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आईएमए प्रतिनिधिमंडल की तर्कपूर्ण मांगों से सहमति जतायी मंत्री ने

-नगर निगम की मनमानी लाइसेंस प्रणाली के विरुद्ध आवाज उठायी चिकित्‍सकों ने

-सीएमओ कार्यालय में पंजीकरण/नवीनीकरण की सीमा भी 30 अप्रैल तक बढ़ाने की मांग

2 जनवरी, 2021 को नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन को आईएमए, लखनऊ के प्रतिनिधिमंडल ने ज्ञापन सौंपा

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। नगर निगम द्वारा एलोपैथिक क्लीनिक, डेंटल क्लीनिक के साथ ही पैथोलॉजी व पैथोलॉजी कलेक्शन सेंटर के लिए भारी भरकम लाइसेंस फीस निर्धारित किये जाने पर विरोध जताते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) लखनऊ के चिकित्सकों के दल ने नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन से उनके निवास पर मुलाकात कर उन्‍हें पूर्व में भेजे गये पत्र का हवाला देते हुए वार्ता की, साथ ही सीएमओ कार्यालय पर होने वाले पंजीकरण व नवीनीकरण की तिथि को भी 30 अप्रैल, 2021 तक बढ़ाने की मांग की। मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल की बात को गौर से सुनकर इस पर अपनी स‍हमति जताते हुए स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री से वार्ता का आश्‍वासन दिया।

आईएमए प्रवक्‍ता डॉ प्रांजल अग्रवाल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि मंत्री से मिलने गये आईएमए के इस दल में डॉ मनीष टंडन, डॉ पीके गुप्ता, डॉ ए एम खान, डॉ अनूप अग्रवाल, डॉ प्रांजल अग्रवाल, डॉ आरबी सिंह, डॉ अलीम सिद्दीकी, डॉ जेडी रावत, डॉ वीरेन्द्र यादव आदि शामिल थे। ज्ञात हुआ है कि मंत्री से मिलने गये दल ने डॉक्‍टरों पर इस तरह की लाइसेंस प्रणाली लागू किये जाने को सेवाकार्य करने वाले डॉक्‍टर की गरिमा को चोट पहुंचाने वाला बताया तथा कहा कि पूर्व में तत्‍कालीन नगर विकास मंत्री लालजी टंडन द्वारा चिकित्‍सकों को लाइसेंस प्रणाली से बाहर किया गया था।

आईएमए लखनऊ की अध्यक्ष डॉ रमा श्रीवास्तव सचिव डॉक्टर जे डी रावत नर्सिंग होम सेल के चेयरमैन डॉ अनूप अग्रवाल और नर्सिंग होम सेल के एग्जीक्यूटिव सदस्य डॉ प्रांजल अग्रवाल की ओर से 30 दिसम्‍बर, 2020 को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि आई एम ए से जुड़े चिकित्‍सकों को नगर निगम द्वारा नोटिस आदि देकर लाइसेंस शुल्क अदा करने एवं लाइसेंस लेने का दबाव बनाया जा रहा है कि 48 घंटे के अंदर अगर लाइसेंस शुल्‍क नहीं जमा किया तो चिकित्सा सेवा प्रतिष्ठानों को सील करने जैसी कार्रवाई की जा सकती है। आई एम ए ने अपने पत्र में लिखा है कि जहां एक तरफ चिकित्सक इस आवश्यक जनोपयोगी सेवा में कोरोना काल से पहले कोरोना काल के दौरान और उसके बाद भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं उन पर एकल क्लीनिक तक के लाइसेंस के लिए 10,000 रुपये प्रति वर्ष का शुल्क निर्धारित किया गया है जबकि वहीं दूसरी ओर रेस्टोरेंट आदि पर सिर्फ 2,000 रुपये प्रति वर्ष की लाइसेंस फीस है। यही नहीं एकल क्‍लीनिक पर 10,000 रुपये प्रति वर्ष फीस निर्धारित की गई है जबकि 50 बेड तक के नर्सिंग होम के लिए यही फीस 7,500 रुपये निर्धारित की गई है।

