-लक्षण हों तो प्रसव पूर्व टीबी की जांच अवश्य करायें : डॉ राजेन्द्र प्रसाद
सेहत टाइम्स
लखनऊ। गर्भावस्था में यदि टीबी के लक्षण नजर आएं तो इसकी जांच जरूर कराएं और समय से इलाज कराएं। साधारण टीबी यानि ड्रग सेंसिटिव टीबी की दवाएं गर्भवती महिला के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं, जबकि मल्टी ड्रग रेसिस्टेंस यानी एमडीआर टीबी की एक या दो दवाएं जरूर कुछ बुरा असर डाल सकती हैं, ऐसे में उनको उन दवाओं के स्थान पर दूसरी सुरक्षित दवाएं देकर इलाज किया जाता है।
यह कहना है नेशनल टीबी टास्क फ़ोर्स के वाइस चेयरमैन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का। उनका कहना है कि गर्भावस्था के दौरान टीबी होने पर लोगों में यह सवाल उठता है कि कहीं इसकी दवाएं शिशु की सेहत पर नकारात्मक असर न डालें तो ऐसे में यह जानना जरूरी है कि साधारण टीबी की दवाएं गर्भवती के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि एमडीआर टीबी की एक या दो दवाएं जरूर कुछ बुरा असर डाल सकती हैं, इसलिए गर्भवती के मामले में उनको मानक में शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि सरकार ने भी इसीलिए यह तय किया है कि प्रसव पूर्व जांच के लिए आने वाली महिलाओं में यदि टीबी के लक्षण नजर आएं तो उनकी टीबी की जांच करायी जाए। दो सप्ताह से खांसी व बुखार रहना, लगातार वजन कम होना और रात में पसीना आना जैसे लक्षण गर्भवती में नजर आते हैं तो उनकी टीबी की जांच करायी जाती है। नेशनल लेवल वर्चुअल प्रशिक्षण में यह बात निकलकर आई है कि उत्तर प्रदेश में हर साल करीब 8,000 गर्भवती में टीबी के लक्षण पाए जाते हैं। समय से टीबी की जांच और इलाज से गर्भवती के साथ ही गर्भस्थ शिशु को भी सुरक्षित बनाया जा सकता है। इससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में भी कमी लायी जा सकेगी।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि बच्चे को जन्म के तुरंत बाद बीसीजी का टीका जरूर लगवाना चाहिए। इससे टीबी संक्रमण का फैलाव रुकता है। इसके अलावा टीबी ग्रसित मां भी बच्चे को स्तनपान जरूर कराएँ। इस दौरान स्वस्थ स्वास्थ्य व्यवहार को अपनाना बहुत जरूरी है, जैसे- स्तनपान कराने से पहले हाथों और स्तन को अच्छी तरह धुल लें और मास्क लागाकर ही स्तनपान कराएं। प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण गर्भवती और धात्री महिलाओं में भी टीबी होने की संभावना ज्यादा होती है। क्षयरोग महिलाओं में प्रजनन आयु के दौरान होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। गर्भवती महिलाओं में क्षय रोग के प्रसार की दर के तथ्य तो अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन भारत में यह आंकड़ा बहुत बड़ा माना जा रहा है। हाल ही में किये गए एक मातृ मृत्यु शव परीक्षण (ऑटोप्सी) के विश्लेषण में यह सामने आया है कि भारत में मातृ मृत्यु में टीबी सहित अन्य संक्रमणों का अहम् योगदान है।