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चिकित्‍सक बोले, ऐसी स्थिति की कल्‍पना नहीं की थी वरना सरकारी नौकरी में न आते

– अस्‍पतालों के प्रशासनिक पदों पर एमबीए की तैनाती के मसले पर प्रांतीय चिकित्‍सा सेवा संघ भड़का

-विचार तो इस पर करना चाहिये कि आखिर सरकारी सेवा में डॉक्‍टर आ क्‍यों नहीं रहे

-मौजूदा मसले पर विरोध के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं चिकित्‍सक

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। प्रांतीय चिकित्‍सा सेवा संघ, उत्‍तर प्रदेश ने कहा है कि संवर्ग में चिकित्सकों के पद पर एमबीए एवं अन्य गैर तकनीकी अधिकारियों की तैनाती ना केवल वर्तमान में चिकित्सकों को हतोहत्साहित करेगी वरन उनकी कार्य क्षमता को भी प्रभावित करेगी। सभी चिकित्सक इस महामारी से राज्य की जनता को मुक्त कराने के लिए परिश्रम कर रहे हैं, जिसकी चर्चा विश्वस्तर पर हो रही है। ऐसे में इस तरह का फैसला  उचित प्रतीत नहीं होता, बल्कि ऐसी दशाओं में तो चिकित्सकों को और ज्यादा अधिकार प्रदान कर देने चाहिए। आश्चर्य की बात है कि आखिर यह प्रबंधन किस स्तर पर नाकाम हुआ है? जिलों में लगातार प्रशासनिक पदों पर बैठे हुए अधिकारियों द्वारा चिकित्सकों का शोषण और अपमान किया जा रहा है। अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद भी चिकित्सकों ने इस स्थिति की कभी कल्पना भी नहीं की होगी, अगर कल्पना की होती तो सरकारी सेवा में नहीं आए होते।

प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ सचिन वैश्य एवं महामंत्री डॉ अमित सिंह के द्वारा राज्य केंद्रीय कार्यकारिणी के पदाधिकारियों से विस्तृत विमर्श के पश्चात संयुक्त रूप से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया था कि तकनीकी स्थानों पर गैर तकनीकी व्यक्तियों का प्रयोग न किया जाए। यदि प्रशासनिक पदों की परिभाषा इतनी सरल होती तो अन्य विभागों के उच्चाधिकारियों की जगह गैर तकनीकी कार्मिकों को ओर बिज़नेस मैनेजर्स को तैनात कर दिया जाता।

चिकित्‍सकों का कहना है कि प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग एक तकनीकी संघ है। शासन स्तर पर तकनीकी विमर्श के लिए दो विशेष सचिव के पद सृजित हैं परंतु आश्चर्य की बात है कि उन पदों को न भरते हुए एक समानांतर व्यवस्था की जा रही है।

डॉक्‍टरों का कहना है कि संवर्ग के चिकित्सकों के लिए सेवा शर्तें एवम उनकी नियमावली पहले से ही प्रतिस्थापित है। संवर्ग के चिकित्सक अपनी सेवा काल में अपने कार्य दशाओं से प्राप्त अनुभव एवम निश्चित कार्य काल के ही पश्चात उच्च पद को प्राप्त करते हैं। ऐसे में उनके समक्ष इस क्षेत्र में एक एमबीए एवं अन्य गैर-तकनीकी अधिकारी, जो चिकित्सकीय जिम्मेदारियों के प्रति अनुभवहीन है, को पदभार देना उचित नहीं है।

चर्चा में कहा गया कि पूर्व में चेचक तथा पोलियो जैसी बड़ी बीमारियों के उन्मूलन के अतिरिक्त वर्तमान में दिमागी बुखार तथा अन्य संचारी रोगों पर नियंत्रण तथा वर्तमान में ही कोरोना महामारी के संक्रमण काल में प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सकों द्वारा युद्धस्तर पर जो भी अनवरत कार्य किए गए हैं, वे यह बताते हैं कि ये सभी कार्य एक बेहतर प्रबंधन एवं संचालन से संभव हो सके।

संवर्ग में पूर्व से ही मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में एनएचएम के अंतर्गत बड़ी संख्या में मैनेजर्स एवं कंसल्टेंट्स तैनात हैं, इनमें डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर, डिस्ट्रिक्ट कम्युनिटी प्रोसेस मैनेजर, डिस्ट्रिक्ट एकाउंट मैनेजर्स, डिस्ट्रिक्ट डेटा मैनेजर, डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर मैनेजर, डिस्ट्रिक्ट क्वालिटी कंसलटेंट, डिस्ट्रिक्ट मैटरनल हेल्थ कंसलटेंट, मॉनिटरिंग एवं इवैल्यूएशन ऑफिसर, फैमिली प्लानिंग कंसलटेंट, वैक्सीन कोल्ड चैन मैनेजर, डिस्ट्रिक्ट कंसलटेंट मैटरनल हेल्थ इत्यादि। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मैनेजर तथा कंसल्टेंट्स प्रत्येक जनपद में तैनात हैं।

चिकित्सकीय संवर्ग पूरे विश्व में आवश्यक एवं आकस्मिक सेवाओं में आता है। वर्तमान समय में चिकित्सक,विशेष रूप से सरकारी चिकित्सक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हैं। मरीजों की सेवा में अपनी जान दे रहे हैं। दिवंगत शहीद साथियों को मरणोपरांत भी सरकार द्वारा घोषित उनका अधिकार नहीं दिया गया है। उनके परिवार आज भी आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं।