पत्र में कहा गया है कि किसी भी चिकित्सक को अपनी शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत उनको मरीजों का परीक्षण कर इलाज करने के लिए अनुज्ञप्ति सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बोर्ड भारतीय चिकित्सा परिषद, भारतीय डेंटल परिषद, होम्योपैथिक मेडिसिन बोर्ड, आयुर्वेदिक मेडिसिन बोर्ड इत्यादि द्वारा दी जाती है, जबकि निजी चिकित्सा प्रतिष्ठानों जैसे क्लीनिक अस्पताल, नर्सिंग होम, पैथोलॉजी, डायग्नोस्टिक सेंटर, ब्लड बैंक आदि को लाइसेंस प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले के सीएमओ के माध्यम से संपूर्ण प्रलेखन के बाद ही दी जाती है, इसके बावजूद नगर निगम से अलग से अनुज्ञप्ति का प्रावधान कर जहां एक तरफ निजी चिकित्सा इकाइयों पर आर्थिक दबाव बनता है, वहीं दूसरी तरफ आम जनता के लिए इलाज महंगा होने की संभावना में वृद्धि हो जाती है ऐसे में चिकित्सकों को उनके मान्यता प्राप्त बोर्ड से लाइसेंस लेने के बाद नगर निगम द्वारा अलग से लाइसेंस के लिए बाध्य करना कहीं ना कहीं चिकित्सक का अपमान है।

एक अन्य बिंदु में लिखा गया है कि एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इज ऑफ डूइंग बिजनेस यानी किसी भी व्यवसाय के सरलीकरण की बात कर रहे हैं और सरकार इसके लिए वचनबद्ध भी है, वहीं दूसरी ओर इस तरह के अतिरिक्त लाइसेंस लेने और इनसे संबंधित आर्थिक आवश्यकताओं के जाल में जकड़ कर कहीं नगर निगम केंद्र सरकार की विचारधारा के कार्य तो नहीं कर रहा है ?

पत्र में कहा गया है कि निजी चिकित्सा प्रतिष्ठान चाहे वह क्‍लीनिक हो या अस्पताल, नर्सिंग होम, पैथोलॉजी, डायग्नोस्टिक सेंटर, ब्लड बैंक हो, नगर निगम द्वारा निर्धारित गृहकर भी अदा करते हैं। यदि निजी चिकित्सा प्रतिष्ठानों पर घर के अतिरिक्त नगर निगम द्वारा लाइसेंस शुल्क भी लगाया जाता है, इसके बावजूद चिकित्सा प्रतिष्ठानों के कूड़ा उठाने से लेकर जैव चिकित्सा अपशिष्ट के विस्तारीकरण तक प्रतिष्ठान को अलग-अलग शुल्क अदा करने पड़ते हैं तो यह देश की आजादी से पहले अंग्रेजों द्वारा लगाए जाते रहे लगान से भिन्न नहीं है। इस तरह के तमाम लाइसेंस और इनके अलग-अलग आर्थिक दबाव के चलते चिकित्सक समुदाय में रोष है। लाइसेंस की निर्धारित शुल्क की सूची में ईंट, भट्ठे, मॉडल शॉप, रेस्टोरेंट जैसी व्यवसायों की तुलना स्वास्थ्य सेवा प्रतिष्ठान जो कि आवश्यक जनोपयोगी सेवा प्रदान कर रहे हैं, से करना अशोभनीय है। पत्र में आई एम ए द्वारा इस मामले का संज्ञान लेते हुए निजी चिकित्सा प्रतिष्ठानों द्वारा लाइसेंस शुल्क जमा करने एवं लाइसेंस लेने जैसे नियम समाप्त कर नगर निगम लखनऊ द्वारा कोरोना काल के दौरान राजस्व बढ़ाने के इस अव्यावहारिक कदम को वापस लेने का अनुरोध किया गया है।

इसके अलावा चिकित्सकों ने ऑनलाइन सीएमओ पंजीकरण, नवीनीकरण में आ रही दिक्कतों से मंत्री को अवगत कराया और नवीनीकरण की तारीख आगे बढ़ाने सहित छोटे एकल डॉक्टर क्लीनिकों के पंजीकरण में वांछित दस्तावेजों में सरलीकरण की मांग की।