाने पर भी कार्यवाही न होने से प्रदेश के सभी कर्मचारी अत्यंत आक्रोशित है, ऐसा प्रतीत होता है कि शासन द्वारा कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश शासन द्वारा कर्मचारियो के प्रति नकारात्मक व्यवहार पर कड़ा एतराज जताते हुए लखनऊ के जिलाध्यक्ष सुभाष श्रीवास्तव ने बताया कि लखनऊ के सभी कार्यालयों में आज जोरदार विरोध दर्ज कराया गया।
परिषद के प्रमुख उपाध्यक्ष सुनील यादव ने कहा कि प्रदेश के सभी जनपदों से कर्मचारियों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, प्रदेश के लाखों कर्मचारी राज्य सरकार के सौतेले रवैये से निराश हो गए हैं आज जनता प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों की तारीफ कर रही हैं, सरकारी कर्मचारियों के प्रति जनता के दिलों में विश्वास कायम हुआ है, लेकिन ऐसे समय कर्मचारियों की मांगों को लंबित बनाये रखना समझ से परे है।
जनता आज देश के सरकारी कर्मचारियों को अपना मसीहा मान रही है चाहे वह चिकित्सक हों, फार्मेसिस्ट, लैब टेक्नीशियन, नर्सेज सहित सभी चिकित्सा कर्मियों को जनता दूसरे भगवान का दर्जा दे रहे हैं, ऐसे में कर्मचारियों को कुछ न कुछ पुरस्कार दिया जाना चाहिए था लेकिन सरकार द्वारा पुरस्कार तो छोड़िए उनको पूर्व से मिल रहे भत्ते समाप्त कर दिया। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि कर्मचारियों के लिए सरकार के पास कोई कल्याणकारी नीति नहीं है और ना ही कर्मचारियों को सरकार अपना अंग मानती है ।
उन्होंने कहा कि सरकारी संस्थानों में ठेकेदारी प्रथा, संविदा जनहित में नही है, इससे कर्मचारियों का आर्थिक एवं मानसिक शोषण हो रहा है, इसलिए इसे बंद कर स्थाई नियुक्तियां की जानी चाहिए। वहीं पुरानी पेंशन व्यवस्था को तत्काल लागू कर कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित किया जाना चाहिए।
अगर मांगें न मानी गयीं तो परिषद का आंदोलन 27 तक काला फीता के रूप में चलेगा, इसके पश्चात 17 मार्च तक जनजागरण गेट मीटिंग की जाएगी, 18 मार्च तक मांगें पूरी न होने पर प्रत्येक जनपदों में कर्मचारी उपवास कर एक दिवसीय धरना देगें और ज्ञापन भेजेंगे।