नेताद्वय ने कहा है कि प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ, उत्तर प्रदेश ने अपने साथियों के लंबे अनुभव और व्यवहारिक ज्ञान की सहायता से एक दृष्टि पत्र पहले ही सरकार को दिया था, जिसमें संवर्ग की समस्याओं के साथ-साथ नए चिकित्सकों को संवर्ग के प्रति आकर्षित करने के उपाय मौजूद थे परंतु उसका संज्ञान शायद ही किसी भी स्तर पर लिया गया होगा, ऐसा प्रतीत नहीं होता। आज भी संघ की दीर्घकालिक मांगों के पत्रों पर कोई भी संज्ञान नहीं लिया जा रहा। तथाकथित प्रशासनिक पद और उन पर कार्यरत अनुभवी और वरिष्ठ चिकित्सकों, जिनकी संख्या उंगली पर गिनी जा सकती है, जिनको चिकित्सीय कार्य में लगा कर चिकित्सकों की कमी नहीं पूरी की जा सकती, क्योंकि विभिन्न स्तरों पर स्थित चिकित्सा इकाइयों में चौबीसों घंटे सातों दिन विशेषज्ञ सेवाएं देने के लिए लगभग 33 हज़ार विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता है और 14 हज़ार प्लेन एम.बी.बी.एस चिकित्सकों की आवश्यकता है। सभी प्रयोगों के बावजूद(पुनर्नियोजन/वॉक-इन-इंटरव्यू/सेवा विस्तार/संविदा पर चिकित्सकों की भर्ती बिड माध्यम से) चिकित्सकों को सेवाओं के प्रति आकर्षित करने के सारे प्रयास निरंतर विफल होते जा रहे हैं। ऐसे में गैर-चिकित्सक एवं अनुभवहीन बिजनेस मैनेजर को कार्य एवं दायित्व सौंपने की विचारधारा अनुचित प्रतीत होती है।

प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ,उत्तर प्रदेश ने विगत कई वर्षों में उच्चाधिकारियों को न केवल इस संवर्ग पर अनुसंधान करते हुए पाया है वरन उन निर्णयों से दीर्घकालिक परिणाम न प्राप्त होते हुए इस संवर्ग को पतन की ओर अग्रसारित होते हुए एवम संवर्ग के प्रति चिकित्सकों को विमुख होने की निरंतर प्रक्रिया का अवलोकन किया है। इसी क्रम में पूर्व में चिकित्सकों के बहुत से अधिकार दूसरे संवर्गों को सौंप दिए गए उदाहरण के लिए वर्ष 2008 में फ़ूड एवं ड्रग विभाग अलग बना दिया गया।

वर्ष 2004 में किया गया संवर्ग विभाजन का प्रयोग केवल विसंगतियों को उत्त्पन्न करने के पश्चात अपने मूल रूप में वापस आया। वर्ष 2011 में मुख्य चिकित्सा अधिकारी परिवार कल्याण जैसे पद की परिणीति एनएचएम घोटाले के रूप में हुई।

चिकित्सकों की उपयोगिता तो केवल इसी बात से सिद्ध हो जाती है कि इस संवर्ग की अधिवर्षता आयु सर्वप्रथम 58 वर्ष से बढ़कर 60 वर्ष एवं पुनः 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गयी। राज्य के हर संवर्ग में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) का लाभ लेने के लिए प्रत्येक कार्मिक स्वतंत्र है, पर केवल चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में ही इस पर रोक लगाते हुए नया प्रयोग किया गया। भविष्य के दृष्टिकोण से इस पर लगाई गई बाध्यता को तात्कालिक प्रभाव से समाप्त कर देना चाहिए। परिस्थितियां बदल सकती हैं, परंतु कोई भी चिकित्सक इस संवर्ग की अनिश्चितताओं के दृष्टिगत आकर्षित नहीं हो पा रहा।

संवर्ग में सृजित पदों (लगभग 18700) के सापेक्ष लगभग 5000 (पांच हज़ार) चिकित्सकों के पद आज भी रिक्त हैं। ये पद लंबी अवधि से रिक्त हैं, इससे ये स्वयं ही परिलक्षित है कि जो परिस्थितियां इन चिकित्सकों को इस संवर्ग में आने के लिए उत्साहित करनी चाहिए थीं, वे परिस्थितियां उत्पन्न न करते हुए नए नए प्रयोगों के माध्यम से इस क्षेत्र में क्रांति लाने के सभी उपायों को विफल कर दिया गया। किसी भी अन्य संवर्ग के व्यक्तियों से दूसरे संवर्ग की भरपाई करना केवल लघुकालिक तो हो सकता है परंतु दीर्घकालिक कभी नहीं हो सकता।

नेताद्वय ने बताया कि इन सारी बातों से मुख्यमंत्री एवं उच्चाधिकारियों को पत्र तथा ई-मेल के माध्यम से अवगत करा दिया गया है। प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ, उत्तर प्रदेश जन समुदाय के लिए चिकित्सकीय कार्यों के अतिरिक्त अपने चिकित्सकों के हितों के लिए भी सदैव प्रयासरत रहा है। प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ, उत्तर प्रदेश ऐसे किसी भी निर्णय का समस्त विकल्प खोलते हुए विरोध प्रकट करता है। इसी संबंध में राज्य केंद्रीय कार्यकारिणी एवं जनपदीय कार्यकारिणी, उत्तर प्रदेश की आगामी बैठक में अगला निर्णय लिया जायेगा।