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त्याग और साहस ही जिनका था गहना…

-महान क्रांतिकारी दुर्गा देवी वोरा “दुर्गा भाभी” की जन्मतिथि 7 अक्तूबर पर वत्सला पाण्डेय के काव्यरूपी श्रद्धा सुमन

वत्सला पाण्डेय
दुर्गावती देवी (7.10.1907-15.10.1999)

त्याग और साहस ही जिनका था गहना
क्रांतिमूर्ति दुर्गा भाभी का क्या कहना

सन उन्नीस सौ सात, सात अक्टूबर के दिन,
कौशाम्बी के निकट लाडली जन्मीं थीं।
वैभवशाली खानदान की सोनचिरैया,
बनकर आंगन में प्रतिदिन वो खेलीं थीं।
पिता और बाबा से परिजन कहते थे
बहुत विदुषी है प्यारी दुर्गा बहना।

त्याग और साहस ही जिनका था गहना

बाल वधू बन दुर्गा जब लाहौर आईं
नई भूमिका में थोड़ा सा सकुचाईं
पति रूप में उनको सच्चा साथ मिला
भगवती बाबू से मन का विश्वास खिला
दोनों ही एक दूजे के सम्पूरक थे
दोनों कहते गोरों की अब नहीं सहना

त्याग और साहस ही जिनका था गहना…

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की सहयोगी
आजादी की खातिर बन गयी इक जोगी
गाँव-गाँव जाकर क्रांति की अलख जगायी
क्रांतिकारियों की खातिर बंदूक मंगायी
गहने-जेवर, रुपया-पैसा सब थी देतीं
“तन मन धन है देश का मेरे” था कहना

त्याग और साहस ही जिनका था गहना…

भगत सिंह ने जब गोरे अफसर को मारा
उन्हें बचाने हेतु दुर्गा ने स्वांग था धारा
पत्नी बनकर भगत सिंह को बचा लिया
बरतानी सरकार को बुद्धू बना दिया
रेल पकड़ लाहौर से कलकत्ता निकलीं
बोलीं -“गोरों हाथों को मलते रहना”

त्याग और साहस ही जिनका था गहना

बम टेस्टिंग में हुआ हादसा दुःख वाला
दुर्गा का सिंदूर काल ने खा डाला
नियति का लेखा मान आँसुओं को पोंछा
अब आगे क्या करना है? फिर से सोंचा
आजादी का बीड़ा भी ले रखा था
और पढ़ाई को भी था जारी रखना

त्याग और साहस ही जिनका था गहना

सन उन्नीस सौ चालीस में लखनऊ आईं
विद्या की इक ज्योति यहां पर जलवाई
पहला मांटेसरी स्कूल था खुलवाया
लखनऊ मांटेसरी नाम था रखवाया
आजादी के बाद यही संकल्प लिया
जब तक जीवन है, जन को शिक्षित करना

त्याग और साहस ही जिनका था गहना
क्रांतिमूर्ति दुर्गा भाभी का क्या कहना…

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