अजंता हॉस्पिटल एवं आईवीएफ सेंटर की विशेषज्ञ डॉ गीता खन्ना की कलम से…
आज फादर्स डे है। यानी पिता को सम्मान देने, उसके महत्व को समझने और समझाने का दिन। पिता का वजूद ही संतान से है, यानी एक संतान ही पुरुष को पिता का दर्जा देती है। इस शुभ दिन पर अजंता हॉस्पिटल एंड आईवीएफ सेंटर की ओर से मैं सभी पिताओं और निकट भविष्य में पिता बनने वाले लोगों को शुभकामनाएं देना चाहती हूं।बच्चे को जन्म देने वाली मां का दर्जा अगर सर्वोपरि है तो पिता का दर्जा भी अपना एक महत्वूपूर्ण स्थान रखता है। चूंकि मां नौ माह तक अपने गर्भ में रखकर शिशु को पूर्ण आकार प्रदान करती है इसलिए उसे जननी माना गया है और उसे सर्वोपरि स्थान दिया गया है। एक पुरुष को जब पहली बार पता चलता है कि वह पिता बनने की कतार में आ गया है तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है लेकिन स्वभाववश पुरुष इसे बहुत ज्यादा दर्शाते नहीं हैं, लेकिन इसकी स्पष्ट झलक उनके चेहरे पर तब देखी जा सकती है जब जांच रिपोर्ट उनके हाथ में आती है और चिकित्सक बताते हैं कि उनकी पत्नी गर्भवती है।
लेकिन यह भी सच है कि ऐसे पुरुष भी हैं जो पत्नी के गर्भवती होने की खबर सुनने के इंतजार में रहते हैं, मेरी क्लीनिक में ऐसे सैकड़ों जोड़े जो संतान की चाहत लेकर जब आते हैं तो उनके चेहरों को पढ़ कर संतानहीनता का दर्द समझा जा सकता है, फर्क सिर्फ इतना होता है कि संतानहीनता के चलते उनके जीवन के खालीपन का दर्द पत्नी के चेहरे पर साफ तौर पर, जबकि पति के चेहरे पर एक कृत्रिम आवरण के पीछे देखा जा सकता है।आपको बता दें कि आजकल की जीवन शैली ने पुरुषों में संतान पैदा करने की क्षमता को कम कर दिया है इसलिए आवश्यक यह है कि हम ऐसी जीवन शैली अपनायें कि बांझपन जैसी अप्रिय स्थिति का शिकार न हों। बहुत से ऐसे कार्य हैं जिन्हें पुरुष जाने-अनजाने अपनी जीवन शैली में करता रहता है और नतीजा होता है बांझपन।
पुरुषों में इनफर्टिलिटी के पीछे मुख्य बायोलॉजिकल फैक्टर्स में शुक्राणुओं की संख्या कम होना यानी ऑलिगोस्पर्मिया, शुक्राणुओं का अभाव या एजूस्पर्मिया, एस्थेनोस्पर्मिया यानी शुक्राणुओं की असामान्य गतिविधि और असामान्य आकार तथा संरचना वाले शुक्राणुओं की बीमारी या टेरेटोस्पर्मिया हैं। अन्य वजहों में अंडकोश की नसों में सूजन, संक्रमण, शुक्राणुरोधी जीवाणु, ट्यूमर, अंडकोश में गड़बड़ी, हार्मोन असंतुलन, शुक्राणु नली की असामान्यता, क्रोमोजोम में गड़बड़ी और कुछ दवाइयों का असर हो सकता है। “काम पर लाइफस्टाइल संबंधी फैक्टर भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।”एक बहुत ही सामान्य आदत होती है कि पुरुष लैपटॉप गोदी में रखकर कार्य करते है। लैपटॉप को गोद में लेकर न बैठें, क्योंकि इससे एक घंटे में ही स्पर्म का तापमान दो डिग्री बढ जाता है। इसके अलावा लम्बे समय तक शराब का सेवन 30 प्रतिशत स्पर्म घटा देता है। धूम्रपान, गर्म तापमान, लगातार एक जगह बैठे रहना, मोटापा जैसे कारणों से पुरुषों को बांझपन की समस्या आ सकती है।
रोजाना काम आने वाले उत्पादों के रूप में हर साल तकरीबन 2,000 नए केमिकल्स बाजारों में उतारे जाते हैं हम इनमें से कई केमिकल्स के अपनी सेहत पर असर के बारे में कुछ नहीं जानते। शराब से शुक्राणु बनना कम हो जाता है, स्मोकिंग से इनका आकार गड़बड़ा जाता है, एस्पिरिन की ज्यादा खुराक वीर्य में अहम रसायनों से छेड़छाड़ कर देती है और चीनी की अधिक मात्रा मोटापा, तनाव, यौन संक्रमित रोग, भारी वर्जिश, अनिद्रा और उम्र का बढऩा सब मिलकर इनफर्टिलिटी को बढ़ावा देते हैं।यदि पुरुष के स्पर्म का आकार असामान्य है तब भी वह महिला के अंडे के साथ निषेचित नहीं हो पाता है, इसी प्रकार यदि पुरुष का वीर्य असामान्य है तो कई बार वह स्पर्म को उस वेग से पहुंचा नहीं पाता है जितनी जरूरत होती है।
इसके अलावा एक बीमारी होती है वेरीकोसिल, इसमें नसों में सूजन हो जाती है जिस वजह से पुरुषों का अंडकोष सूख जाता है, इस समस्या से स्पर्म कमजोर भी हो जाते हैं। कई बार गुप्तांगों में किसी संक्रमण के कारण भी स्पर्म बनने में बाधा उत्पन्न करते हैं और नली भी अवरुद्ध कर देते हैं। इसके अतिरिक्त ट्यूमर के कारण, ज्यादा एक्सरे से रेडियेशन के कारण, नशीली दवाओं के प्रयोग से भी बांझपन हो जाता है।
इन सारी सच्चाइयों को बताने का अर्थ डराना नहीं बल्कि पुरुषों को जागरूक करना है। लेकिन जो पुरुष इसके शिकार है उनके लिए यही संदेश देना चाहती हूं कि उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है, वे एक कुशल चिकित्सक के पास परामर्श के लिए जायें, ऐसे कई प्रकार के कम कीमत वाले इलाज भी मौजूद हैं जो उन्हें यह खुशी दे सकते हैं कि कोई उन्हें भी पापा…पापा… कहकर बुलाये।