-दीपावली पर विशेष लेख डॉ सूर्यकांत की कलम से
प्रकाश और खुशहाली का पावन पर्व दीपावली जीवन में नई उमंग और तरंग लेकर आता है। हर उम्र और हर वर्ग के लोग साल भर इस रौनक और धूमधाम वाले त्योहार का बेसब्री से इन्तजार करते हैं। गर्मी के बाद मौसम ठंड की गुलाबी रंगत ओढ़ने लगता है। ऐसे में नवदुर्गा पूजा की श्रद्धा और दशहरे का उत्साह दीपावली तक पूरा परवान चढ़ता है। पौराणिक पृष्ठभूमि के आलोक में इस दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अयोध्या वापसी से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि 14 साल के वनवास और अत्याचारी रावण का वध कर इसी दिन राम वापस अयोध्या पहुंचे थे और अयोध्यावासियों ने बड़ी धूमधाम से दिये जलाकर उनका स्वागत किया था। आधुनिक विज्ञान और गूगल मैप सर्च द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि लंका से अयोध्या आने में 20 से 21 दिन का समय लगेगा। यही कारण है कि दशहरा के लगभग 20 दिन बाद ही दीपावली मनायी जाती है।
दीपावली के समय वातावरण में प्रदूषकों की मात्रा अचानक 200 फीसदी तक बढ़ जाती है जो काफी लम्बे समय तक अपना जहरीला असर यूं ही बरकरार रखती है। आतिशबाजी के निर्माण में कागज, प्लास्टिक और गत्ते का प्रयोग न सिर्फ बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटान का कारण बनता है बल्कि इसकी फैक्ट्रियां भी प्रदूषण फैलाने में बहुत आगे हैं। पटाखों और आतिशबाजी से होने वाले नुकसान की बात करें तो उसके गम्भीरतम परिणामों में गंभीर रूप से जलना, गंभीर चोटें, आंख की रोशनी जाना, दमा का दौरा पड़ना, दिल का दौरा पड़ना एवं स्थाई बहरापन इत्यादि हो सकते हैं। इसके साथ ही दीपावली के पहले होने वाली सफाई, पुताई व रंगाई के कारण सांस के रोगियों की तकलीफ बढ़ जाती है जबकि दीवाली के दौरान आतिशबाजी के कारण होने वाले प्रदूषण से भी सांस के रोगियों की तकलीफ बढ़ जाती है।
क्या न करें :
हमारे यहां प्रायः यह देखा जाता है कि जब भी कोई नया पर्व आता है तब हम लोग स्वभावतः अपने घरों की साफ सफाई व पुताई करते हैं। स्वच्छता बहुत ही जरूरी है किन्तु इस साफ सफाई के दौरान धूल, गंदगी, डस्ट माइट्स आदि हमारे नाक व मुंह से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। अस्थमा, नाक की एलर्जी एवं अन्य श्वास रोगियों के लिए धूल कण बहुत ही हानिकारक होते हैं। रंग, पेंट, वार्निश से भी इन रोगियों के लक्षण बढ़ जाते हैं और उन्हें पहले से ज्यादा तकलीफ होती है। अतः श्वास रोगियों को इस सफाई अभियान से दूर ही रहना चाहिए।
दीपावली पर कुछ विशेष सावधानियां और बचावः
दीपावली पर पटाखों और आतिशबाजी से दूर रहने में ही खुद के साथ घर-परिवार और समाज की भलाई है। इसके अलावा कुछ अन्य जरूरी बातों का भी ख्याल रखें-
• आतिशबाजी खुले स्थान पर सावधानी से जलायें। केवल ग्रीन पटाखों का ही उपयोग करें।
• धातु या शीशे पर रखकर पटाखे न जलायें।
• ज्वलनशील चीजों के पास पटाखे न जलायें।
• पानी या बालू से भरी बाल्टी को आतिशबाजी वाले स्थान के पास रखें। फुलझड़ी छुडाने के बाद इसके तार को इधर-उधर फेंकने के बजाय बाल्टी में डालें ।
• आतिशबाजी के स्थान पर इलेक्ट्रानिक आतिशबाजी का आनन्द लें। इससे शोर और वायु प्रदूषण से बचाव हो सकता है।
• कुछ आधुनिक आतिशबाजी बारूद के स्थान पर कम्प्रेस्ड हवा का प्रयोग होता है, जिससे प्रदूषण की मात्रा में कमी आती है।
• आतिशबाजी पर कड़ा सरकारी नियंत्रण हो खासतौर पर उन पटाखों पर जिनसे किसी भी किस्म के प्रदूषण फैलने की संभावना हो। ज्ञात हो कि चीन द्वारा निर्मित आतिशबाजी ज्यादा विषाक्त व नुकसानदेह होती है।
• अपने पास पानी की बड़ी टंकी व बर्फ रखें जिससे जरूरत पड़ने पर प्राथमिक उपचार किया जा सके।
• डाक्टर से पूछकर ही दवा लें।
• सांस के रोगी अपने चेस्ट रोग विशेषज्ञ से दीवाली के पहले एक बार अवश्य मिल कर अपने इन्हेलर संबन्धी व अन्य चिकित्सकीय परामर्श ले लें।
• सांस के रोगी जहां तक हो घर के अन्दर रहें, पानी और पेय पदार्थो का भरपूर सेवन करें तथा भाप लें। जहां वायु में प्रदूषकों का घनत्व ज्यादा हो वहां मास्क का प्रयोग करें।
• दमा के रोगी अपनी दवायें नियमित रूप से लें और जरूरत पड़ने पर तुरन्त अपने चिकित्सक से सलाह लें। इसके अतिरिक्त दीपावली के दौरान सफाई, धुलाई व पेंट के समय सांस के रोगी बच कर रहें क्योंकि इस धूल, गर्दा, व पेंट की खुशबू से सांस का दौरा पड़ सकता है।
( लेखक केजीएमयू, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष हैं व पूर्व में इंडियन चेस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं )